Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 03 Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 136
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir | ईसाणदेवेणवि णव गमगा भाणि०, नवरं ठिती अणुबंधो जहन्नेणं सातिरेगं पलिओवमं उक्कोसेणं सातिरेगाईं दो सागरोवमाई सेसं तं चेव । सेवं भंते! २ जाव विहरति । ७०४ ॥ ० २४ ३० १२ ॥ आउकाइया णं भंते! कओहिंतो उवव० एवं जहेव पुढविक्वाइय उद्देस जाव पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए आउक्काइएस उववज्जित्तए से णं भंते ! केवति० ?, गोयमा ! जहनेणं अंतोमु० उक्कोसेणं सत्त्वाससहस्सट्ठिइएस उववज्जेज्जा एवं पुढविक्काइय उद्देसगसरिसो भाणियव्वो णवरं ठितिं संवेहं च जाणेज्जा, सेसं तहेव । सेवं भंते! २ त्ति ! ७०५ ॥ २०२४ ३०१३ ॥ ते उक्काइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति एवं पुढविक्वाइय उद्देसगसरिसो उद्देसो भाणियव्वो नवरं ठितिं संवेहं च जाणेज्जा, | देवेहिंतो ण उवव०, सेसं तं चेव । सेवं भंते! २ जाव विहरति । ७०६ ॥ ० २४३० १४ ॥ वाउक्काइया णं भंते! कओहिंतो उवव० एवं जहेव ते उक्काइयउद्देसओ तहेव नवरं ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेवं भंते! रत्ति । ७०७ ॥ १० २४३०१५ ॥ वणस्सइकाइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति?, एवं पुढवीकाइयसरिसो उद्देसो नवरं जाहे वणस्सइकाइओ वणस्सइकाइएसु उववज्जति ताहे पढमबितियच उत्थपंचमेसु गमएस परिमाणं अणुसमयं अविरहियं अनंता उवव० भवादे० जह० दो भवग्गह० उक्को० अनंताई भवग्गहणाई कालादे० जह० दो अंतोमु० उक्कोसेणं अनंतं कालं एवतियं०, सेसा पंच गमा अट्ठभवग्गहणिया तहेव नवरं ॥ श्रीभगवती सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित १२६ For Private And Personal

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