Book Title: Aagam Manjusha 15 Uvangsuttam Mool 04 Pannavanaa
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 22
________________ नीरया निम्मला वितिमिरा विसुद्धा पंचदिसि पंच अणुत्तरा महइमहालया महाविमाणा पं० त०- विजए वेजयंते जयंते अपराजिए सबढसिद्धे, ते णं विमाणा सश्वरयणामया अच्छा० पडिरूवा, एत्य णं अणुत्तरोववाइयाण देवाण पजत्तापज्जत्ताणं ठाणा 40 तिसुवि लोगस्स असंखेजइभागे. तत्थ ण बहवे अणुत्तरोववाहया देवा परिवसंति, सो समिढिया० सधे समबला सके समाणुभावा महासुक्खा अणिंदा अप्पेस्सा अपुरोहिया अहमिंदा नाम ते देवगणा पं० समणाउसो! 1५३। कहिं भंते ! सिद्धार्ण ठाणा पं० कहिण भंते सिद्धा परिवसति?, गो! सबसिद्धस्स महाविमाणस्स उवरिछाओ यूभियग्गाओ दुवालस जोयणे उड़े अचाहाए एत्य णं ईसीपब्भारा णामं पुढवी ५० पणयालीसं जोयणसयसहस्साई आयामविक्खं . भेणं एगा जोयणकोडी वायालीसं च सयसहस्साई तीसं च सहस्साई दोनि य अउणापन्ने जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवणं पं० ईसिपम्भाराए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणिए खेते अट्ठ जोयणाई बाहलेणं पं० तओ अर्णतरं च णं मायाए २पएसपरिहाणीए परिहायमाणी २ सवेसु चरमंतेसु मच्छियपत्ताओ तणुययरी अंगुलस्स असंखेजइभार्ग बाहलेणं पं०, ईसीपम्भाराए णं पुढवीए दुवालस नामधिज्जा पं० त० ईसिइ वा ईसीपम्भाराइ वा तणुइ वा तणुतणुइ वा सिद्धित्ति वा सिद्धालएति वा मुत्तित्ति वा मुत्तालएइ वा लोयग्गेत्ति वा लोयग्गथूभियाति वा लोयग्गपडिवुज्ाणाइ वा सवपाणभूयजीवसत्तसुहावहाइ वा, ईसीपभारा णं पुढवी सेया संखदलविमलसोस्थियमुणालदगरयतुसारगोक्खीरहारवण्णा उत्ताण| यच्छत्तसंठाणसंठिया सबजुणसुवण्णमई अच्छा सण्हा घट्ठा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निकंकडच्छाया सप्पभा समिरिया सउज्जोया पासाईया दरिसणिजा अभिरूवा पडिरूवा, ईसीपभाराए णं पुढवीए सीआए जोयणम्मि लोगंतो तस्स णं जोयणस्स जे से उवरि गाउए तस्स र्ण गाउयस्स जे से उवरिले छब्भागे एत्य णं सिद्धा भगवंतो साइया अपज्जव. सिया अणेगजाइजरामरणजोणिसंसारकलंकलीभावपुणब्भवगम्भवासवसहीपवंचसमइकता सासयमणागयदं कालं चिट्ठति, तत्यवि य ते अवेया अवेयणा निम्ममा असंगा य संसारविप्पमुक्का पएसनिश्वत्तसंठाणा 'कहिं पडिहया सिद्धा, कहिं सिद्धा पइट्ठिया। कहिं चोदि चइत्ताणं, कत्य गंतूण सिज्झइ ? ॥९॥ अलोए पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्ठिया। इह बॉविं चइत्ताणं, तत्थ गंतूण सिज्झइ ॥१६०॥ दीहं वा हस्सं वा जं चरिमभवे हविज संठाणं । तत्तो तिभागहीणा सिद्धाणोगाणा भणिया ॥१॥ संठाणं तु इहं भवं चयंतस्स चरिमसमयमि। आसी य पदेसघणं तं संठाणं तहिं तस्स ॥२॥ तिन्नि सया तित्तीसा धणुत्तिभागोय होइ नायचो। एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिया ॥