Book Title: Abhidhan Chintamani
Author(s): Hemchandracharya, Nemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan
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( ४२ ) . देखने का प्रकार
-जिस शब्द के साथ जो सकेत है, उसी शब्द के साथ उस सङ्केत का सम्बन्ध है । २-संख्यासहित शब्द का पहलेवाले उतने ही शब्दों के साथ सम्बन्ध है । ३-कहीं-कहीं एक ही शब्द में एकाधिक संकेत भी हैं, उनका सम्बन्ध उसी क्रम से है। क्रमशः उदा०-१. “तारका (त्रि) और तारा (स्त्री पु)" यहां 'तारका' शब्द को विलिङ्ग तथा 'तारा' शब्द को स्त्रीलिङ्ग तथा पुंल्लिङ्ग जानना चाहिए । २. तथा ३.: "कल्यम्, प्रत्युषः, उषः (२-षस), काल्यम (+ प्रातः,-तर, प्रगे, प्राले, पूर्वेघुः-घुस्। ४ अव्य०)। यहांपर '-२-षस' का सम्बन्ध उसके पूर्ववर्ती 'प्रत्युषः, उषः' इन दो शब्दों के साथ होने से इनके प्रातिपदिकावस्था का रूप क्रमशः 'प्रत्युषस' और 'उषस्' होता है। इसी प्रकार मूलस्थ 'काल्यम्'. अर्थात् 'काल्य' शब्द के अतिरिक्त अन्य स्थानों में प्रातः' आदि शब्द भी 'प्रभात' अर्थ के वाचक हैं, इनमें 'प्रातः' शब्द के प्रातिपदिकावस्था का रूप 'प्रातर' है तथा 'प्रातर' से ४ शब्द (प्रातर, प्रगे, पाल, पूर्वेयुस्) अव्यय हैं, ऐसा जानना चाहिए।
() इस कोष्ठक के अन्तर्गत किसी चिह्न से रहित शब्द या शब्द-समूह पूर्ववर्ती शब्द के आशय को स्पष्ट करते हैं, यथा--"सहोक्त (साथ में कहे गये ), तीनों सन्ध्याकाल (प्रातः सन्ध्या, मध्याह्न सन्ध्या तथा सायं सन्ध्या)" ........। यहां 'सहोक्त' शब्द का आशय 'साथ में कहे गये और तीनों सन्ध्याकाल का आशय 'प्रातः सन्ध्या'..." है।
"शेषश्च ......” इससे 'स्वोपज्ञवृत्ति' में आये हुए शेष शब्दों के बोधक मूल श्लोकों को लिखा गया है।