Book Title: Aagam Manjusha 15 Uvangsuttam Mool 04 Pannavanaa
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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छहाणवडिए । सेनं रूविअजीवपजवा, सेत्तं अजीवपजवा ।१२१॥ इति पन्नवणाए बिसेसपर्य ५॥ 'वारस चउवीसाई सअंतरं एगसमय कनो य। उबट्टण परभक्यिाउयं च अट्टेव आगरिसा ॥१८२॥ निस्यगई णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पं०?, गो०! जहरू एक समयं उक्को बारस मुहुत्ता, तिरियगई णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उबवाएणं पं. गो! जह० एगं समयं उक्को० वारस मुहुत्ता, मणुयगई णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पं०१, गो०! जह० एग समयं उक्को. बारस मुहुत्ता, देवगई णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उबवाएणं पं०?, गो०! जह० एग समयं उक्को० बारस मुहुत्ता, सिद्धिगई णं भंते! केवइयं कालं विरहिया सिझणाए पं०?, गो० जह: एर्ग समयं उक्को छम्मासा, निर. यगई णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उबट्टणाए पं०?, गो०! जह० एकं समयं उक्को बारस मुहुत्ता, तिरियगई णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उच्व पं.?, गोजह एगं समयं उक्को बारस मुहुत्ता, मणुयगई णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उबट्टणाए पं०, गो! जहएग समयं उको बारस मुहुत्ता, देवगई भंते ! केवाइयं कालं विरहिया उबट्टणाए पं०?, गोन जहएगं समयं उको बारस मुहुत्ता। दारं १३१२२। स्यणप्पभापुढवीनेरइया णं भंते! केवइयं कालं विर० उप० ५०?, गो०! जहरू एग समयं उपको बउवीस मुहुत्ता, सक्करप्पभा० केवइयं कालं विर० उपवाएणं पं०१, गो०! जह० एग समयं उक्को सत्तराईदियाणि, वालुयप्पभा० केवइयं कालं विर० उववा० ५०, गोजह एग समयं उको अदमासं, पंकप्पभा० केवइयं कालं पिर० उपवा०५०१. गो०! जह० एग समयं उकको मासं, धूमप्पभा० केवइयं कालं विर० उवचा०५०?, गो, जहएगं समयं उककोदो मासा, तमा० केवइयं कालं विर० उव० ५०?, गो०! जह० एगं समयं उक्को० चत्तारि मासा, अहेसत्तमाः केवइयं कालं विर० उववा० ५०१, गो! जहरू एगं समयं उक्को छ. म्मासा, असुरकुमारा णं भंते ! केवइयं कालं विर० उववा० पं०?, गो०! जह• एगं समयं उक्को चउबीस मुहुत्ता, नाग० केवइयं कालं विर० उबवा पं०?, गो, जह: एगं समय उक्को चउच्चीसं मुहुत्ता, एवं सुवनविजुअग्गिदीवदिसाउदहिवाउथणियकुमाराणं पत्तेयं जहएगं समयं उक्को चउनीसं मुहुत्ता, पुढवीकाइया णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उवा पं०?, गो०! अणुसमयमविरहियं उववाएणं पं०, एवं आउतेउवाउवणस्सइकाइयाणवि अणुसमयं अविरहिया उववाएणं पं०, बेईदिया णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववा०
मुहुर्त, एवं तेईदियचडरिदिया, समुच्छिमपंचिदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उव० पं०?, गो०! जहएग समय उको अंतो, गम्भवतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! केवइयं कालं विर० उववा०पं०?, गोजहएगं समयं उको बारस महत्ता, संमच्छिममणस्सा णं भंते ! केवइयं कालं विर० उववा० ५०?, गो. जह• एग समयं उक्को चउदीसं मुहुत्ता, गम्भवतियमणुस्साणं जह एग समयं उको बारस मुहत्ता, वाणमंतराणं जह० एर्ग समयं उको चउत्रीसं मुहुना, जोइसियाणं पुच्छा, गो० जहरू एग समयं उको चउबीसं मुहुत्ता, सोहम्मे कप्पे देवा?, गो! जहरू एर्ग समयं उफी० चउथीसं मुहत्ता, इंसाणे०१. गो० जह एग समयं उको चउचीसं महुत्ता, सर्णकुमारे?, गो, जह० एग समयं उकोकणव राईदियाई बीसाई मुहुत्ताई, माहिं दे०?, गोजह एग समयं उक्को बारस राईदियार्ण दस मुहुना, बंभलोए?, गो! जहः एग समयं उक्को अद्धतेवीसं राइंदियाई, लंतगदेवाणं पुच्छा, गो०! जह• एगं समयं उक्को पणतालीसं राइंदियाइ. महामुक्कदेवाणं पुच्छा, गो० जहरू एग समयं उक्को असीई राईदियाई, सहस्सारे०, गो! जहरू एग समयं उक्को राइंदियसयं, आणयदेवाणं०, गो जहरू एग समयं उक्कोकसंखेनमासा. पाणयदेवाणं०, गोजह एगं समयं उक्को संखेजमासा, आरणदेवाणं गो जह एग समयं उक्को संखिज्जवासा, अय्यदेवाणं०, गो० जह० एग समयं उक्को संखिज्जा वासा, हिडिमगेविजाणं.?.गो.जह एगं समयं उक्को सखिजाई वाससयाई, मज्झिमगेविजाणं?, गो! जह एगं समयं उक्को संखिजाई वाससहस्साई. उबरिमगेचिजाणं.गो! जह एगं समयं उक्को संखिजाई वाससयसहस्साई, विजयवेजयंतजयंतअपराजितदेवाणं पुच्छा, गो०! जह एग समय उक्को. असंखेज कालं, सबट्टसिद्धगदेवाणं पुच्छा, गो !जह. एग समयं उक्को पलिओवमस्स संखिजइभार्ग, सिद्धा णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया सिझणाए पं०?, गो० जहरू एग समयं उक्को छम्मासा । १२३ । रयणप्पभापुढवीनेरइया णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उबट्टणाए पं०?, गो०! जह० एर्ग समय उक्को चउबीस मुहुत्ता एवं सिद्धवजा उचट्टणावि भाणियवा जाच अणुत्तरोववाइयनि नवरं जोइसियवेमाणिएसु चयणंति अहिलाबो कायद्यो । दारं २।१२४। नेरइया णं भंते ! किं संतरं उववजति निरंतरं उववजंति?, गो० संतरपि उववजति निरंतरपि उववजंति, तिरिक्खजोणिया ण भंते ! किं संतरं उव० निरंतरं उव०?, गो०! संतरंपि उवव० निरंतरपि उवव०, मणुस्सा णं भंते ! किं संतरं उवव० निरंतरं उवव०?, गो० संतरपि उव निरंतरंपि उवव०, देवा णं भंते ! गो! संतरंपि उवव० निरंतरंपि उवव०, रयणप्पभापुढवीनेरइया भंते !?,गो०! संतरंपि उवव निरंतरपि उवव०, एवं जाव अहेसत्तमाए संतरंपि उवव निरंतरंपि उवव०, असुरकुमारा ] ७१३ प्रज्ञापना पद- 5
मुनि दीपरत्नसागर
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