Book Title: Abhidhan Chintamani
Author(s): Hemchandracharya, Nemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan
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साङ्केतिक चिह्न तथा शब्द के विवरण (क) मूल के सङ्केत
मूल श्लोकों के पहले या मध्य में आये हुए अङ्क नीचे लिखी गयी 'मणिप्रभा' ब्याख्या के प्रतीक हैं। एवं श्लोकान्त में आये हुए अङ्क श्लोकों के क्रमसूचक हैं। (ख ) टीका तथा टिप्पणी के संकेत. ( ) इस कोष्टक के अन्तर्गत -, = ये दो चिह्न मूल शब्दों के प्रातिपदिकावस्था के रूप को सूचित करते हैं । प्रथमोदाहरण-"लक्ष्म (-चमन् )" इससे ज्ञात होता है कि प्रातिपदिकावस्था में 'लचमन्' शब्द तथा प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'लक्ष्म'ये रूप होते हैं।
द्वितीयोदाहरण-"योः ( = द्यो), द्यौः (= दिव)" यहां यह ज्ञात होता है कि प्रथम शब्द के प्रातिपदिकावस्था का स्वरूप 'द्यो' तथा द्वितीय शब्द के प्रातिपदिकावस्था का स्वरूप दिव' होता है और उक्त दोनों शब्दों के प्रथमा विभक्ति के एकवचन का स्वरूप 'यौः' होता है।
. ( ) इस कोष्टान्तर्गत शब्द के पूर्व में दिया गया + चिह्न मूल ग्रन्थ के बाहरी शब्द को सूचित करता है। यथा-व्रीडा (+व्रीडः), शाकुलः (+ शौकला),....."से सूचित होता है कि मूल ग्रन्थ में 'व्रीडा' और 'शाकुल' शब्द हैं; किन्तु अन्यत्र 'वीड' तथा 'शौष्कल' शब्द भी उपलब्ध होते हैं ।
() इस कोष्ठ के अन्तर्गत दिये गये “यौ०, ए०व०, द्विव०, ब०व०, नि०, पु०, स्त्री०, न० या नपु०, त्रि०, अन्य०, शे० और उदा०"-ये सङ्केत क्रमशः यौगिक, एकवचन, द्विवचन, बहुवचन, नित्य, पुंल्लिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग, नपुंसकलिङ्ग, त्रिलिङ्ग, अव्यय, शेष अर्थात् बाकी, और उदाहरण" इन अर्थों को सूचित करते हैं।
पृ०-पृष्ठ पं०-पंक्ति स्वो०-स्वोपज्ञवृत्ति अभि० चिन्ता-अभिधानचिन्तामणि ......"-इत्यादि