Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 03 Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 152
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir | ठितिं अणुबंधं संवेहं च उभओठितीएस जाणेज्जा, जइ मणुस्स० असंखेजवासाउयाणं जहेव नागकुमाराणं उद्देसे तहेव वत्तव्वया नवरं तइयगमए विती जहन्नेणं पलिओवमं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई ओगाहणा जहन्नेणं गाउयं उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाई सेसं तहेव संवेहो से जहा एत्थ उद्देसए असंखेज्जवासाज्यसन्निपंचिंदियाणं, संखेज्जवासाज्यसन्निमणुस्से जहेव नागकुमारुद्देसए नवरं वाणमंतर ठितिं संवेहं च जाणेज्जा | सेवं भंते! २ त्ति ॥ ७१४ ॥ २१० २४३० २२ ॥ जोइसिया णं भंते! कओहिंतो उववजंति किं नेरइए० भेदो जाव सन्निपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उवव० असन्निपंचिंदियतिरिक्ख०, जइ सन्नि०, किं संखेज०, असंखेज ०?, गोयमा ! संखेज्जवासाज्य० असंखेज्जवासाज्य०, सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए जोतिसिएस उवव。 से णं भंते! केवति०?, गोयमा ! जहन्नेणं अठ्ठभागपलि ओवमट्ठितिएसु उक्को सेणं पलिओवमवाससयसह स्सठितिएसु उवव०, अवसेसं जहा असुरकुमारुद्देसए नवरं ठिती जहनेणं अट्ठभागपलि ओवमं उक्को० तिन्नि पलिओक्माई, एवं अणुबंधोऽवि, सेसं तहेव, नवरं कालादे० जह० दो अट्ठभागपलि ओवमाई उक्को० चत्तारि पनिओवमाइं वासंसय सहस्समब्भहियाई एवतियं०, सो चेव जहन्नकालठितीएस उववन्नो अट्ठभागपलि ओवमठितिएसएस चेव वत्तव्वया नवरं कालादेस जाणेज्जा, सो चेव उक्कोसकालठिइएस उवव० एस चेव वत्तव्वया णवरं विती जह० पलिओवमं वाससयसहस्समम्भहियं उक्को० तिन्नि पलिओवमाई, एवं अणुबंधोऽवि, कालादे० जह० दो पलिओवमाई दोहिं वाससयसहस्सेहिमब्महि० उक्को० चत्तारि ॥ श्रीभगवती सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित www.kobatirth.org १४२ For Private And Personal

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