Book Title: Abhidhan Chintamani
Author(s): Hemchandracharya, Nemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan
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देवकाण्डः २] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १संवित् सन्धाऽऽस्थाभ्युपायः संप्रत्याङभ्यः परः श्रवः । अङ्गीकारोऽभ्युपगमः प्रतिज्ञाऽऽगूश्च सङ्गरः ॥ १६२ ।। २गीतनृत्यवाद्ययं नाट्य तौर्यत्रिकच तत् । ३सङ्गीतं प्रेक्षणार्थेऽस्मिञ्शास्त्रोक्त नाट्यधर्मिका ॥ १६३ ॥ ५गीतं गानं गेयं गीतिर्गान्धर्वक्ष्मथ नर्तनम् । नटनं नृत्यं नृत्तश्च लास्यं नाट्यश्च ताण्डवम् ॥ १६४ ॥
१. 'प्रतिज्ञा, प्रण' के १५ नाम है--संवित् (-विद् ), संधा, आस्था, अभ्युपायः, संश्रवः, प्रतिश्रवः, अाश्रयः, अङ्गीकारः अभ्युपगमः, प्रतिज्ञा, आगूः (-गूर स्त्री +आगू :-गुर् स्त्री), संगर: (+ समाधिः )।
विमर्श--पक्षोक्ति तथा प्रकृतको अङ्गीकार करना--दोनों ही प्रतिज्ञा' हैं, इसी दृष्टि से यहां संवित्' अादि ५२ शब्दोंको पर्यायवाचक कहा गया है-'अमरकोष'कारने तो "संविदागू: प्रतिज्ञानं नियमाश्रवसंश्रवाः” (१।५।५)से इन ६ नामोको 'प्रतिज्ञा'का पर्यायवाचक और "अङ्गीकाराभ्युपगमप्रतिश्रयसमाधयः” ( ११५/५ )से इन ४ नामोंको स्वीकार'का पर्यायवाचक माना है । इनमें ऊकारान्त 'आगू' शब्दको 'खलपू' शब्द के समान तथा प्रक्षिप्त 'रेफान्त' 'आगुर' शब्दका रूप 'पुर' शब्दके समान होता हैं, दोनों ही शब्द स्त्रीलिङ्ग हैं । ___२. 'गीतम् , नृत्यम् , वाद्यम्' अर्थात् 'गाना, नाचना, और बाजा बजाना'-इन तीनोंके नाट्य ( नट कम ) में एक साथ होनेपर उस 'नाट्य'को 'तौर्यत्रिकम्' कहते हैं । ( वक्ष्यमाण शेष सबको 'नट नम्' कहते हैं )।
३. इन तीनों (गाना, नाचना और बाजा बजाना ) को जनताको दिखलाने के लिये करनेपर उसको 'संगीतम्' कहते हैं ।
४. इन तीनों ( गाना, नाचना और बाजा बजाना )के भरतादिशास्त्रानुकूल प्रयोग करनेपर उसे 'नाट्यधर्मी' (+नाट्यधर्मिका ) कहते हैं ।।
५. 'गाना, गीत'के ५ नाम हैं-गीतम् , गानम् , गेयम् , गीतिः, गान्धर्वम् ।।
विमर्श:-यद्याप भरतादिने गाने योग्यको गीतम्' गन्धोंके गानेको 'गान्धर्वम्' रागपूर्वक गानेको 'गीतम् प्रावशिक्यादि ध्रुवा रूपको 'गानम्' और पद, स्वर, ताल तथा लयपूर्वक गानेको 'गान्धवम्' कहते हुए उक्त गीत आदिमें परस्पर भेद प्रदर्शित किया है; तथापि उक्त विशिष्ट भेदका आश्रय यहाँ ग्रन्थकारने नहीं किया है ।।
६. 'नाचने'के ७ नाम हैं-~-नर्तनम् , नटनम् , नृत्यम् , नृत्तम् , लास्यम्; नाट्यम् (पु न , ताण्डवम् ।।