Book Title: Aatmanushasan
Author(s): Bansidhar Shastri
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 5
________________ प्रस्तावना. अध्यात्मरसके आस्वादनसे होसकता है। अन्यथा नहीं। (२)-जो सुख संसारमें असंभव हैं वे भी इसीके अभ्याससे प्राप्त होते हैं। इसलिये मोससुखाकांक्षी जनोंकेलिये भी यही अध्यत्म विषय उपयोगी है । (३)-तीसरा कारण अध्यात्मरसकी उपयोगिताका यह भी है कि ज्ञानवान् तथा अज्ञानी, सभी इस विषयका मनन कर सकते हैं और मनन करनेसे तत्काल भी शांति लाभ करते दीखते हैं। इस प्रकार अध्यात्म रससे ओत-प्रोत भरे हुए इस ग्रंथके प्रकाशित होनेकी सबसे अधिक आवश्यकता थी। ग्रंथकारका महत्व व परिचयःइस ग्रंथमें सब कुछ मिलेगा। परंतु जो जितना अधिकारी है उसको उतना ही मिलेगा। यह ग्रंथ सरलसे सरल व कठिनसे कठिन है। इस ग्रंथको पूरा समझनेकेलिये न्याय, व्याकरण व साहित्य तथा नीति इन सब विषयोंके जाननेवाले पात्रकी आवश्यकता है । और आत्मोद्धारका उपदेश तो ज्ञानी अज्ञानी, सभीके योग्य भरा हुआ है। आजकलके संस्कृत विद्वानोंमें राजर्षि भर्तृहरिकी कविताका बहुत आदर है। परंतु गुणभद्रस्वामीकी इस कवितामें भी कुछ कमी नहीं है; बल्कि कितने ही अंशोंमें यह उससे भी चढ-बढकर है। भर्तृहरिकी कविता सामान्य उपदेशप्रद है; किंतु यह ग्रंथ सामान्य उपदेशके साथ ही साथ जैनसिद्धान्तके गूढ रहस्यको भी बताता है और आदिसे अंततक मोक्षप्राप्तिका उपाय भी क्रमानुसार दिखाता है । ग्रंथकी सुखबोधकता:इस ग्रंथमें सामान्य लोकोक्तियोंका तथा अन्य-पुराणोक्तियोंका कई जगह उल्लेख है परंतु उन उक्तयों को अपनी धर्मकथा नहीं समझना चाहिये । और यह आक्षेप भी करनेकी आवश्यकता नहीं है कि मिथ्या पुराणघटनाओंको यहां जगह क्यों दी? क्योंकि, यह ग्रंथ पुराण नहीं है किंतु धर्मोपदेशी है, इसलिये जहां साधारण जनोंको

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