Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi Author(s): Madhukarmuni Publisher: Agam Prakashan Samiti View full book textPage 8
________________ प्रकाशकीय आगमप्रेमी स्वाध्यायशील पाठकों के कर-कमलों में 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' अंग, जो अपनी अनेक विशिष्टताओं के कारण 'भगवती' नाम से प्रख्यात है, समर्पित करते हुए सन्तोष और आनन्द का अनुभव होता है। व्याख्याप्रज्ञप्ति विशालकाय आगम है / प्रस्तुत ग्रंथ उसका प्रथम भाग है, जिसमें पांच शतकों का सनिवेश हुमा है। दूसरा भाग लगभग इतना ही दलदार प्रेस में दिया जा चुका है। इससे अागे का सम्पादन-कार्य चाल है। प्रस्तुत आगम समिति द्वारा अब तक प्रकाशित आगमों में से 14 वां ग्रन्थाङ्क है / इससे पूर्व विपाकश्रुत, नन्दी पौर प्रौपपातिक प्रादि सूत्र प्रकाशित किए जा चुके हैं। यशस्वी साहित्य सर्जक श्री देवेन्द्रमुनिजी म. शास्त्री भगवती की प्रस्तावना लिखने वाले थे और वह प्रथम भाग के साथ ही प्रकाशित होने वाली थी, किन्तु स्वास्थ्य अनुकल न होने के कारण प्रस्तावना लिखी नहीं जा सकी। अतएव वह अन्तिम भाग में दी जाएगी। प्रस्तुत प्रागम का अनुवाद एवं सम्पादन पण्डित प्रवर श्रमणसंघीय मुनिवर श्रीपद्मचंदजी म. (भंडारी) के सुयोग्य शिष्य मुनिवर श्री अमरमुनिजी म. तथा श्रीयुत श्रीचंदजी सुराणा ने किया है। मुनिश्री के इस अनुग्रहपूर्ण सहयोग के लिए समिति अतीव प्राभारी है। आगम-प्रकाशन का यह महान भगीरथ कार्य न व्यक्तिगत है, न सम्प्रदायगत / यह समग्र समाज के लिए समान रूप से उपयोगी है। अतएव हमारा यह आशा करना कि समग्र समाज एवं सभी मुनिराजों का हमें समान रूप से हादिक सहयोग प्राप्त होगा, उचित ही है। इसके मद्रण में श्रीमान सेठ हीराचन्दजी चौरड़िया साहब का विशिष्ट आथिक सहकार प्राप्त हया है। उनके प्रति भी हम प्राभारी हैं। आपके अतिरिक्त सभी अर्थसह्योगी सदस्य महानुभावों के प्रति अपनी कृतज्ञताभावना प्रकट करना भी हम अपना कर्त्तव्य समझते हैं। आगमवेत्ता विद्वानों के सहयोग के बिना भी यह पुण्य-कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता / अतएव हम उन सब विद्वानों के भी ग्राभारी हैं, जिनका प्रत्यक्ष-परोन सह्योग हमें प्राप्त हो रहा है। पागमप्रकाशन समिति प्रकाशित भागमों का मूल्य लागत से भी कम रखती है। अग्निम ग्राहकों में से संघ, शिक्षणसंस्था, पुस्तकालय आदि को 700 रु. में तथा व्यक्तियों को 1000 रु. में सम्पूर्ण बत्तीसी दी जाने वाली है। यह मूल्य लागत की तुलना में बहुत ही कम है। इसके पीछे एकमात्र भावना यही है कि ग्राममों का प्रचारप्रसार अधिक से अधिक हो और भ. महावीर की पावन वाणी से अधिक से अधिक लोग लाभान्वित खेद है कि समाज में आगमज्ञान की वह तीव्र पिपासा दष्टिगोचर नहीं होती। यही कारण है कि अग्रिम ग्राहकों की जितनी संख्या होनी चाहिए, नहीं हो पाई है। हम अर्थसहयोगी सदस्यों से तथा अग्निम ग्राहक महानुभावों से निवेदन करना चाहते हैं कि वे प्रत्येक कम से कम पांच अग्रिम ग्राहक बना कर समिति के पावन उद्देश्य की पूत्ति में भी सहयोगी बनें / तथा श्रमसंघीय युवाचार्य पण्डितप्रवर मुनिश्री मिश्रीमलजी म. सा. ने जो घोर श्रमसाध्य पवित्रतम उत्तरदायित्व अपने कंधों पर अोढ़ा है उसमें सहभागी बने / रतनचंद मोदी अध्यक्ष जतनराज मेहता चांदमल विनायकिया प्रधानमंत्री श्री आगम प्रकाशन समिति, ज्यावर (राज.) मंत्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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