Book Title: Aagam Manjusha 15 Uvangsuttam Mool 04 Pannavanaa
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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जोएवं परिमंडलस्स णं भंते! संठाणस्स असंखेजपए सियस्स संखेजपएस गाढस्स अचरमस्स चरमाण य चरमं तपसाण य अचरमंतपएसाण यदब्बट्टयाए पएसइयाए दब्बडपएसट्टयाए कयरे० ?, गो०! सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स असंलेजपएसिअस्स संखेनपएसोगादस्स दव्वट्टयाए एगे अचरमे चरमाति संखेजगुणाति अचरमं च चरमाणि य दोवि विसेसाहियातिं पदेसट्टयाते सब्यस्थोचा परिमंडलसंठाणस्स असंखेजपएसियरस संखेजपएसोगाढम्स चरमंतपएला अचरमंत संखि चरमंत० य अचरमंत० य दोषि विसे० दब्बट्टएसइयाए सम्बत्योचे परिमंडलम्स संठाणस्स असंखेजपएसियन्स संखेजपएसोगादस्स दब्बट्टयाए एगे अचरिमे चरमातिं संसेजगुणातिं अचरमं च चरमाणि य दोवि विसेसाहि यातिं चरमंतपसा संखेज अचरमंतपएसा संखेन चरमंत० य अचरमंत० य दोवि विसे० एवं जाव आयते, परिमंडलस्स णं भंते! संठाणस्स असंखेजपएसियस्स असंखेज्जपएसोगाढस्स अचरमस्स चरमाण य चरमंतपसाण य अचरमंतपएसाण य दण्बट्टयाए पएसइयाए दब्बटुपएसट्टयाए कयरे ०१, गो०! जहा रयणप्पभाए अप्पाचहुये तहेब निरवसेसं भा णिय एवं जाव जयते परिमंडलस्स णं भंते! संठाणस्स अनंतपाएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स अचरिमस्स य० दव्वट्टयाए० कयरे ०१, गो० ! जहा संरखेजपएसियरस संरखेजपएसोगाटस्स नवरं संकमेणं अनंतगुणा, एवं जाब आयए, परिमंडलस्स णं भंते! संठाणस्स अणतपएसियस्स असंखेजपएसोगाटस्स अचरमस्स य० जहा रयणप्पभाए नवरं संकमे अनंतगुणा, एवं जाब आयते । १५९। जीये णं भंते! गतिचरमेणं किं चरमे अचरमे १, गो० सिय चरमे सिय अचरमे, नेरइए णं भंते! गतिचरमेणं किं चरिमे अचरिमे ?, गो० सिय सिय अचरमे, एवं निरंतरं जाव बेमाणिए, नेरइया णं भंते! गतिचरमेणं किं चरिमा अचरिमा १, गो० ! चरिमावि अपरिमावि, एवं निरंतरं जाव वैमाणिया, नेरइए णं भंते! चरमे ठितिचरमेणं किं चरमे अचरमे ?, गो० ! सिय चरमे सिय अचरमे, एवं निरंतरं जाय बेमाणिए, नेरइया णं भंते! ठिवीचरमेणं किं चरमा अचरमा ?, गो० ! चरमावि अचरमावि, एवं निरंतरं जाव वेमाणिया, नेरइए णं भंते! भवचरमेणं किं चरमे अचरमे १, गो०! सिय चरमे सिय अचरमे, एवं निरंतरं जाव वैमाणिए, नेरइया णं भंते! भवचरमेणं किं चरमा अचरमा १, गो० ! चरमावि अचरमावि, एवं निरंतरं जाव वैमाणिया, पेरइए णं भंते! भासाचरमेणं किं चरमे अंचरमे १, गो० सिय चरमे सिय अचरमे, नेरइया णं भंते! भासाचरमेणं किं चरमा अचरमा १, गो० ! चरमावि अचरमावि, एवं जाव० एगिंदियवजा निरंतरं जाव वैमाणिया, नेरइए