Book Title: Aasan Pranayam Mudra Bandh
Author(s): Satyanand Sarasvati
Publisher: Bihar Yog Vidyalay

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Page 389
________________ ताजी एवं बिना पकाई हुई ) तथा उसके छिलके में और छिलके के निचले प्रदेश में बहुत परिमाण में होती है। (4) विटामिन यह चतुर्थ और अंतिम वर्ग है। इनकी शरीर को अत्यधिक आवश्यकता होती है। ये शरीर के असंख्य रासायनिक परिवर्तनों के लिये उत्प्रेरक का काम करते हैं। विटामिन ए . शरीर के समस्त महत्वपूर्ण अंगों के लिए यह आवश्यक है / यह चर्म को. . चिकना व स्वच्छ रखने में मदद करता है / नासिका की श्लेष्मा. झिल्ली, वायु नलिका तथा गले को शक्तिशाली रखते हुये जुकाम तथा इस प्रदेश के अन्य दोषों से बचाव करता है / वृक्क, मूत्राशय तथा मूत्रनलिका और पाचन ग्रंथि पर अच्छा प्रभाव डालता है / अस्थियों एवं दाँतों के सामान्य विकास के लिये अनिवार्य है / इसकी अनुपस्थिति का प्रभाव कोशाओं पर पड़ता है। चमड़ी मोटी और खुरदुरी हो जाती है, आँखों की चमक तथा उनकी क्रियाशीलता कम . हो जाती है। शरीर अधिकांशतः एवं सरलतापूर्वक स्पर्शदोष का शिकार हो जाता है। इस विटामिन के सर्वोत्तम स्रोत ये हैं-मक्खन, घी, ताजा दूध, अंडे का पीला भाग, पत्तेदार सब्जियाँ, गाजर-मूली, फल तथा अन्य सब्जियाँ। विटामिन की इसमें एक दर्जन से भी अधिक भोजन तत्वों का योग रहता है। कछ की आवश्यकता कोशाओं में शक्ति पहुँचाने के लिये होती है। शेष लाल रक्तकोशाओं के निर्माण के लिये अनिवार्य हैं। महत्वपूर्ण भोजन तत्व में से एक विटामिन बी/१ (thiamine) है / इसका सम्बन्ध स्नायुओं एवं नाड़ियों से है। इसके बिना कोई कार्य नहीं हो सकता / कोशा में यदि इसका अभाव हो तो कार्बोज का उपयोग नहीं किया जा सकता। इसकी अनुपस्थिति में नाड़ी संस्थान कार्य नहीं कर सकता, शरीर में दर्द हो जाता है, नाड़ी-दोष आ जाते हैं, भूख की कमी हो जाती है एवं पांडुरोग तथा बेरीबेरी रोग उत्पन्न हो सकते itho दूसरा महत्वपूर्ण भोजन तत्व विटामिन बी/२ (riboflavin) है। इसकी आवश्यकता भोजन को पचाने वाले पाचक रस के लिये है ( भोजन के पाचन में 372

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