Book Title: Abhidhan Chintamani
Author(s): Hemchandracharya, Nemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan
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( ३६ ) कोई भी पर्याय पाठकोंको सुविधाके साथ शीघ्र मिल जाय, इसके लिए ग्रन्थान्तमें त्रिविध ( मूलग्रन्थस्थ, शेषस्थ तथा मणिप्रभा-विमर्श-टिप्पणीस्थ ) शब्दोंकी अकारादि क्रमसे सूची भी दे दी गयी है। मूलग्रन्थमें विस्तारके साथ कहे गये प्राशयोंके संक्षेपमें एक जगह ही ज्ञात होनेके लिए
आवश्यकतानुसार यथास्थान चक्र भी दिये गये हैं। इस प्रकार प्रकृत ग्रन्थको सब प्रकारसे सुबोध्य एवं सरल बनाने के लिए भरपूर प्रयत्न किया गया है।
आभारप्रदर्शन इस ग्रन्थकी विस्तृत एवं खोजपूर्ण प्रस्तावना लिखनेकी जो महती कृपा मेरे चिरमित्र, अनेक ग्रन्थोंके लेखक डॉ० नेमिचन्द्रजी शास्त्री ( ज्यौ० प्राचार्य, एम० ए० (संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी ), पी० एच० डी०, अध्यक्ष संस्कृत प्राकृत विभाग हरदास जैन कॉलेज आरा ) ने की है; तदर्थ उन्हें मैं कोटिशः धन्यवादपूर्वक शुभाशीः प्रदान करता हूँ कि वे सपरिवार सानन्द, सुखी, एवं चिरजीवी होकर उत्तरोत्तर उन्नति करते हुए इसी प्रकार संस्कृत साहित्यकी सेवामें संलग्न रहें। साथ ही जिन विद्वानों एवं मित्रोंने इस ग्रन्थकी रचनामें जो साहाय्य किया है, उन सबका भी आभार मानता हुआ उन्हें भूरिशः धन्यवाद देता हूँ।
पूर्ण निष्ठाके साथ संस्कृत साहित्यके सेवार्थ दुर्लभ तथा दुर्बोध्य ग्रन्थोंको ख्यातिप्राप्त विद्वानोंके सहयोगसे सुलभ एवं सुबोध्य बनाकर प्रकाशन करनेवाले 'चौखम्बा संस्कृत सीरीज, तथा चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी' के व्यवस्थापक महोदयने वर्तमानमें शताधिक ग्रन्थोंका मुद्रण कार्य चलते रहनेसे अत्यधिक व्यस्त रहनेपर भी चिरकालसे दुर्लभ इस ग्रन्थके प्रकाशनद्वारा इसे सर्वसुलभ बनाकर संस्कृत साहित्यकी सेवामें जो एक कड़ी और जोड़ दी है; तदर्थ उनका बहुत-बहुत आभार मानता हुआ उन्हें शुभाशीःप्रदानपूर्वक भूरिशः धन्यवाद देता हूँ।
अन्तमें माननीय विद्वानों, अध्यापकों तथा स्नेहास्पद छात्रोंसे मेरा विनम्र निवेदन है कि मेरे द्वारा अनूदित अमरकोष, नैषधचरित, शिशुपालवघ, रघुवंश तथा मनुस्मृति आदि ग्रन्थोंको अद्यावधि अपनाकर संस्कृतसाहित्य-सेवार्थ मुझे जिस प्रकार उन्होंने उत्साहित किया है, उसी प्रकार इसे भी अपनाकर आगे भी उत्साहित करनेकी असीम अनुकम्पा करते रहेंगे।