Book Title: Aasan Pranayam Mudra Bandh
Author(s): Satyanand Sarasvati
Publisher: Bihar Yog Vidyalay

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Page 388
________________ है। शेषं शक्तियों का उपयोग शरीर के समस्त स्नायुओं के लिये होता है / हृदय, यकृत आदि आंतरिक अंगों के स्नायु भी हाथ-पैरों के स्नायुओं के साथ इसमें सम्मिलित हैं। चर्बी रक्षक-कवच का निर्माण करती है जो कोमल अंगों की बाह्य आघातों से रक्षा करती है / भविष्य के उपयोग के लिये शक्ति के संग्रह में भी यह मदद पहुँचाती है। - इसके अंतर्गत आलू, चावल, रोटी, मक्खन, घी, तेल, शर्करा आदि पदार्थ आते हैं। (2) जीवन सत्व ये विशेष ध्यान देने योग्य भोज्य पदार्थ हैं। इनके द्वारा नवीन कोशाओं का निर्माण होता है / जिन कोशाओं को कुछ क्षति पहुँची हो, उनके सुधार तथा स्नायु-विकास के लिये भी इनकी आवश्यकता है। शरीर में रोग-निरोध शक्ति उत्पन्न करने के लिये भी ये कई पदार्थों का निर्माण करते हैं। कुछ अन्य ऐसे पदार्थों की उत्पत्ति भी करते हैं जिनका उपयोग शरीर में अंतःस्रावी रस तथा पाचक रस आदि के लिये होता है / जीवन सत्व कई प्रकार के होते हैं। प्रत्येक का शरीर में विशेष कार्य है। भोजन का यह उपयोगी अंश है। अधिकांशतः इनकी उपस्थिति दूध, पनीर, मट्ठा मांस, मछली, अण्डा, चना, सेम, अखरोट, बादाम आदि में होती है / अनाज़, हरी सब्जी तथा फलों में इनकी मात्रा न्यून होती है। / (3) खनिज लवण - भोजन के आवश्यक तत्वों में यह एक वर्ग है / शारीरिक अवस्था ठीक रखने का कार्य इसका है। उदाहरणार्थ- अस्थियों तथा दाँतों को मजबूत बनाये रखने के लिये कैल्शियम तथा फॉस्फोरस अनिवार्य हैं। हीमोग्लोबिन ' (रक्त कोशा में जीवन सत्व) की उत्पत्ति के लिए लोहा अनिवार्य खनिज है। इसकी अनुपस्थिति में शरीर अनुपयोगी बन जाता है। शरीर में आयोडिन के कुछ ही कण होते हैं परन्तु इसके अभाव में चुल्लिका ग्रन्थि रस-निर्माण कार्य में असमर्थ रहती है। सोडियम क्लोराइड के रूप में नमक भी आवश्यक है / यह शरीर के अम्लों में संतुलन रखता है। इसके बिना जीवन दुर्लभ है / परन्तु यह याद रखना चाहिये कि नमक की अधिक मात्रा से रक्तचाप बढ़ जाता है तथा पैरों और पूरे शरीर में सूजन आ जाती है / अतः उचित मात्रा में ही नमक का - प्रयोग करना चाहिये / इन लवणों की उपस्थिति फल, हरी सब्जी ( विशेषकर . . 371

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