Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 01 Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 222
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३००॥कम्हा गंभंते! सक्के देविंद देवराया चभरे य असुरिंदे असुरकुमारराया कूणियस्स स्त्री साहेज्जं दलइत्था? गोयमा! सके देविंदे|| देवराया पुन्वसंगतिए चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया परियायसंगतिए, एवं खलु गोयमा! सक्के देविंदे देवराया चमरे य असुरिंदे असुरकुमारराया कूणियस्स रनो साहिजं दलइत्था ॥ ३०१॥ बहुजणे णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खति जाव पवेति एवं खलु बहवे मणुस्सा अन्नयरेसु उच्चावरसु संगामेसु अभिमुहा (प्र० हया) चेव पहया समाा कालमासे कालं किच्चा अनयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, से कहभेयं भंते! एवं?, गोयमा! जण्णं से बहुजणो अन्नमन्नस्सएं आइक्खति जाव उववतारो भवंति जे ते एवमासु मिच्छंते एवमाहंसु, अहं पुष गोयमा! एवमाइक्खामि जाव पवेमि एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं० साली नामं नगरी होत्या, वण्णओ, तत्थं णं वेसालीए गरीए वरुणे नाम णागनत्तुए परिवसइ अड्डे जाव अपरिभूए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे छठेछट्टेणं अनिक्खित्तेणं तवोकभ्मेणं अयाणं भावेमाणे विहरति, तए णं से वरूणे णागनत्तुए अन्नया क्याइ रायाभिओगेणं गणाभि० बलाभियोगेणं रहमुसले संगामे आणते समाणे छ?भत्तिए अहम भत्तं अणुवदृति कोडुंबियपुरिसे सदावेइ त्ता एवं वदासी खिप्यामेव भो देवाणुप्पिया! चाउग्घंट आसरहं जुत्तामेव उवठ्ठावेह हयगयरहपवर जाव सनाहेता मम एयमाणत्तियं, पच्चष्मिणह, तए णं ते कोडुबियपुरिसा जाव पडिसुणेत्ता खियामेव सच्छत्तं सज्झयं जाव उवद्वाति हयगयरह जाव सत्राति त्ता जेणेव वरुणे नागनत्तए जाव पच्चप्पिणति, तए णं से वरुणे नागनत्तुए जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छति जहा कृणिओ जाव || ॥ श्रीभगवती सूत्र ॥ [पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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