________________ बड़े आंसनों के वर्ग में 'पूर्ण मत्स्येन्द्रासन' का यह सरल रूप है। समय पीठ की मांसपेशियाँ पर्याप्त लचीली हो जाने पर प्रत्येक ओर कम से कम एक मिनट तक इस आसन में स्थिर रहिये। एकाग्रता आध्यात्मिक : आज्ञा चक्र पर / भौतिक : अंतिम स्थिति में श्वास पर | लाभ पीठ की मांसपेशियों की मालिश करता है, नाड़ियों को शक्ति प्रदान करता है व मेरुदंड को लचीला बनाता है। उदर -प्रदेश के अंगों की मालिश कर पाचन - संबंधी रोगों को दूर करता उपवृक्क ग्रंथियों की क्रिया को नियमित कर उनके रस - स्राव के कार्यों को व्यवस्थित करता है। क्लोम ग्रंथि को क्रियाशील बनाता है। अतः मधुमेह रोग के प्रकोप को कम करता है। वात की शिकायत को दूर करने में मदद करता है। स्लिप डिस्क की प्रारंभिक अवस्था के उपचार में उपयोगी है। पीठ में स्थित अनेक नाड़ियों का शक्तिदाता है। सम्पूर्ण शरीर में फैली हुई मस्तिष्क से संबंधित नाड़ियों को शक्तिशाली और स्वस्थ बनाता है / इस प्रकार समस्त नाड़ी-संस्थान पर अच्छा प्रभाव डालता है। प्रारम्भिक अभ्यातियों के लिए सरल रूप यदि शरीर में कड़ापन हो तथा आसन का अभ्यास असंभव हो तो अभ्यासी पैर को मोड़कर नितम्ब के समीप न रखे वरन् उस पैर को सीधा ही रहने दें। शेष क्रिया अर्ध मत्स्येन्द्रासन की भाँति ही रहेगी / जब शरीर में लचीलापन आ जाये तो उचित विधिपूर्वक ही आसन का अभ्यास किया जाना चाहिए ताकि उसका पूरा लाभ मिल सके। 183