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अभिधानचिन्तामणिः -१पदातिस्तु पत्तिः पद्गः पदातिकः ॥ १६१ ।। पादातिकः पादचारी पादाजिपदिकावपि । २सरः पुरोऽप्रतोऽग्रेभ्यः पुरस्तो गमगामिगाः।। १६२ ॥ प्रष्ठो३ऽथावेशिकागन्तू प्राघुणोऽभ्यागतोऽतिथिः । प्राघूर्णके४ऽथावेशिकमातिथ्यचातिथेय्यपि ॥१६३ ॥ ५सूर्योढस्तु स सम्प्राप्तो य: सूर्येऽस्तङ्गतेऽतिथिः । ६पादार्थ पाद्यमर्घार्थमयं वार्यस्थ गौरवम् ॥ १६४ ॥ अभ्युत्थानं हव्यथकस्तु स्यान्मर्मस्पृगरुन्तुदः। ....
१०ग्रामेयके तु ग्रामीणग्राम्यौश्राराधना, उपास्तिः (+उपासना ), वरिवस्या, परीष्टि: (+पर्येषणा ), उपचार:॥
विमर्श-'अमरसिंह'ने परीष्टि तथा पर्येषणा-इन दो शब्दोंको 'श्राद्धमें ब्राह्मणोंकी सेवा करने अर्थमें माना है ( अमरकोष २।७।३२ )॥
१. 'पैदल'के ८ नाम हैं-पदातिः, पत्तिः, पद्गः, पदातिकः, पादातिकः, पादचारी ( - रिन् ), पादाजिः, पदिकः॥ .
शेषश्चात्र-पादातपदगौ समौ ।'
२. 'अग्रगामी ( आगे चलनेवाले ) के ७ नाम हैं-पुरःसरः, अग्रत:सर:, अग्रेसर: (+अग्रेगूः), पुरोगमः, पुरोगामी ( - मिन् ), पुरोगः, प्रष्ठः ।। ___३. 'अतिथि के ६ नाम हैं-आवेशिकः, आगन्तु: (+आगन्तुक: ), प्राघुणः, अभ्यागतः, अतिथि: (+अातिथ्यः ), प्राघूर्णकः ।।
विमर्श-किसी-किसीने अतिथि तथा अभ्यागतको एकार्थक न मानकर यह भेद बतलाया है कि जिस महात्माने तिथि-पर्व, उत्सव आदिका त्याग कर दिया है, उसे 'अतिथि' और शेषको 'अभ्यागत' कहते हैं; परन्तु यहाँ उक्त भेदका अाश्रय त्यागकर दोनों शब्दोंको एकार्थक ही कहा गया है ।
४. 'आतिथ्य (श्रांतथि-सत्कार ) के ३ नाम हैं-श्रावेशिकम् , आतिथ्यम् , अातिथेयी (स्त्री न ) ॥
५. सूर्यास्त होने के उपरान्त आये हुए अतिथिका १ नाम है-सूर्योढः ।। ६. 'पैर धोने के लिए दिये जानेवाले जल'का १ नाम है–पाद्यम् ॥ ७. 'अर्घके लिए दिये जानेवाले जल'का १ नाम है-अयम् ॥
८. 'अतिथि (या-पिता, गुरु अादि श्रेष्ठ जनों )को गौरवप्रदानके लिए उठकर खड़े होने के २ नाम हैं-गौरवम् , अभ्युत्थानम् ।।
६. मर्मस्पर्शी (अत्यधिक कष्ट देनेवाले )के ३ नाम हैं-व्यथकः, मर्मस्पृक् ( - स्पृश् ), अरुन्तुदः ।।
१०. 'ग्रामीण, देहाती'के ३ नाम हैं-ग्रामेयकः, ग्रामीणः, ग्राम्यः ।।