Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ कुछ काल बाद पुन: उसमें भी व्यवधान प्रा गए। साम्प्रदायिक द्वेष, सैद्धान्तिक विग्रह तथा लिपिकारों की भाषाविषयक अल्पज्ञता प्रागमों की उपलब्धि तथा उनके सम्यक अर्थबोध में बहुत बड़ा विध्न बन गए। उन्नीसवीं शताब्दी के प्रथम चरण में जब पागम-मुद्रण की परम्परा चली तो पाठकों को कुछ सुविधा हुई। भागमों की प्राचीन टीकाएँ, चूणि व नियुक्ति जब प्रकाशित हुई तथा उनके आधार पर प्रागमों का सरल व स्पष्ट भावबोध मुद्रित होकर पाठकों को सुलभ हुआ तो पागमज्ञान का पठन-पाठन स्वभावत: बढ़ा, सैकड़ों जिज्ञासूनों में प्रागम-स्वाध्याय की प्रवृत्ति जगी व जैनेतर देशी-विदेशी विद्वान भी पागमों का अनुशीलन करने लगे। प्रागमों के प्रकाशन-सम्पादन-मुद्रण के कार्य में जिन विद्वानों तथा मनीषी श्रमणों ने ऐतिहासिक कार्य किया, पर्याप्त सामग्री के अभाव में आज उन सबका नामोल्लेख कर पाना कठिन है / फिर भी मैं स्थानकवासी परम्परा के कुछ महान् मुनियों का नाम ग्रहण अवश्य ही करूंगा। __पूज्य श्री अमोलकऋषिजी महाराज स्थानकवासी परम्परा के महान साहसी व दृढ़संकल्पबली मुनि थे, जिन्होंने अल्प साधनों के बल पर भी पूरे बत्तीस सूत्रों को हिन्दी में अन दित करके जन-जन को सुलभ बना दिया। पूरी बत्तीसी का सम्पादन, प्रकाशन एक ऐतिहासिक कार्य था, जिससे सम्पूर्ण स्थानकवासी व तेरापंथी समाज उपकृत हमा / गुरुदेव पूज्य स्वामी श्री जोरावरमलजी महाराज का एक संकल्प : मैं जब गुरुदेव स्व. स्वामी श्री जोरावरमलजी महाराज के तत्त्वावधान में आगमों का अध्ययन कर रहा था तब प्रागमोदय समिति द्वारा प्रकाशित कुछ आगम उपलब्ध थे। उन्हीं के आधार पर गुरुदेव मुझे अध्ययन कराते थे। उनको देखकर गुरुदेव को लगता था कि यह संस्करण यद्यपि काफी श्रम-साध्य है, एवं अब तक के उपलब्ध संस्करणों में काफी शृद्ध भी हैं, फिर भी अनेक स्थल अस्पष्ट हैं। मूल पाठ में एवं उसकी वृत्ति में कहीं-कहीं अन्तर भी है, कहीं वृत्ति बहुत संक्षिप्त है। गुरुदेव स्वामी श्री जोरावरमलजी महाराज स्वयं जैन सूत्रों के प्रकाण्ड पण्डित थे / उनकी मेधा बड़ी व्युत्पन्न व तर्कणा-प्रधान थी। प्रागमसाहित्य की यह स्थिति देखकर उन्हें बहुत पीड़ा होती और कई बार उन्होंने व्यक्त भी किया कि प्रागमों का शुद्ध, सुन्दर व सर्वोपयोगी प्रकाशन हो तो बहुत लोगों का कल्याण होगा, कुछ परिस्थितियों के कारण उनका संकल्प, मात्र भावना तक सीमित रहा। इसी बीच प्राचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज, जैनधर्मदिवाकर प्राचार्य श्री प्रात्मारामजी महाराज, पूज्य श्री घासीलालजी महाराज प्रादि विद्वान् मुनियों ने प्रागमों की सुन्दर व्याख्याएँ व टीकाएँ लिखकर अथवा अपने तत्त्वावधान में लिखाकर इसी कमी को पूरा किया है। वर्तमान में तेरापंथ सम्प्रदाय के प्राचार्य श्री तुलसी ने भी यह भगीरथ प्रयत्न प्रारम्भ किया है और अच्छे स्तर से उनका प्रागम-कार्य चल रहा है। मुनि श्री कन्हैयालालजी 'कमल' प्रागमों की वक्तव्यता को अनुयोगों में वर्गीकृत करने का मौलिक एवं महत्त्वपूर्ण प्रयास कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org