Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 20
________________ वर्गीकृत विषयानुक्रम अनुत्तरोपपातिकदशा विषय आदि-आदि का वर्णन-प्र०१७ प्रश्नव्याकरण विषय आदि-आदि का वर्णन-प्र०६८ विपाकश्रुत १. प्रागम गणिपिटक (द्वादशांगो) द्वादशांगी के नाम-१/२ तीन गणिपिटकों-आचार, सूत्रकृत और स्थान के अध्ययनों की संख्या-५७११ गणिपिटक के बारह अंग और उनका सम्पूर्ण वर्णन-प्र० ८८-१३४ आचार ब्रह्मचर्य (आचार) के अध्ययनों की संख्या-६।३ चलिका सहित परिमाण-१८१४ चूलिका सहित अध्ययनों की संख्या-२५।५ उद्देशन-काल-५१११ चूलिका सहित उद्देशन-काल-८५११ विषय आदि आदि का वर्णन-प्र० ८६ सुकृत और दुष्कृत कर्मों के फल-विपाक वाले दस-दस अध्ययनों का वर्णन-प्र०६९ दुष्टिवाद सूत्र और उनका विषय-२२॥२-५; ८८२ मातृकापद-४६१ प्रकार, भेद-प्रभेद, विषय आदि-आदि का वर्णन-प्र० १००-१३१ सूत्रकृत अध्ययनों के नाम-१६।१ अध्ययनों की संख्या-२३।१ विषय आदि-आदि का वर्णन-प्र०६० स्थान विषय आदि-आदि का वर्णन-प्र०६१ समवाय विषय आदि-आदि का वर्णन-प्र० ६२ नाम-प्र० २६१ व्याख्याप्रज्ञप्ति महायुग्मशत-८१३ पद-परिमाण-८४१११ विषय आदि-आदि का वर्णन-प्र०६३ ज्ञाता-धर्मकथा अध्ययनों की संख्या-१६१ विषय आदि-आदि का वर्णन-प्र०६४ प्राणायु पूर्व के वस्तु-१३।६ पूर्वो की संख्या-१४।२ अग्रेणीय पूर्व के वस्तु–१४१३ विद्यानुप्रवाद पूर्व के वस्तु-१५८ आत्मप्रवाद पूर्व के वस्तु-१६५ अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व के वस्तु–१८१६ प्रत्याख्यान पूर्व के वस्तु-२०१६ लोकबिन्दुसार पूर्व के वस्तु–२५६ वीयं पूर्व के प्राभृत-७१२२ प्रकीर्ण दशाश्रुतस्कंध, कल्प और व्यवहार के उद्देशन-काल-२६१ आचार-प्रकल्प (निशीथ) के प्रकार-२८।१ उत्तराध्ययन सूत्र के अध्ययनों के नाम-३६.१ क्षल्लिकाविमानप्रविभक्ति के प्रथम वर्ग के उद्देशन-काल-३७१४ क्षुल्लिकाविमानप्रविभक्ति के दूसरे वर्ग के उद्देशन-काल-३८४ क्षुल्लिकाविमानप्रविभक्ति के तीसरे वर्ग के उद्देशन-काल-४०१५ महतीविमानप्रविभक्ति के प्रथम वर्ग के उद्देशन-काल-४१।३ महतीविमानप्रविभक्ति के दूसरे वर्ग के उद्देशन-काल-४२१८ कर्मविपाक के अध्ययनों की संख्या-४३१ महतीविमानप्रविभक्ति के तीसरे वर्ग के उद्देशन-काल-४३१५ ऋषिभाषितों की संख्या-४४१ महतीविमानप्रविभक्ति के चौथे वर्ग के उद्देशन-काल-४४१४ उपासकदशा विषय आदि-आदि का वर्णन—प्र०६५ अन्तकृतदशा विषय आदि-आदि का वर्णन-प्र०६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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