________________ 39 बसति का रक्षण, अदुष्टभाषण, गच्छमर्यादा, आचार्यादिकों के अभाव होने पर गच्छ में नहीं वसना, गच्छ और जिनकल्प दोनों की प्रशंसा इत्यादि विषय हैं। 23- 'गणह (ध)र' शब्द पर गणधर का स्वरूप, किस तीर्थङ्कर के कितने गणधर हैं, गणधर शब्द का अर्थ, जिनगुणों से गणधर होने की योग्यता होती है उनका निरूपण किया है। 24- 'गब्म' शब्द पर गर्भ में अहोरात्रियों का प्रमाण, मुहूर्तों का प्रमाण, गर्भ में निःश्वासोच्छ्रास का प्रमाण, गर्भ का स्वरूप, ध्वस्तयोनि के काल का मान, कितने वर्ष के बाद स्त्री गर्भधारण नहीं करती और पुरुष निर्वीर्य हो जाता है इसका निरूपण, कितने जीव एक हेला से एक स्त्री के गर्भ में उत्पन्न होते हैं, कुक्षि में पुरुषादि कहाँ बसते हैं, गर्भ में जीव उत्पन्न होकर क्या आहार करता है? गर्भस्थ जीव के उच्चार और प्रस्रवण का विचार, गर्भ से भी जीव नरक या देवलोक को जाता है या नहीं इस गौतम स्वामी के प्रश्न का उत्तर, नवमास का अन्तर हो जाने पर पूर्व भव को जीव क्यों नहीं स्मरण करता? और गर्भगत का शौचादि विचार, स्त्री के गर्भधारण करने के पाँच प्रकार, गर्भपतन का कारण, गर्भषोषण में विधि इत्यादि विषय हैं। 25 -- 'गिलाण' शब्द पर ग्लान के प्रति जागरण, सचित्ताचित्त से चिकित्सा, ग्लान का अनुवर्तन, वैद्यानुवर्तना, वैद्य का उपदेश, ग्लान के लिये एषणा इत्यादि विषय हैं / 26- 'गुण' शब्द पर मूलगुण, उत्तरगुण, एकतीस सिद्धादिगुण, सत्ताईस अनगार गुण, महर्द्धि प्राप्त्यादि, सौभाग्यादि, मृदुत्वौदार्यादि, क्षान्त्यादि, वैशेषिकसंमत गुण, द्रव्यगुणों का परस्पर अभेद, गुणपर्याय के भेद, गुणपर्याय का ऐक्य, और जैनसंमत गुण इत्यादि द्रष्टव्य विषय हैं। 27- 'गुणट्ठाण' शब्द पर चौदह गुणस्थान, कायस्थिति, गुणस्थान में बन्ध इत्यादि विषय हैं। 28- 'गोयरचरिया' शब्द पर जिनकल्पिक स्थविरकल्पिक, निर्ग्रन्थियों की भिक्षा में विधि, भिक्षाटन में विधि, आचार्य की आज्ञा, जाने के समय धार्याधार्य और कार्याकार्य, मार्ग में कि तरह जाना, वृष्टिकाय के गिरने पर विधि, गृह प्रवेश, गृह के अवयवों को पकड़ करके नहीं खड़े होना, अंगुली दिखाने का निषेध, अगारी(स्त्री) के साथ खड़े होने का निषेध, ब्राह्मणादि को प्रविष्ट देख कर के भिक्षा के लिए प्रवेश नहीं करना, तीर्थकर और उत्पन्नकेवलज्ञानदर्शन वाले भिक्षा के लिए भ्रमण नहीं करते, आचार्य भिक्षा के लिए नहीं जाता, ग्राह्यवस्तु, गोचरातिचार में प्रायश्चित्त, साध्वियों की भिक्षा का प्रकार इत्यादि विषय बहुत उपयोगी हैं। 26- 'चक्कवट्टी' शब्द पर चक्रवर्तियों की गति का प्रतिपादन, गोत्रप्रतिपादन, चक्रवर्ती के पुर का प्रतिपादन, चक्रवर्ती का बल, मुक्ताहार, वर्णादि, स्त्रियां, स्त्रियों के सन्तान आदि का निरूपण, उत्सर्पिणी में 12 चक्रवर्ती होते हैं, कौन और कैसे चक्रवर्ती होता है इसका निरूपण इत्यादि विषय हैं। 30- 'चारित्त' शब्द पर कुम्भ के दृष्टान्त से चारित्र के चार भेद, सामायिकादि रूप से चारित्र के पाँच भेद, किस तरह चारित्र की प्राप्ति होती है इसका प्रतिपादन, चारित्र से हीन ज्ञान अथवा दर्शन मोक्ष का साधन नहीं होता है, किन कषायों के उदय से चारित्र का लाभ ही नहीं होता और किन से हानि होती है इसका निरूपण, वीतराग का चारित्र न बढ़ता है और न घटता है, चारित्र की विराधना नहीं करना, आहारशुद्धि ही प्रायः चारित्र का कारण है इत्यादि विषय हैं। 31- 'चेइय' शब्द पर चैत्य का अर्थ, प्रतिमा की सिद्धि, चारणमुनिकृत वन्दनाधिकार, चैत्य शब्द का अर्थ जो ज्ञान मानते हैं उनका खण्डन, चमरकृतवन्दन, देवकृत चैत्यवन्दन, सावद्य पदार्थ पर भगवान् की अनुमति नहीं होती, और मौन रहने से भगवान् की अनुमति समझी जाती है क्योंकि निषेध न करने से अनुमति ही होती है इसपर दृष्टान्त, हिंसा का विचार, साधू को स्वातन्त्र्य से चैत्य में अनधिकार, द्रव्यस्तव में गुण, जिनपूजन से वैयावृत्य, तीन स्तुति, जिन भवन के बनाने में विधि, प्रतिमा बनाने में विधि, प्रतिष्ठाविधि, जिनपूजाविधि, जिनस्नात्रविधि, आभरण के विषय में दिगम्बरों के मत का प्रदर्शन और खण्डन, चैत्यविषयक प्रश्नों पर हीरविजय सूरिकृत उत्तर इत्यादि अनेक विषय हैं।