Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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मणुयगतिनामाए जहा सातावेदणिजस्स, एगिंदियनामाए पंचिंदियजातिनामाए य जहा नपुंसगवेदस्स, बेइंदियतेइंदियजातिनामाए || पुच्छा, गो०! जह० सागरोवमस्स नव पणतीसतिभागे पलितोवमस्स असंखेजतिभागेणं ऊणए उक्को० ते चेव पडिपुण्णे बंधति चरिदियनामाएवि जह० सागरोवमस्स णव पणतीसतिभागे पलितोवमस्स असंखेजतिभागेणं ऊणए उको० ते चेव पडिपुण्णे बंधंति, एवं जत्थतिथ जहण्णगं दो सत्तभागा तिन्नि वा चत्तारि वा सत्तभागा अठ्ठावीसतिभागा० भवंति तत्थ णं जह० ते चेव पलितोवमस्स असंखेजतिभागेणं ऊणा भाणितव्वा उक्को० ते चेव पडिपुण्णे बंधंति, जत्थ णं जह० एगो वा दिवड्ढो वा सत्तभागो तत्थ जह० तं चेव भाणितव्वं उक्को० तं चेव पडिपुण्णं बंधंति, जसोकित्तिउच्चागोताणं जह० सागरोवमस्स एगं सत्तभागं पलितोवमस्स असं० अणं उक्को० तं चेव पडिपुण्णं बंधति, अंतराइयस्स णं भंते! पुच्छा, गो०! जहा णाणावरणिज्ज उक्को० ते | चेव पडिपुण्णे बंधति।२९६। बेइंदिया णं भंते! जीवा णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधति?, गो० जह० सागरोवभपणवीसाते तिण्णि सत्तभागा पलितोवमस्स असं० ऊणया उक्को० ते चेव पडिपुण्णे बंधंति, एवं निदापंचगस्सवि, एवं जहा एगिदियाणं भणितं तहा बेइंदियाणवि भाणितव्वं, नवरं सागरोवमपणवीसाए सह भाणितव्वा पलितोवमस्स असंखेजतिभागेणं ऊणा सेसा तं चेव पडिपुण्णं बंधति, जत्थ एगिंदिया न बंधति तत्थ एतेवि न बंधंति बेइंदिया णं भंते! जीवा मिच्छत्तवेयणिज्जस्स किं बंधति?, गो०! जह०सागरोवभपणवीसं पलिओवमस्स असंखेजइभागेण ऊणयं उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति, तिरिक्खजोणियाउयस्स ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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