Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 03 Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 146
________________ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir || केवति ?, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तठितीएस उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएस उवव०, असुरकुमारा णं लद्धी णवसुवि गमएसु जहा | | पुढविक्काइएस उववज्जमाणस्स एवं जाव ईसाणदेवस्स तहेव लद्धी, भवादेसेणं सव्वत्थ अट्ठ भवग्गहणाई उक्को० जह० दोन्नि, भवद्वितिं संवेहं च सव्वत्थ जाणेज्जा, नागकुमारे णं जे भविए एस चेव वत्तव्वया नवरं ठितिं संवेहं च जाणेज्जा एवं जाव थणियकुमारा, जइ वाणमंतरे किं पिसाय० तहेव जाव वाणमंतरे णं भंते! जे भविए पंचिंदियतिरिक्ख० एवं चेव नवरं ठितिं संवेहं च जाणेज्जा, जइ जोतिसिय० उववाओ तहेव जाव जोतिसिए णं भंते ! जे भविए पंचिदियतिरिक्ख० एस चेव वत्तव्वया जहा पुढविक्काइयउद्देसए भवग्गहणाई णवुसिव गमएस अट्ठ जाव कालादे० जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तमम्भहियं उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं चउहि य वासस्यसहस्सेहिं अब्महियाई एवतियं०, एवं नवसुवि गमएसु नवरं ठितिसंवेहं च जाणेज्जा, जइ वेमाणियदेवे किं कप्पोवग० कप्पातीतवेमाणिय०?, गोयमा ! कप्पोवगवेमाणिय० नो कप्पातीतवेमा०, जइ कप्पोवग०, जइ कप्पोवग० | जाव सहस्सारकम्पोवगवेमाणियदेवेहिंतोऽवि उवव० नो आणय जाव णो अच्चुयकम्पोवगवेमा०, सोहम्मदेवे णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोगिएसु उववज्जित्तए से णं भंते ! केवति० ?, गोयमा ! जह० अंतोमु० उक्को० पुव्वकोडीआरएस सेसं जहेव पुढविक्वाइय उद्देसए नवसुवि गमएस नवरं जहनेणं दो भवग्गहणाई उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई ठितिं कालादेसं च जाणिज्जा, एवं ईसाणदेवेऽवि, एवं एएणं कमेणं अवसेसावि जाव सहस्सारदेवेसु उववाएयव्वा नवरं ओगाहणा जहा ओगाहणा जहा ओगाहणासंठाणे, ॥ श्रीभगवती सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३६ For Private And Personal

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