Book Title: Abhidhan Chintamani
Author(s): Hemchandracharya, Nemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan
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'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १ जन्यात्कृत्कर्तृमृस्रष्ट्र विधातृकरसूसमाः ॥५॥ २ जनकाद्योनिजरुहजन्मभूसूत्यणादयः .३ धार्याद् ध्वजास्त्रपाण्यङ्कमौलिभूषणभृग्निभाः ॥६॥ मतुवर्थक 'इन् प्रत्ययान्त 'कपाली' (-लिन् ) शब्दका ही प्रयोग करना चाहिए, कवियोमे.. अप्रयुक्त 'कपालपाल:, कपालधनः, कपालाभुक, कपालनेता, कपालपतिः' इत्यादि शब्दोंका प्रयोग नहीं करना चाहिए। ___ १. जन्य अर्थात् कार्यसे परे 'कृत् , कर्तृ, सृट स्रष्ट, विधात, कर, सू' इत्यादि शब्द जनक अर्थात् कारणके पर्यायवाचक होते हैं । (क्रमशः उदा०-विश्वकृत् , विश्वकर्ता (-क), विश्वसृट् (-सृज् ), विश्वस्रष्टा (-स्रष्ट), विश्वविधाता (-धात), विश्वकरः, विश्वस:,...'शब्द विश्वके कर्ता 'ब्रह्मा के पर्याय हैं । 'श्रादि' अर्थवाले 'सम' शब्दसे-'विश्वकारकः, विश्वजनक:,........'शब्द भी 'ब्रह्मा के पर्याय हैं। यहाँ भी कविसाढे'से ही प्रयोग होनेके कारण 'चित्रकृत् का प्रयोग तो होता है, परन्तु 'चित्रसू:' का प्रयोग नहीं होता )।
२. जनक अर्थात् कारणवाचक' शब्दोंसे परे 'योनिः, जः, रुहः, क्मन्, भू तथा सूतिः' शब्द और 'अण' श्रादि ( 'आदि' शब्दसे "ण्य, फ,........." का संग्रह होता है ) प्रत्यय रहनेपर वे शब्द 'कार्योंके पर्यायवाचक होते हैं। (क्रमशः उदा०-'श्रात्मयोनिः, श्रात्मजः, श्रात्मरुहः, आत्मजन्मा (न्मन्), श्रात्मभूः, अात्मसूतिः' शब्द 'ब्रह्मा के पर्याय हैं । 'अण' आदि प्रत्ययके परे रहनेसे बननेवाले पर्यायोंका उदा०-भार्गवः, औपगवः, ... दैत्यः, बार्हस्पत्यः, श्रादित्य;"..."; वात्सायनः, गाग्यायणः,"""")। यहाँ भी 'कविरूढि'के अनुसार ही प्रयोग होनेके कारण 'ब्रह्मा के पर्यायमें "आत्मयोनि' शब्दका तो प्रयोग होता है, किन्तु 'श्रात्मजनकः, श्रात्मकारकः, .... शन्दोंका प्रयोग नहीं होता)॥
३. 'धार्य' अर्थात् 'धारण करने योग्य'के वाचक 'वृष' आदि शब्दसे परे "ध्वज, अब, पाणि, अङ्क, मौलि, भूषण, भृत् ,के 'निभ' ( सदृश) शब्द
और शाली, शेखर शब्द, मत्वर्थक प्रत्यय, तथा माली, भत और धर" शन्द 'धारक' अर्थात् ( 'वृष' आदि धार्यको धारण करनेवाले शिव (श्रादि) के पर्यायवाचक होते हैं । ( क्रमशः उदा०-वृषध्वजः, शूलास्त्रः, पिनाकपाणिः, वृषाङ्कः, चन्द्रमौलिः, शशिभूषणः, शूलभृत्" इत्यादि; तथा "पिनाकभर्ता (-भत ) शशिशेखरः, शूली (-लिन् ), पिनाकशाली (-लिन् ), पिनाकभर्ता (-त) पिनाकधरः" शब्द 'वृष' (बैल ) आदिको धारण करनेवाले 'शिवजी के पर्याय होते हैं। यहां भी 'कविरूढि' के अनुसार ही प्रयोग होने के ..