Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 01 Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 277
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org | खेत्तं ओभासंति नो अणागयं खेत्तं ओभासंति, तं भंते! किं पुढं ओभासंति अपुठ्ठे ओभासंति ?, गोयमा ! पुठ्ठे ओभासंति नो अपुट्ठे | ओभासंति जाव नियमा छद्दिसिं, जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया किं तीयं खेत्तं उज्जोवेंति०?, एवं चैव जाव नियमा छद्दिसिं, एवं तवेंति एवं भासंति जाव नियमा छिद्दिसिं, जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरियाणं किं तीए खेत्ते किरिया कज्जड़ पडुप्पने खेत्ते किरिया कज्जइ अणागए खेत्ते किरिया कज्जइ ? गोयमा ! नो तीए खेत्ते किरिया कज्जइ पडुप्पने खेत्ते किरिया कज्जइ णो अणागए खेत्ते किरिया कज्जइ, सा भंते! किं पुट्ठा कज्जति अपुट्ठा कज्जइ ?, गोयमा ! पुट्ठा कज्जइ नो अयुट्ठा जति जाव नियमा छद्दिसिं, जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया के वतियं खेत्तं उड्ढं त्वंति के वतियं खेत्तं अहे तवंति के वतियं खेत्तं तिरियं तवंति ?, गोयमा ! एगं जोयणस्यं उड्ढं त्वंति अट्ठारस जोयणसयाई अहे तवंति सीयालीसं जोयणसहस्साइं दोत्रि तेवडे जोयणसए एक्कवीसं च सट्टियाए जोयणस्स तिरियं तवंति, अंतो णं भंते! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिमसूरियगह गणणक्खत्ततारारूवा ते णं भंते ! देवा किं उढोववन्नगा जहा जीवाभिगमे तहेव निरवसेसं जाव उक्कोसेणं छम्मासा, बहिया णं भंते ! माणुसुत्तरस्स जहा जीवाभिगमे जाव इंदट्ठाणे णं भंते ! केवतियं कालं उववाएणं विरहिए पं० ?, गोयमा ! जहत्रेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं छम्मासा । सेवं भंते ! सेवं भंते ! | ३४३ ॥ १० ८ ३० ८ ॥ कइविहे णं भंते ! बंधे पं० ?, गोयमा ! दुविहे बंधे पं० नं० - पयोगबंधे य वीससाबंधे ये । ३४४ । वीससाबंधे णं भंते ! कतिविहे पं० ?, गोयमा ! दुविहे पं० नं० - साइयवीससाबंधे य अणाइयवीससाबंधे य, अणाइयवीससाबंधे णं भंते ! कतिविहे पं० ?, गोयमा ! | पू. सागरजी म. संशोधित ॥ श्रीभगवती सूत्रं ॥ २६५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only

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