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सामान्यकाण्ड: ६ ] 'मणिप्रभाठ्याख्योपेतः
खण्डेऽर्धशकले मित्त नेमशल्कदलानि च । २अंशो भागश्च वण्टः स्यात् ३पादस्तु स तुरीयकः ॥ ७० ॥ ४मलिनं कचरं म्लानं कश्मलञ्च मलीमसम् । "पवित्रं पावनं पूर्त पुण्यं मेध्यक्ष्मथोज्ज्वलम् ।। ७१ ॥ विमलं विशदं . वीध्रमवदातमनाविलम् । विशुद्धं शुचि चोक्षन्तु निःशोध्यमनवस्करम् ॥७२॥
पनिर्णिक्तं शोधितं मृष्टं धौतं क्षालितमित्यपि । संज्ञक नहीं होनेसे 'ये समान हिस्सेक आधिकारी हैं। इस अर्थमे "एते 'समानाम' अंशानामधिकारिणः” प्रयोग होता है, ऐसे ही अन्यत्र भी जानना चाहिए। 'सर्व' और 'विश्व' शब्द भी 'संज्ञा' भिन्न अर्थमे 'सर्वनाम' संज्ञक हैं।
१. 'खण्ड, टुकड़े'के ७ नाम · है-खण्डम् (पु न ।+खण्डलम् ), अर्घः, शकलम् (पु न ), भित्तम् , नेमः, शल्कम् , दलम् ॥ .
विमर्श-इनमें से 'अर्ध शब्द पुंल्लिङ्ग है, अत: 'प्रामाधः, अर्धः पटी, अर्थो नगरम्' इत्यादि प्रयोग होते हैं; किन्तु कुछ आचार्योंका सिद्धान्त है कि यह 'अध' शब्द वाच्यलिङ्ग अर्थात् विशेष्यानुसार लिङ्गवाला है, इसी कारण टीकाकार ने-"खण्डमात्रवृत्तितायामभिधेयलिनः" ( 'खएड' अर्थमें प्रयुक्त होने पर अभिधेयलिङ्ग अर्थात् वायलिङ्ग 'अर्ध शब्द है ) ऐसा कहा है तथा 'समान भाग' अर्थमें प्रयुक्त 'अर्ध शब्द नपुंसकलिङ्ग है । 'नेम' शब्द भी 'श्राधा' अर्थमें सर्वनामसंज्ञक है, अतएव उक्त अर्थमें उसका प्रयोग 'सर्व' शन्दके समान तथा दूसरे अर्थ में 'राम' शब्दके समान होता है ॥
२. 'अंश, बाँट, हिस्से के ३ नाम है-अंशः, भागः, दण्टः ।। ३. 'चतुर्थाश, चौथाई हिस्से'का १ नाम है-पादः ॥
४. 'मलिन के . ५ नाम हैं-मलिनम् , कच्चरम् , म्लानम् , कश्मलम् (+ कल्मषम), मलीमसम् ।।
५. 'पवित्र' के ४ नाम है-पवित्रम् (पु न ।+त्रि ), पावनम् , पूतम् , 'पुण्यम् , मेध्यम् ।।
६. 'उज्ज्वल, (निर्मल, मलहीन )के ८ नाम हैं-उज्ज्वलम , विमलम , विशदम् , वीघ्रम् , अवदातम् , अनाविलम् , विशुद्धम् , शुचि ।।
७. स्वतः स्वच्छ, निर्मल' के ३ नाम हैं-चोक्षम , निःशोध्यम् , अनवस्करम् ।।
८. 'शुद्ध ( साफ) किये हुए 'के ५ नाम हैं-निर्णितम् , शोधितम् , -मृष्टम् , धौतम् , क्षालितम् ॥