Book Title: Aatmanushasan
Author(s): Bansidhar Shastri
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 4
________________ इस ग्रंथकी प्रशंसा. . . . नैन संप्रदायमें यों तो सभी विषयोंके ग्रंथ प्राय उपलब्ध होते हैं परंतु अध्यात्म ग्रंथोंका सबसे अधिक बाहुल्य है। यह आत्मानुशासन भी एक अपने ढंगका अपूर्व अध्यात्म-ग्रंथ है। इसकी प्रशंसामें मीयुत पंडित टोडरमलजीने एक हिंदी पद्य कहा है: - सोहै जिनशासनमें आसमानुशासन श्रुत, माकी दुखहारी सुखकारी सांची शासना। जाको गुणभद्र करता गुणभद्र जाको जानि, भद्रगुणधारी भन्य करत उपासना ॥ ऐसे सार शास्त्रको प्रकाशें अर्थ जीवनको बने उपकार नाशै मिध्या भ्रमवासना । तातै देशभाषा करि अर्थको प्रकाश करूं जाते मंदबुदिहकै होवै अर्थभासना ॥१॥ ग्रंथकी आवश्यकता. व्याकरण न्याय आदि विषयोंके ग्रंथोंकी आवश्यकता सर्वसामान्यको नहीं होती किंतु अध्यात्म विचार सुनने देखनेकी सभीको भावश्यकता है और सभी उसके पात्र भी होसकते हैं। क्योंकि, (१)-इस दुःखमय संसारमें जहां देखो वहां दुःख ही दुःख दीख पडते हैं । मदि इसमें कोई सुखपूर्वक दिवस विता सकता है तो वही कि जो अध्यात्म-रसका वेत्ता हो । इसका भी कारण यह है कि, विषयोंकी हवस बडनेसे न कहीं किसीको सुख हुआ और न हो रहा है। वास्तविक व निर्विन सुख विषयाकांक्षा घटनेपर ही होता है । अध्यात्म अंगोंके पढनेसे विषयाकांक्षा घटती है। इसलिये वास्तविक सुख इसी

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