________________ 45 12- 'वत्थ' शब्द पर लिखा है कि कितनी दूर तक वस्त्र के लिए जाना, कितनी प्रतिमा से वस्त्र का गवेषण करना, याच्या वस्त्र और निमन्त्रण वस्त्र की याच्या पर विचार, निर्ग्रन्थओं के वस्त्र लेने का प्रकार, चातुर्मास्य में वस्त्र लेने पर विचार, आचार्य की अनुज्ञा से ही साधू अथवा साध्वी को वस्त्र लेना चाहिए, वस्त्र का प्रमाण, भिन्न (फटे) वस्त्र लेने की अनुज्ञा, वस्त्रों के रँगने का निषेध, वस्त्र के सीने पर विचार, अन्ययूथिक और पार्श्वस्थादिदकों को वस्त्र देने का निषेध, वस्त्र को यत्न से रखना जिससे विकलेन्द्रियों का घात न हो, वस्त्रों के धोने का निषेध आचार्य के मलिन वस्त्रों के धोने की अनुज्ञा इत्यादि विशेष विचार हैं / 13- 'वसहि शब्द पर किस प्रकार के उपाश्रय में रहना चाहिये इसका निरूपण, उपाश्रय के उद्गमादि दोषों का निरूपण, भिक्षू के वास्ते असंयत उपाश्रय बनावे, अविधि से उपाश्रय के प्रमार्जन में दोष, जहाँ गृहपति कन्दादिकों का आहार करता है वहां नहीं रहना, सस्त्रीक उपाश्रय में नहीं रहना, रुग्ण साधु की प्रतिक्रिया, जहां गृहिणी मैथुन की वाञ्छा करे उस गृहपति के गृह में नहीं बसना, गृहपति के घर में बसने के दोष, प्रतिबद्ध शय्या में बसने के दोष जिसमें घरवाला भोजन बनावे वहां नहीं रहना, और जहां पर घर का मालिक काष्ठ फाड़े या अग्नि जलावे वहां नहीं रहना, जहाँ पर साधर्मिक निरन्तर आते हों वहां नहीं रहना, कार्यवश से चरक और कार्पटिकों के साथ वसने में विधि, वसति के याचन का प्रकार, जहां पर गृहपति के मनुष्य कलह करते हों या अभ्यङ्ग (मर्दन) करते हों वहां नहीं रहना, कब कहां कितना वास करना इसका नियम, जहां राजा हो उस उपाश्रय मे वसने का निषेध, साध्वियों की वसति में साधू के जाने का निषेध इत्यादि विषय हैं। 14- 'विजय' शब्द पर विजय की विशेषवक्तव्या देखना चाहिए। 15 - "विनय' शब्द पर विनय के पाँच 5 भेद और सात 7 भेद, विनयमूलक धर्म की सिद्धि. गुरु के निकट विनय की आवश्यकता, आर्यिका के विनय इत्यादि विस्तृत विषय देखने के योग्य हैं। 16- 'विमान' शब्द पर विमानों की संख्या, और विमानों का मान, विमानों का संस्थान, विमानों के वर्ण, विमानों की प्रभा, गन्ध, स्पर्श, और महत्त्व आदि देखने के योग्य हैं। १७-"विहार' शब्द पर आचार्य और उपाध्याय के एकाकी विहार करने का निषेध, किसके साथ विहार करना और किसके साथ नहीं करना इसका निरूपण, वर्षाकाल में या वर्षा में विहार करने का निषेध, अशिवादि कारणों में वर्षा में भी विहार करना, वर्षा की समाप्ति में विहार करना, मार्ग में युगमात्र देखते हुए जाना चाहिये, नदी के पार जाने में विधि, आचार्य के साथ जाते हुए साधू को विधि, साधुओं का और साध्वियों का रात्रि में या विकाल में विहार करने का विचार इत्यादि विषय द्रष्टव्य हैं। 18- 'वीर' शब्द पर वीरशब्द की व्युत्पत्ति, और कथा देखना चाहिए। षष्ठ भाग में जिन जिन शब्दों पर कथा या उपकथायें आई हुई हैं उनकी संक्षिप्त नामावली'मल्लि' 'महापइरिकतर' 'मुणिसुव्वय' 'मूलदत्ता' 'मूलसिरी' 'मेहघोस' 'मेहषुर' 'मेहमुह' 'मेहरिपुत्त' 'रहणेमि' 'रोहिणी' 'रोहिणेयचोर' 'वद्धमाणसूरि' 'वररुइ' 'वराहमिहिर' 'वरुण' 'ववहारकुसल' "वाणारसी' 'विजइंदसूरि' "विजयकुमार' 'विजयघासे' 'विजयचंद' 'विजयतिलकसूरि' "विजयसेट्टि' "विजयसेण' "विणयंधर' 'विसेसण्णु' 'वीर'। सप्तम भाग में आये हुए कतिपय शब्दों के संक्षिप्त विषय-- 1- 'संथार' शब्द पर संस्तार का विचार है। 'संवर' शब्द पर सम्बर का निरूपण है। 'संसार' शब्द पर संसार की असार दशा दिखाई गई है। 2- 'सक्क' शब्द पर शक्र की ऋद्धि और स्थान, विकुर्वणा, और पूर्वभव, शक्र का विमान, और शक्र किस भाषा को बोलते हैं इसका निरूपण और शक्र की सामर्थ्य आदि वर्णित है। 3- 'सज्झाय' शब्द पर स्वाध्याय का स्वरूप, स्वाध्यायकाल, स्वाध्यायविधि, स्वाध्याय के गुण, स्वाध्याय के फल इत्यादि विषय हैं, तथा 'सत्तमंगी' शब्द पर सप्तभङ्गी का विचार है।