Book Title: Adhyatmik Hariyali Author(s): Buddhisagar Publisher: Narpatsinh Lodha View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -: प्रस्तावना :हरियाली साहित्य का एक ऐसा गंभीर सागर है, जिसमें गोता लगाने पर गोताखोर को अनायास ही अनेक अनमोल मोती प्राप्त हो जाते हैं। हरियाली का अर्थ है बुद्धि को तीक्ष्ण करने वाला यंत्र । साथ ही हरियाली के पद्य लोगों का मनोरंजन भी करते हैं और यात्रा आदि में समय व्यतीत करने का एक अच्छा साधन भी है। समयव्यतीत करने के लिये ताश खेलने या सस्ते कामोत्तेजक उपन्यास पढ़ने की अपेक्षा हरियाली के पद्यों के उत्तर ढूंढ़ने पर आपकी बुद्धि भी बढ़ेगी और साहित्य का ज्ञान भी होगा। जैन परिभाषा में हरियाली का अर्थ है ऐसा पद्य जो सरसरी दृष्टि से देखने पर विचित्र और परस्पर विरोधी लगे किंतु उसका वास्तविक अर्थ कुछ और ही हो। गुजराती में इसे विपरीत वाणी, अव्वल वाणी या अवली वाणी भी कहते हैं। हिन्दी में इसे द्विअर्थात्मक व्यंग पद्य भी कह सकते हैं। संस्कृत अलंकार साहित्य में इसे विपर्यय अलंकार कहा जाता है। सत्य बात को विपरीत भाषा में कहने की कला, जिससे वह सत्य भी पढ़ने वाले को असंभव सा लगे, इसी को विपर्यय कहा जाता है। सुन्दर विलास में ऐसे अनेक विपर्यय दिखाये गये हैं, जैसे :अंधा तीन लोक कुं देखे, बरा सुने बहुत विध नाद। नकटा बास कमल की लेवे, गूंगा करे बहुत संवाद ॥१॥ ठ्ठा पकरी उठावे परवत, पंगु करे निरत प्रहलाद । जो कोउ या को प्ररथ विचारे, ज न -सुन्दर सोई पामे स्वाद ॥२॥ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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