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देवकाण्ड: २] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः
१अब्रह्मण्यमवध्योक्तौ २ज्यायसी तु स्वसाऽत्तिका । ३भर्ताऽऽयपुत्रो ४माताऽम्बा ५भदन्ताः सौगतादयः ।। २४६॥ ६पूज्य तत्रभवानत्रभवांश्च भगवानपि । ७पादा भट्टारको देवः प्रयोज्यः पूज्यनामतः ॥ २५०॥ इत्याचार्यहेमचन्द्रविरचितायाम् “अभिधानचिन्तामणिनाममालायां"
द्वितीयो 'देवकाण्डः' समाप्तः ॥२॥
१. 'अवष्यके कहने में 'अब्रह्मण्यम्' शब्दका प्रयोग होता है ।। २. 'बड़ी बहन'का १ नाम है-अत्तिका ।। ३. 'पति'का १ नाम है-आर्यपुत्रः ॥ ४. 'माता'का १ नाम है-अम्बा ॥ ५. 'बौद्ध आदि भिक्षुको'का १ नाम है--भदन्तः ।।
६. 'पूज्य' व्यक्तिमें- 'तत्रभवान् , अत्रभवान् , भगवान् (३ -वत् ) शब्दोंका प्रयोग होता है ।।
७. 'पूज्य व्यक्ति के नामके आगे 'पादाः, भट्टारकः, देवः' शब्दोंका प्रयोग किया जाता है । ( यथा-गुरुपादाः, गुरुचरणाः, अहर्भट्टारकः, कुमारपालदेवः,........ )॥
विमर्श-पूर्वोक्त ( २।२४५-२५० ) आवुकादि शब्दोंका प्रयोग नाट्याधिकार होनेसे नाटकोंमें ही होता है। परन्तु 'तत्रभवान्' आदि ( २।२५०) शन्दोंका प्रयोग नाटकसे भिन्न स्थलों में भी किया जाता है । . . इस प्रकार साहित्य-व्याकरणाचार्यादिपदविभूषित मिश्रोपाह
श्रीहरगोविन्दशास्त्रिविरचित 'मणिप्रभा'व्याख्यामें . द्वितीय 'देवकाण्ड' समाप्त हुश्रा ॥ २ ॥