________________ 62 पञ्चमाध्ययन का प्रारम्भ है / इसी तरह कहीं कहीं चूर्णि भी मिलती है जैसे इसी कोश के प्र०भा० 'अरहंत' शब्द पर 756 पृष्ठ में मूल और चूर्णि दोनों हैं। और 'एस समासत्थो 'वित्थरत्थं तु इमं ऐसा हमारे पुस्तक के 6 पत्र 2 पृष्ठ 26 पडित में लिखा है 7- सूत्रकृताङ्ग की गाथाएँ कई अध्ययनों में ऐसी टूटीसी मालूम पड़ती हैं जैसे छन्दोभङ्गवा ली हों, किन्तु प्रायः वे भी छन्दोलक्षणविहीन नहीं हैं, क्योंकि बहुत से ऐसे भी छन्द हैं जो पढ़ने में असङ्गत से मालूम होते हैं किन्तु लक्षण से पूर्ण सङ्गत हैं। क्योंकि प्राकृत पिङ्गलसूत्र में चन्द्रलेखा-चित्र-नाराच-नील-चञ्चला-ऋषभगजविलसित-चकिता-मदनललिता-वाणिनी-प्रवरललित-गरुडरुतअचलधृति छन्द भी विलक्षण हैं। जैसे मदन ललिता का यह उदाहरण है "विभ्रष्टसम्मलितचिकुरा धौताधरपुटा, म्लायत्पत्त्रावलिकुचतटोच्छवासोर्मितरला / राघाऽत्यर्थ मदनललिताऽऽन्दोलालसवपुः, कंसाराते रतिरसमहो चक्रेऽतिचटुलम्" // 1 // और यदि कहीं पर किसी भी छन्द का लक्षण सङ्गत न हो तो वहाँ आर्ष छन्द समझना चाहिए। पैंतालीस आगमों के नाम, और उनकी मूलश्लोकसंख्या, और हर एक पर पृथक् पृथक् आचार्यों की निर्मित बृहद्वृत्ति, लघुवृत्ति, नियुक्ति और भाष्यादिक, और उनका श्लोकसंख्याप्रमाण इस रीति से है श्रीसुधर्मास्वामीकृत ग्याहर अङ्गो के नाम और व्याख्यातसहित ग्रन्थप्रमाण१-आचाराङ्ग सूत्र, अध्ययन 25, मूलश्लोकसंख्या 2500, और उसपर शीलाङ्गाचार्यकृत टीका 12000, चूर्णि 8300, तथा भद्रबाहुस्वामिकृत नियुक्तिगाथा 368, श्लोक 450, (भाष्य और लघुवृत्ति इस पर नहीं है)। संपूर्णसंख्या 23250 है। 2- सूत्रकृताङ्ग सूत्र, श्रुतस्कन्ध 2, अध्ययन 23, मूलश्लोकसंख्या 2100, और उसपर शीलाङ्गाचार्यकृत टीका 12850, चूर्णि 10000, तथा भद्रबाहुस्वामिकृत नियुक्तिगाथा 208, श्लोक 250, (भाष्य नहीं है) संपूर्ण संख्या 25200 है। संवत् 1583 सें नवीन श्रीहेमविमलसूरि ने दीपिका टीका बनाई है, किन्तु वह पूर्वाचार्यों की गिनती में नहीं है। 3- स्थानाङ्ग सूत्र, अध्ययन (ठाणा) 10, मूलश्लोकसंख्या 3770, और उसपर संवत् 1120 में अभयदेवसूरि ने टीका बनाई है, उसका मान 15250 है, संपूर्ण संख्या 16020 है। ४-समवायाङ्ग सूत्र, (100 समवाय तक समवाय मिलते हैं) मूलश्लोकसंख्या 1667, और उसपर अभयदेवसूरिकृत टीका 3776, चूर्णि पूर्वाचार्य कृत 400, संपूर्ण संख्या 5843 है। 5- भगवती सूत्र (विवाहपन्नत्ति), शतक 41, मूलश्लोकसंख्या 15752, और उसपर श्रीअभयदेवसूरिकृत टीका (द्रोणाचार्य से शोधी हुई) 18616, चूर्णि पूर्वाचार्यकृत 4000, संपूर्ण संख्या 38368 है। संवत् 1568 में दानशेखर उपाध्याय ने 12000 श्लोक संख्या की लघुवृत्ति बनाई है। 6- ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्र, अध्ययन 16, मूलश्लोकसंख्या 5500, और उसपर अभयदेवसूरिकृत टीका 4252 है। इस समय में 16 कथाएँ दिखाई देती हैं, किन्तु पूर्व समय में साढ़े तीन करोड़ कथाएँ थी ऐसी प्रसिद्धि है।