Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 03 Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 147
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir लेस्सा सणंकुमारमाहिंदबंभलोएसुएगा पम्हलेस्सा सेसाणं एगा सुक्कलेस्सा, वेदे नो इत्थिवेदगा पुरिसवेदगाणो नपुंसगवेदगा, आउअणुबंधा जहा ठितिपदे सेसं जहेव ईसाणगाणं कायसंवेहं च जाणेजा सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति । ७१२ ॥श० २४ ३० २० ॥ ___ मणुस्सा णं भंते! कओहिंतो उवव० किं नेरइएहितो उवव० जाव देवेहितो उवव०?, गोयमा! णेरइएहितोऽवि उवव० जाव देवेहितोऽवि उव०, एवं उववाओ जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणिउद्देसए जाव तमापुढवीनेरइएहितोऽवि उववजति णो अहेसत्तमपुढवीनेरइएहितो उवव०, रयणप्पभापुढवीनेरइए णं भंते! जे भविए भणुस्सेसु उवव० से णं भंते! केवतिकाल०?, गोयमा! जह० मासपुहुत्तठितीएसु उक्कोसेणं पुवकोडीआउएसु अवसेसा वृत्तव्वया जहा पंचिंदियतिरिक्खजो० उववजंतस्स तहेव नवरं परिमाणे जह० एको वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेजा उववजंति, जहा तहिं अंतोमुहुत्तेहिं तहा इहं मासपहत्तेहिं संवेहं करेजा, सेसं तं चेव, जहा रयणप्पभाए वत्तव्वया तहा सकरप्पभाएऽवि वत्तव्वया नवरं जहन्नेणं वास हुत्तढिइएसु उक्कोसेगं पुव्वकोडी, ओगाहणालेस्साणाणठिति अणुबंध संवेहणाणत्तं च जाणेजा जहेव तिरिक्खजोणियउद्देसए एवं जाव तमापुढवीनेरइए, जइ तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति किं एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उवव० जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उवव०?, गोयमा! एगिदियतिरिक्खजोणिए० भेदो जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणिउद्देसए नवरं तेउवाऊ पडिसेहेयव्वा, सेसं तं चेव जाव पुढविकाइए णं भंते! जे भविए मणुस्सेसु उववजित्तए से णं भंते! केवति०?, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुत्तठितिएसु उक्कोसेणं पुव्वकोडीआउएसु उवव०, ते णं भंते ! जीवा एवं || ॥श्रीभगवती सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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