Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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पुच्छा, गो० जह० अंतो० उक्को० सत्तरि सागरोवमको डाकोडीतो, बादरत सकाइया णं भंते! बादरतसकाइयत्ति कालओ केवचिरं होइ ?, गो० जह० अंतो० उक्को० दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमम्भहियाई, एतेसिं चेव अपजत्तगा सव्वेवि जह० उक्को० अंतो०, बादरपज्जत्ते णं भंते! बादरपज्जत्त पुच्छा, गो० ! जह० अंतो० उक्को० सागरोवमसतपुहुत्तं सातिरेगं, बादरपुढवीकाइयापज्जत्तए णं भंते! बादर० पुच्छा, गो० जह० अंतो० उक्को० संखिजाई वाससहस्साइं एवं आउकाइएवि, तेउकाइयपज्जत्तए णं भंते! तेउकाइयपज्ज० पुच्छा, गो० जह० अंतो० उक्को० संखिज्जाई राइंदियाई, वाउकाइयवणस्सइकाइयपत्तेयसरी रबादरवणय्फइकाइते पुच्छा, गो० ! जह० अंतो० उक्को० संखेजाई वाससहस्साइं निगोयपजत्तते० बादर निगोपज्जत्तएत्ति पुच्छा, गो० ! दोण्हवि जह० अंतो० उक्को० अंतो०, बादरत्सकाइयपजत्तए णं भंते! बादरत सकाइयपजत्तएत्ति कालतो केवचिरं होति !, गो० ! जह० अंतो० उक्को० सागरोवमसतपुहुत्तं सातिरेगं । दारं ५ | २३६ । सजोगी णं भंते! सजोगित्ति काल०?, गो० ! सजोगी दुविहे पं० तं० - अणादीए वा अपज्जवसिते अणादीए वा सपज्जवसिते, मणजोगी णं भंते! मणजोगित्ति कालतो ० ? गो० ! ज० एक्कं समयं उक्को० अंतो०, एवं वइजोगीवि. कायजोगी णं भंते! काल० ?, गो० ! जह० अंतो० उक्को० वणष्फइकालो, अजोगी णं भंते! अजोगित्ति कालओ केवचिरं होति ? गो० ! सादीए अपज्जवसिते ।दारं ६ । २३७ । सवेदए णं भंते! सवेदएत्ति०?, गो० ! सवेदए तिविधे पं० तं०- अणादीए वा अपज्जवसिते अणादीए वा सपज्जवसिए सादीए वा सपज्जवसिए, तत्थ णं जे से सादीए सपज्जवसिए से जह० अंतो० उक्को ० ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥
सागरजी म. संशोधित
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