Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 17
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ सू.१ नैरयिकजीवनिरूपणम् 'पढमाणं' इत्यादि, ' पढमाणं भंते ! पुढवी' प्रथमा खलु भदन्त ! पृथिवी 'कि नामा' किं नाम्नी किननादिकाल प्रसिद्धान्वर्थरहित नामवती 'किं गोत्रा किमन्वर्थयुक्तनामवती 'पन्नत्ता' प्रज्ञप्ता - कथितेति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'णामेणं धम्मा गोत्तेणं रयणप्पभा' नाम्ना धर्मा गोत्रेण रत्नप्रभा तथाचान्वर्थः रत्नानां प्रभा बाहुल्यं यत्र सा रत्नप्रभा रत्नबहुलेत्यर्थः । 'दोच्चाणं भंते ! पुढवी' द्वितीया खलु भदन्त ! पृथिवी 'किं नामा कि गोत्तापन्नता' किं नाम्नी किं गोत्रा च प्रज्ञप्तेति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'णामेणं वसा गोत्तेणं सक्करपभा' नाम्ना द्वितीया पृथिवी वंशा कथ्यते गोत्रेण च शर्कराप्रभा प्रज्ञप्ता, शर्कराणां प्रभा - बाहुल्यं यत्र सा शर्कराप्रभा शर्करा बहुलेत्यर्थः ' एवं एएणं अभिलावेणं सच्चासिं पुच्छा' एवम् कहते हैं- 'पढमाणं भंते! पुढवी किं नामा किं गोत्ता' हे भदन्त ! प्रथम पृथिवी किस नाम वाली है ? किस गोत्र वाली हैं ? क्या वह अनादि काल से प्रसिद्ध अन्वर्थ रहित नाम वाली है ? या अन्वर्थ युक्त नाम वाली है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! नामेणं धम्मा गोते रयणप्पभा' हे गौतम! प्रथम पृथिवी नाम से धर्मा है और गोत्र से रत्नप्रभा है क्योंकि रत्नों की प्रभा अर्थात् बाहुल्य यहां रहता है इसलिये यह सार्थक गोत्र वाली है 'दोच्चाणं भंते पुढवी किं नामा किं गोता पन्नत्ता' हे भदन्त ! द्वितीय पृथिवी किस नाम वाली और किस गोत्र वाली हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! नामेगं वंसा-गोत्तेर्ण सकरपभा' हे गौतम! द्वितीय पृथिवी नाम से वंशा है और गोत्र से शर्कराप्रभा है क्योंकि यहां पर शर्करा की प्रभा का बाहुल्य है 'एवं एएणं छे. 'पढमाणं भंते! पुढवी किं नामा किं गोत्ता' हे लगवन् पहेली पृथ्वीनु शु નામ છે ? અને તેનું ગેાત્ર શુ છે? શું તે અનાદિકાળથી પ્રસિદ્ધ અન્વ રહિત–વિનાના નામવાળી છે ? અથવા અન્ય ચેન્ગ્યુનામવાળી છે ? આ પ્રશ્ન ना उत्तरमा प्रभु गौतम स्वामीने हे छे } 'गोयमा ! णामेण घम्मा गोत्तेणं रयणसभा' हे गौतमा पहेली पृथ्वीतुं नाभधर्मा छे, अने तेनु गोत्र रत्नअला છે. કેમકે રત્નાની પ્રભા અર્થાત્ તેમાં રત્નાનું અધિકપણ રહે છે. તેથી તે सार्थ गोत्रवाणी छे. 'दोच्चा णं भंते! पुढवी किं नामा किं गोत्ता पण्णत्ता' हे ભગવત્ ખીજી પૃથ્વીનું શુંનામ છે? અને તેનુ ગેાત્ર શુ' છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरमा अहे 'गोयमा ! नामेणं वंसा गोत्तेणं सक्करप्पभा' हे गौतम! મીજી પૃથ્વીનુ નામ વશા છે, અને તેનુ ગાત્ર શ`રાપ્રભા છે. કેમકે ત્યાં शरानी अलानु अधि पशु रहे' छे. 'एवं एएणं अभिलावेणं सव्वासि જીવાભિગમસૂત્ર

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