Book Title: Adhyatmik Hariyali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Narpatsinh Lodha

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तकने लगते हैं। उत्तर बता देने पर जब वह उत्तर उनका जाना पहचाना लगता है तो तिलमिला ठते हैं। उन्हें अपनी यह हार बड़ी मीठो लगती है। राजस्थान हीयाली के एक-दो उदाहरण देखिये !- ऊंडो रोटो घी घणो रे, बैरे माँय उडदों दाल, म्होरा राज । पुरीसण आली पदमणी रे, पो तो जीमण पालो गंवार, म्होंरा०॥ म्होरो हीयाली रो अरथ करो। जे थाने अरथ न उकल रे, थारे बडौर वीर ने तैडावो, म्होंरा० ।। म्होंरी हीयाली रो अरथ करो। (उत्तर :- मतीरा, तरबूज, खरबूजा) आठ कूपा रे नव बावडी रे, वो तो दोसै समद तलाब, म्होंरा० । हाथी घोड़ा डूब यया रे, मणिहारी खाली जाय, म्होंरा० । म्होरी रे हीयाली रो अरथ करो ॥ जे थांने अरथ न उकलै रे, थारे काकोजो ने तैडावो, म्होंरा राज। ग म्होरी रे हीयाली रो अरथ करो। RISTIPTIST (उत्तर :- काच, दर्पण, आदर्श) इस प्रकार हरियाली या हीयाली प्राचीन गुजराती राजस्थानी साहित्य की एक मनोरंजक विद्या है, जिसके पठन पाठन द्वारा पाठक अपनी बुद्धि को तीक्ष्ण करते हुए साहित्य का रसास्वादन तो करेंगे ही, साथ ही उसके गूढ अर्थ को जान कर धार्मिक आध्यात्मिक ज्ञान की वृद्धि भी कर सकेंगे। P SITE जज जोधप -पन्यास धरोन्द्र सागर 23-11-1987 म For Private And Personal Use Only

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