Book Title: Adhyatmik Hariyali Author(s): Buddhisagar Publisher: Narpatsinh Lodha View full book textPage 5
________________ www.kobatirth.org ज्ञानी पुरुष अपने केवलज्ञान से ब्रह्म रूप तीनों लोकों के सर्व किंतु अपने नेत्रों द्वारा राग द्वेष इसीलिये पद्य में कहा है कि अंधा Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पित संसार का अनुभव करता है पूर्वक बाह्य पदार्थो को हनीं देखता, तीन लोक को देखे । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुकूल प्रतिकूल बाह्य शब्दों को राग द्वेष पूर्वक सुनने के स्वभाव से जो निवृत्त हो चुके हैं, वे ध्यान मग्न होने से कुछ भी बाह्य शब्द नहीं सुनते इसलिये उन्हें बहरे की उपमा दी गई है, किंतु वे अनहद ध्वनि रूपी अनेक प्रकार के नाद को सुनते हैं । नासिका द्वारा आते जाते प्राण और अपान वायु को वश में रखने वाले और प्रतिष्ठा की स्पृहा नहीं रखने वाले योगी को नकटे की उपमा दी गई है, वे अपने हृदय स्थित ब्रह्म रूपी कमल के आनन्द रूप गंध का अनुभव करते हैं । THIFFOR वाणी से सत्य, हित, प्रिय और मित बोलने वाले या वारणी से परे रहने वाले योगी को गूंगे की उपमा दी गई है, ऐसी योगी अजपाजाप रूपी सुन्दर वाद करते हैं, अतः गूंगे का संवाद करना कहा गया है । कर्त्ता या भोक्ता के अभिमान से दूर हैं उनके राग द्वेष रूपी दोनों हाथ न होने से उन्हें ठूंठा कहा गया है, ऐसे व्यक्ति अपने अन्तःकरण रूपी पृथ्वी से बड़े पर्वत को भी उठा देते हैं । संकल्प विकल्प रूपी पाँव से जो रहित हैं, ऐसे ज्ञानी व्यक्ति को पंगु की उपमा दी गई है, वे स्वयं के सर्व व्यापक स्वरूप का अनुभव करते हैं अत: उन्हें नृत्य का आनन्द लेना बताया गया है । सुन्दरदासजी कहते है कि जो व्यक्ति इस पद्य के गूढ अर्थ पर विचार करेंगे, वे ब्रह्म रूपी उत्तम सुख का अनुभव करेंगे । fp TS राजस्थानी भाषा में इसको 'हींयाली' कहते हैं । यह पद्य में है और गेय है । हींयाली साहित्य १२ वीं १३ वीं शताब्दी तक का मिलता है । हरियाली को सुनकर बच्चे, युवा, वृद्ध सभी अपनी बुद्धि को दौड़ाते हैं । किंतु जब उत्तर नहीं मिलता तो पूछने वाले का मुँह For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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