णं भंते! आणापाणुचरमेणं किं चरमे अचरमे १, गो० ! सिय चरमे सिय अचरमे, एवं निरंतरं जाव बेमाणिए, नेरइया णं भंते! आणापाणुचरमेणं किं चरमा अचरमा ?, गो०! चरमावि अचरमावि एवं निरंतरं जाव बेमाणिया, नेरइए णं भंते! आहारचरमेणं किं चरमे अचरमे १, गो० सिय चरमे सिय अचरमे, एवं निरंतरं जाव वेमाणिए, नेरइया णं भंते! आहारचरमेणं किं चरमा अचरमा ?, गो० ! चरमावि अचरमावि, एवं निरंतरं जाव वैमाणिया, नेरइए णं भंते! भावचरमेणं किं चरमे अचरमे १, गो० ! सिय चरमे सिय अचरमे, एवं निरंतरं जाव वेमाणिए, नेरइया णं भंते! भावपरमेणं किं चरमा अचरमा ?, गो० ! चरमाथि अचरमावि, एवं निरंतरं जाव वैमाणिया, नेरइए णं भंते! वण्णचरमेणं किं चरमे अचरमे ?, गो० सिय चरमे सिय अचरमे, एवं निरंतरं जाव वैमाणिए, नेरइया णं भंते! वण्णचरमेणं किं चरमा अचरमा १. गो० ! चरिमावि अचरिमावि, एवं निरंतरं जाव वेमाणिया, नेरइए णं भंते! गंधचरमेणं किं चरमे अचरमे ?, गो० ! सिय चरमे सिय अचरमे, एवं निरंतरं जाव वैमाणिए, नेरइया णं भंते! गंधचरमेणं किं चरमा अचरमा १, गो० ! चरमावि अचरमावि, एवं निरंतरं जाव वैमाणिया, नेरइए णं भंते! रसचरमेणं किं चरमे अचरमे १, गो० सिय चरमे सिय अचरमे, एवं निरंतरं जाव वैमाणिए, नेरइया णं भंते! रसचरमेणं किं चरमा अचरमा ? गो० ! चरमावि अचरमावि, एवं निरंतरं जाव वैमाणिया, नेरइए णं भंते! फासचरमेणं किं चरमे अचरमे ?, गो०! सिय चरमे सिय अचरमे, एवं निरंतरं जाव बेमाणिए, नेरइया णं भंते! फासचरमेणं किं चरमा अचरमा ?, गो० ! चरमावि अचरमावि, एवं जाव बेमाणिया, संग्रहणीगाहा गति ठिइ भवे य भासा आणापाणुचरमे य बोदवा आहार भावचरमे वण्ण रसे गंध फासे ये ॥ १९९ ॥ १६० ॥ चरमपदं १० ॥ से पूर्ण भंते! मण्णामीति ओहारिणी भासा चिंतेमीति ओहारिणी भासा अह मण्णामीति ओधारिणी भासा अह चिंतेमीति ओधारणी भासा तह मण्णामीति ओधारिणी मासा तह चिंतेमीति ओहारिणी भासा ?, हंता गो०! मण्णामीति ओधारिणी भासा चिंतेमीति ओधारिणी भासा अह मण्णामीति ओधारिणी भासा अह चिंतेमीति ओघा० तह मण्णामीति ओधा० तह चिंतेमीति ओधा०, ओहारिणी णं मंते! मासा किं सथा मोसा सामोसा असथामोसा १, गो० सिय सथा सिय मोसा सिय सथामोसा सिय असच्चामोसा, सेकेणणं भंते! एवं दुम्बति ओधारिणी णं मासा सिय सथा जाव असथामोसा १, गो० आराहिणी सथा विराहिणी मोसा आराहणविराहिणी सथामोसा जा णेव आराहणी व विराहिणी वाराहणविराहिणी सा असच्चामोसा णामं सा चउत्थी भासा से तेणट्टेणं गो०! एवं दुम्बति ओहारिणी णं भासा सिय सञ्चा० सिय असचामोसा १६१। अह भंते! गाओ ७२२ प्रज्ञापना - १९
मुनि दीपरत्नसागर
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