३॥ चत्तारि य रयणीओ रयणी तिभागणिया य बोडवा। एसा खल सिद्धाणं मज्झिम०॥४॥एगा य होइ रयणी अट्टेव य अंगुलाई साहियया।एसा खल सिद्धाणं जह०॥५॥ ओगाहणाइ सिद्धा भवत्तिभागेण होति । परिहीणा। संठाणमणित्थंथं जरामरणविप्पमुकाणं ॥६॥ जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ अणंता भवक्खयविमुक्का। अन्नोऽनसमोगाढा पुट्ठा सधेवि लोगते ॥७॥ फुसइ अणते सिद्धे सञ्चपएसेहिं नियमसो सिहो। तेऽवि य असंखिज्जगुणा देसपएसेहिं जे पुट्ठा ॥८॥ असरीरा जीवघणा उवउत्ता दसणे य नाणे या सागारमणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं ॥९॥ केवलनाणुवउत्ता जाणता सवभावगुणभावे । पासंता सबओ खलु केवलदिट्ठीहिणताहि ॥१७०॥ नवि अस्थि माणुसाणं तं सुक्खं नवि य सचदेवाणं । जं सिदाणं सुक्खं अचाबाहं उवगयार्ण ॥१॥ सुरगणसुहं समत्तं सचद्धापिंडियं अर्णतगुणं । नवि पावइ मुत्तिमुहं णंताहिं वग्गवग्गृहि ॥२॥ सिद्धस्स सुहो रासी सचद्धापिंडिओ जइ हवेजा। सोऽणंतवग्गभइओ सबागासे न माइज्जा ॥३॥ जह णाम कोइ मिच्छो नगरगुणे बहुविहे वियागतो। न चएइ परिकहेउं उवमाए तहिं असंतीए॥४॥ इय सिद्धाणं सोक्खं अणोवम नत्थि तस्स ओवम्म। किंचि. विसेसेणित्तो सारिक्वमिणं सुणह वोच्छं ॥५॥ जह सबकामगुणिय पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई। तण्हाछुहाविमुको अच्छिज जहा अमियतित्तो॥६॥ इय सबकालतित्ता अतुलं निश्वाणमुवगया सिद्धा। सासयमवावाहं चिट्ठति सुही सुहं पत्ता ॥७॥सिद्धत्ति य बुद्धत्ति य पारगयत्ति य परंपरगयत्ति। उम्मुक्कम्मकवया अजरा अमरा असंगा य॥८॥ निच्छिन्नसक्दुक्खा जाइजरामरणबंधणविमुक्का। अब्बाबाह सोक्खं अणुहोंती सासर्य सिद्धा॥१७९॥५४॥ इइ ठाणपयं२॥ दिसि गइ ईदिय काए जोए वेए कसाब लेसा य। सम्मत्त नाण १० दसण संजय उवओग आहारे ॥१८०॥ भासग परित्त पजत्त सुहुम सन्नी भव२०ऽथिए चरिमे। जीवे य खित्त बन्धे पुग्गल महदंडए २७चेव॥१८१॥ दिसाणुवाएणं सवत्थोवा जीवा पच्छिमेणं, पुरच्छिमेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया।५५। दिसाणुवाएणं सवत्थोवा पुढविक्काइया दाहिणेणं उत्तरेणं विसेसाहिया पुरच्छिमेणं विसेसाहिया पच्छिमेणं विसेसाहिया, दिसाणु सपत्थोचा आउकाइया पच्छिमेणं पुरच्छिमेणं विसे० दाहिणेणं विसे० उत्तरेणं विसे, दिसाण सम्ब० तेउकाइया दाहिणुत्तरेणं पुरच्छिमेणं संखे. पच्छिमेणं विसे०, दिसा सवत्थोवा वाउकाइया पुरच्छिमेणं पच्छिमेणं विसे० उत्तरेणं विसे० दाहिणणं विसे०, दिसाणु सबथोवा वणस्सइकाइया पच्छिमेणं पुरच्छिमेणं विसे०. दाहिणेणं विसे० उत्तरेणं विसे०, दिसा० सबत्योवा बेईदिया पच्छिमेणं पुरच्छिमेणं विसे० दक्खिणेणं विसे० उत्तरेणं विसे०, दिसा सवत्थोवा तेइंदिया पञ्चत्थिमेणं पुरच्छिमेणं विसे. ६९३ प्रज्ञापना, पद-३ मुनि दीपरत्नसागर

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