________________ 42 दीक्षाशिविका, दिक्कुमारीकृत्य, अष्टकुमारियों के नाम, और इनके आसनों का चलन, गमनावसर में क्या करती हैं, तीर्थकरमाताओं को नमस्कार, इनका कर्तव्य, दक्षिणरुचकवासियों का कृत्य, पश्चिमरुचकवासियों का कृत्य, उदीची में रुचकवासियों का कृत्य इत्यादि, देवदूष्यवस्त्र, देवदूष्यवस्त्रस्थिति, धर्मप्रभेद, धर्मोप्रदेशक, नाम तीर्थकरों के, पञ्चकल्याणक, पर्यायान्तकृतभूमि, प्रतिक्रमणसंख्या, प्रथमगणधरनाम, प्रथमप्रवर्तिनी, प्रथमाश्रावक, प्रथमश्राविका, प्रत्येकबुद्धसंख्या, प्रमाद परिवह, पारणाकाल, पारणाद्रव्य, पारणादायक, पारणादायकगति, पारणादायकदिव्यपञ्च, पारणादायकवसुधारावृष्टि, पारणापुर, प्रियगति, प्रियनाम, पूर्वप्रवृत्तिकाल, पूर्वप्रवृत्तिच्छेद, जिनों के पूर्व भव, (ऋषभदेव के पूर्वभव 'ऋषभ' शब्द पर हैं) चन्द्रप्रभ के सात मव, शान्तिनाथ के द्वादश पूर्वभव, मुनिसुव्रत के नवभव, नेमिनाथ के नवभव, पार्श्वनाथ के पूर्वभव, वीर के अट्ठाईस भव, शेष जिनों के भव, पूर्वभवगुरुद्ध पूर्वश्रवायु, पूर्वभवक्षेत्र, पूर्वभवदीक्षा, पूर्वभवजिनहेतु, पूर्वभवद्वीप, पूर्वभवनाम, पूर्वभवपुरी, पूर्वभवराज्य, पूर्वभवविजय, पूर्वभवसर्ग, पूर्वभवसूत्र, मुख्यआसन, मुख्यस्थान, मुख्यतप,मुख्य नक्षत्र, मुख्यपरिवार, मुख्यपथ, मुख्यमास, मुख्यरासि, मुख्यविनय, मुख्यवेला, मुख्यारक, मुख्यारकशेषकाल, मुख्यावगा-हना, मुनिस्वरूप, मुनिसंख्या, राज्य, रुद्रनाम, लाञ्छन, शरीरलक्षण, जिनवंश, वस्त्रवर्ण, जिनों के वर्ण, विवाह, विहार, संयम, सांवत्सरिक दान, समवसरण, सर्वायु, सामान्यमुनि, सामायिक, सामायिकसंख्या, श्रावकसंख्या, स्वप्न, स्वप्नविचार इत्यादि अनेक विषय हैं / 16- 'तेउक्काइय' शब्द पर तेज की जीवत्वसिद्धि, अग्नि की जीवत्वसिद्धि, तद्विषयसमारंभ कटुकफलपरिहारोपन्यास, अग्निसमारम्भ में नानाविधप्राणियों की हिंसा, तेजस्कायपिण्डप्रतिपादन, तेजस्कायहिंसानिषेध इत्यादि विषय हैं। 17- 'थंडिल' शब्द पर स्थण्डिल का विवेचन देखना चाहिए। 'दसण' शब्द पर दर्शन की व्युत्पत्ति, सम्यक् और मिथ्या भेद से दर्शन के दो भेद, क्षायिकादि भेद से तीन भेद, तथा दर्शन का पञ्चविधत्व और सप्तविधत्व, कारक रोचक दीपक भेद से तीन भेद, नवविधदर्शन इत्यादि विषय हैं। 18 'दव्व' शब्द पर द्रव्य का निरुक्त, द्रव्य का लक्षण षड्द्रव्यनिगमन, जीवाजीवद्रव्य असख्य अनन्त, द्रव्य के दो भेद, वैशेषिकरीति से नव द्रव्य, और उनमें दोष इत्यादि विषय द्रष्टव्य हैं। 16- 'दाण' शब्द पर दान का विशेष विचार देखना चाहिए। 20- 'देव' शब्द पर देवताओं के दो भेद,तीन भेद, चार भेद, पाँच भेद इत्यादि विषय हैं। .21- 'धम्म' शब्द पर धर्म शब्द की व्युत्पत्ति और अर्थ, धर्म के दो भेद, धर्म का लक्षण, धर्म के भेद और प्रभेद, धर्म के चिह्न, औदार्यलक्षण, दाक्षिण्यलक्षण, निर्मलबोधलक्षण, मैत्र्यादिकों के लक्षण, धर्म के अधिकारी, धर्म के योग्य, अवश्य ही धर्म की रक्षा करना चाहिए इसका निरूपण, अर्थ और काम का धर्म ही मूल है, धर्मोपदेश का विस्तार, धर्म का माहात्म्य, धर्म का मोक्षकारणत्यप्रतिपादन, धर्म का फल, और वह किसको दुर्लभ है और किसको सुलभ है इसका निरूपण, केवलिभाषित धर्म का श्रवण दुर्लभ है,धर्म की परीक्षा, धर्माधर्म का विचार सूक्ष्म बुद्धि से करना चाहिए इत्यादि विषय हैं। चतुर्थ भाग में जिन जिन शब्दों पर कथा या उपकथायें आई हुई हैं उनकी संक्षिप्त नामावली'जत्तासिद्ध,''णंदसिरि,''णंदिसेण,''नरसुंदर,' 'णागजुण, 'णागहत्थिण,''ताराचंद,' 'दमदंत,''दसउर,' 'दसण्णभद्द,' 'धणमित्त,' 'धणवई,' 'धणावह, 'धणसिरी,''धम्मघोस,' 'धम्मजस'। पञ्चम भाग में आए हुए कतिपय शब्दों के संक्षिप्त विषय१-- 'पचक्खाण' शब्द पर अहिंसाप्रत्याख्यान, प्रतिषेधप्रत्याख्यान, भावप्रत्याख्यान, मूलगुणप्रत्याख्यान, सम्यक्त्वप्रतिक्रमण, सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यान अनागतादि दशविध प्रत्याख्यान, अद्याप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यानविधि, दानविधि, प्रत्याख्यानशुद्धि, प्रत्याख्यान का षड्विधत्य, ज्ञानशुद्ध, अनुभाषणाशुद्ध, अनुपालनाशुद्ध, आकार, प्रत्याख्यान में सामायिक, प्रत्याख्याताकृत प्रत्याख्यान दान का निषेध, निर्विषयक प्रत्याख्यान नहीं होता, श्रावक का प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान का फल आदि कई विषय हैं।