Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 03 Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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ओगाहणा जहन्नेणं तिनि गाउयाई उक्कोसेणवि तिनि गाउयाई सेसं जहेव तिरिक्खजोणियाणं, सो चेव अपणा जहनकालठितीओ/ जाओ तस्सवि जहन्नकालठितियतिरिक्खजोणियसरिसा तिनि गमगा नवरं सरीरोगाहणा तिसुवि गमएसु जह० साइरेगाइं पंचधणुसयाई उकोसेणविसातिरेगाइं पंचधणुसयाई सेसं तं चेव, सो चेव अप्पणा उकोसकालठितीओ जाओ तस्सवि ते चेव पच्छिल्लगा तिन्नि गमगा भाणियव्या नवरं सरीरोगाहणा तिसुवि गमएसु जहन्नेणं तिनि गाउयाई उक्कोसेणवि तिन्नि गाउयाई अवसेसं तं चेव, जइ संखेजवासाउयसन्निमणुस्सेहितो उववज्जइ किं प्रज्जत्तसंखेजवासाउय० अपजत्तसंखेजवासाउय०?, गोयमा! पजत्तसंखेज० णो अपज्जत्तसंखेज०, पज्जत्तसंखेजवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते! जे भविए असुरकुमारेसु उववजित्तए से णं भंते! केवतिकालठितीएसु उववज्जेजा?, गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्स० उक्कोसेणं साइरेगसागरोवमठितीएसु उववजेजा, ते णं भंते! जीवा एवं जहेव एतेसिं रयणप्यभाए उववजमाणाणं णव गमगा तहेव इहवि णव गमगा भाणियव्वा णवरं संवेहो सातिरेगेणं सागरोवमेणं कायव्यो सेसं तं चेव । सेवं भंते! २ ति ।६९९ ॥ श० २४ ३०२॥
रायगिहे जाव एवं क्यासी नागकुमाराणं भंते! कओहिंतो उववजति किं नेरइएहिंतो उवजति तिरि० मणु० देवेहितो उववजति?, गोयमा! णो णेरइएहितो उववजति तिरिक्खजोणिय० मणुस्सेहिंतो उववजति नो देवेहिंतो उववजति, जइ तिरिक्ख एवं जहा असुरकुमाराणं वत्तव्वया तहा एतेसिपि जाव असन्नीति, जइ सन्निपंचिंदियतिरिक्व० किं संखेजवासाउय० असंखेजवा?, गोयमा! ॥ ॥श्रीभगवती सूत्रं ॥ ।
पू. सागरजी म. संशोधित
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