________________ की अपवित्रता, प्राणी का सर्वस्व हरण करने वाली और बन्धन में विशेष कारण स्त्रियां हैं, उनके स्नेह में फसे हुए पुरुष को दुःखप्राप्ति, स्त्री का संबन्ध सर्वथा त्याज्य है इसका निरूपण, और उसके त्याग के कारण, स्त्री के हस्तस्पर्श करने का निषेध, तथा स्त्री के साथ विहार, स्वाध्याय, आहार,उच्चार, प्रस्रवण, परिष्ठापनिका, और धर्मकथादि करने का भी निषेध इत्यादि बहुत अच्छे 20 विषय द्रष्टव्य हैं। 16- 'इस्सर' शब्द पर ईश्वर के जगत्कर्तृत्व का खण्डन, तथा ईश्वर के एकत्व और विभुत्व का खण्डन, अन्य तीर्थकों के माने हुए ईश्वर का खण्डन आदि विषय विचारने के योग्य हैं। 17- 'उईरणा' शब्द भी द्रष्टव्य है, और 'उववाय' शब्द पर 30 विषय ध्यान रखने के योग्य हैं, जैसे-देवता देवलोक में क्यों उत्पन्न होते हैं, अविराधित श्रामण्य होने पर देवलोक में उपपात होता है, और नैरयिक कैसे उत्पन्न होते हैं इत्यादि विषयों पर विचार है। 18- 'उवसंपया' शब्द पर आचार्यादि के काल कर जाने पर साधू के अन्यत्र गमन करने पर विचार, हानि और वृद्धि की परीक्षा करके कर्तव्याकर्तव्य का निरूपण, भिक्षु का एक गण से निकल कर दूसरे गण में प्राप्त हो के विहार, तथा इसी का दूसरा प्रकार, कुगुरु होने पर अन्यत्र गमन करना इत्यादि विचार है। 16- 'उवसम्ग' शब्द पर उपसर्ग की व्याख्या, उपसर्गकारी के भेद से उपसर्ग के भेद, और उपसर्ग का सहन, तथा संयमों का रूक्षत्व आदि विषय हैं। 20- 'उवहि' शब्द पर उपधि के भेद, जिनकल्पिक और स्थविरकल्पिकों के उपधि, जिन कल्पिक और गच्छवासियों के उपधि में उत्कृष्ट विभाग प्रमाण, उपधि के न्यूनाधिक्य में प्रायश्चित्त, प्रथम प्रव्रज्या के ग्रहण करने पर उपधि, प्रव्रज्या को ग्रहण करती हुई निर्ग्रन्थी के उपधि, रात्रि में अथवा विकाल में उपधि का ग्रहण, भिक्षा के लिए गए हुए साधु के उपकरण गिर जाने पर विधि, स्थविरों के ग्रहण योग्य उपधि, साध्वियों को जो उपधि देता हो उसे उनके आने के मार्ग में रख देना चाहिए इत्यादि विषय उपयोगी हैं। 21- 'उसम' शब्द पर ऋषभस्वामी के पूर्व भव का चरित्र, ऋषभस्वामी के तीर्थङ्कर होने में कारण, ऋषभस्वामी का जन्म और जन्ममहोत्सव, ऋषभस्वामी के नाम, और उनकी वृद्धि, और उनका विवाह, पुत्र, नीतिव्यवस्था, राज्याभिषेक, राज्यसंग्रह, लोकस्थिति के लिए शिल्पादि का शिक्षण, वास, तदनन्तर ऋषभस्वामी के पुत्र का अभिषेक, ऋषभस्वामी का दीक्षाकल्याणक, और उनके चीवरधारी होने का कालप्रमाण, भिक्षाकाल का प्रमाण, ऋषमस्वामी के आठ भवों का श्रेयांसकुमार के द्वारा कथन, ऋषभनाथ का श्रामण्य के बाद प्रवर्तनप्रकार श्रामण्यावस्थावर्णन, केवलोत्पत्त्यनन्तर धर्मकथन, ऋषभस्वामी के वन्दनार्थ मरुदेवी के साथ भरत को गमन, और भरत का दिग्विजय, ब्राह्मणों की उत्पत्ति का प्रकार, ऋषभस्वामी की सङ्घसङ्ख्या, और उनके केवल ज्ञान उत्पन्न होने के बाद कितने कालानन्तर भव्यों का सिद्धिगमन प्रवृत्त हुवा, और कब कहा रहा, ऋषभस्वामी के जन्मकल्याणकादि के नक्षत्र, और उनके शरीर की संपत्ति, शरीर का प्रमाण, कुमारावस्था में तथा राज्य करने के समय में और गृहस्थावस्था में जितना काल है उसका मान, ऋषभस्वामी का निर्वाण इत्यादि विषय स्थित हैं। इस से अतिरिक्त भी विषय इस भाग में स्थित हैं जिनका विस्तार के भय से निरूपण नहीं हो सकता। द्वितीय भाग में जिन जिन शब्दों पर कथा या उपकथायें आई हुई हैं उनकी नामावली'आउ' 'आणंद,' 'आधाकम्म,' 'आपई,' 'आभीरवंचग,' 'आयरिय,' 'आराहणा,' 'आरुग्गदिय,' 'आलंबण, 'आलोयणा,' 'आसाढभूइ,''इंददत्त,''इंदभूइ,' 'इच्छकार, 'इत्थिपरिसह, 'इत्थी,' 'इलापुत्त,''इसिभद्दपुत्त, 'इसिभासिय, "इस्सर,' 'उउंबरदत्त,' 'उक्कम,' 'उवघायमाण, "उज्जयंत,' 'उज्जुमतिववहार, 'उज्जुववहार,' 'उज्झियय,' 'उण्हपरीसह,' 'उदयण,' "उदयप्पभसूरि,' 'उद्देसिय,' 'उप्पत्तिय,' 'उप्पत्तिया,' 'उरब्भ,''उववूह,' 'उवसंपया, "उवहि, "उवालंभ,''उस्सारकप्प, इत्यादि शब्दों पर कथायें द्रष्टव्य हैं।