Book Title: Aagam Manjusha 15 Uvangsuttam Mool 04 Pannavanaa
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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पप्प पम्हा सुक्क पप्प, से नूर्ण भंते ! सुक्का पम्हं पप्प णो तारूवत्ताए जाव परिणमति ?, हंता गो०! सुक्का तं चेव, से केणतुणं भंते! एवं वुचति-सुक्का जाव णो परिणमति ?, गो०! आगारभावमायाए वा जाव सुक्का णं सा, णो खलु सा पम्हा,तत्थ गया ओसक्कइ० से तेणठूर्ण गो!एवं बुच्चइ-जाव णो परिणमइ।२३१॥१७लेसापए उ०५॥कति णं भंते ! लेसा पं०?, गो०! छ लेसा पं० त० कण्ह जाव सुक्क०, मणुस्साणं भंते ! कह लेसा पं०१, गो० छ लेस्साओ पं० त०-कण्ह जाव सुक्क०, मणुस्सीर्ण छाडेसाओ पं० तं- कण्हा जाब मुक्का, कम्मभूमयमणुस्साणं० छ पं०२०- कण्हा जाव सुक्का, एवं कम्मभूमयमणुस्सीणवि, भरहेरवयमणुस्साणं० छ पं० त०-कण्हा जाव मुक्का, एवं मणुस्सीणवि, पुष्वविदे। हअवरविदेहकम्मगमणु०१, गो! छ लेसाओ कण्ह जाव सुक०, एवं मणूसीणवि, अकम्मभूमयमणुस्साणं०१ चत्तारि लेसाओ पं० तं०- कण्हा जाव तेउ,एवं अकम्मभूमिगमणुस्सीणवि, एवं अंतरदीवमणुस्साणं अंतर०मणुस्सीणवि, एवं हेमवयएरनवयमणुस्साणं मणुस्सीण य, गो! चत्तारिपंत-कण्हा जाव तेउ०,हरिवासरम्मयअकम्ममणुस्साणं मणुस्सीण य चत्तारितं०-कण्हा जाव तेउ०, देवकरुउत्तरकरुअकम्ममणस्सा एवं चेच, एतेसिं चेव मणस्सीणं एवं चेव. धायडसंडपरिमदेवि एवं चेव, पच्छिमदेवि एवं पक्खरदीवेवि भाणिय. N कष्हलेसे गं भंते ! मणुस्से कण्हलेसे गभं जणेज्जा ?, हंता गो०! जणेजा, कण्हले० मणुस्से नीललेसं गभं जणेजा?, हंता गो० जणेज्जा, जाव सुकलेसं गर्भ जणेजा, नीललेसे | मणुस्से कण्हलेसं गम्भ जणेजा ?, हंता गो०! जणेजा, एवं नील० मणुस्से जाव सुक्कलेसं गम्भ जणेजा, एवं काउलेसेण छप्पि आलावगा भाणियचा, तेउ० पम्ह० मुक्कलेसाणवि, एवं छत्तीसं आलावगा भा०, कण्ह. इत्थिया कण्हलेसं गम्भं जणेज्जा ?, हंता गो०! जणेजा, एवं एतेवि छत्तीसं आलावगा भाणियबा, कण्हलेसे भंते ! मणुस्से कण्हलेसाए इस्थियातो | कण्हलेसं गभं जणेजा ?, हंता गो०! जणेजा, एवं एते छत्तीसं आलावगा, कम्मभूमगकण्हलेसे णं भंते ! मणुस्से कण्ह इत्थियाए कण्हलेसं गम्भं जणेजा ?. हंता गो० जणेज्जा, एवं एते छत्तीसं, अकम्मभूमयकण्ह मणुस्से कण्ह इत्थियाए अकम्मभूमयकण्हलेसं गर्भ जणेज्जा?, हंता गो० जणेजा, नवरं चउसुलेसासु सोलस आलावगा, एवं अंतरदीवगाणवि ।२३२॥ उ०६ लेस्सापदं १७॥ 'जीव गइदिय काए जोए बेए कसाय लेसा य । सम्मत्त णाण दंसण संजय उवओग आहारे ॥२११॥ भासग परित्त पजत मुहुम सन्नी भवऽस्थि चरिमे य। एतेसिं तु पदाणं कायठिई होइ णायका ॥२१२॥ जीवे णं भंते! जीवेत्ति कालतो केवचिरं होइ?, गो! सबई, दारं १।नेरइए णं भंते नेरइएत्ति कालओ केचिरंभ होइ ?, गो०! जहन्ने] दस वाससहस्साई उकोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई, तिरिक्खजोणिए णं भंते ! तिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होइ?, गो! जहअंतोमुहत्तं उक्कोसेर्ण
सप्पिणीओ कालतो खेत्तओ अणंता लोगा असंखेजपोग्गलपरियट्टा ते णं पुग्गलपस्थिट्टा आवलियाए असंखिजइभागे, तिरिक्खजोणिणी णं भते! - तिरिक्खजोणिणित्ति कालओ केवचिरं होइ ?, गो जहन्नेणं अंतोमुहुर्त उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई पुचकोडी हुत्तमभहियाई, एवं मणुस्सेवि, मणुस्सीवि एवं चेव, देवे णं भंते ! देवेत्ति कालओ केवचिरं होइ ?, गो०! जहेव नेरइए, देवी णं भंते ! देवित्ति कालतो केवञ्चिरं होइ , गो०! जहन्नेणं दस वाससहस्साई उक्कोसेणं पणबन्न पलिओवमाई. सिद्धे णं भंते ! सिद्धेत्ति कालतो केवचिरं होइ?, गो० सादिए अपजवसिए, नेरइए णं भंते ! नेरइयअपजत्तएत्ति कालतो केवचिरं होइ ?, गो०! जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुतं, एवं जाव देवी अपजत्तिया, नेरइयपजत्तए णं भंते ! नेरइयपजत्तएत्ति कालतो केवचिरं होइ ?, गो०! जहन्नेणं दस वाससहस्साई अंतोमुहुतूणाई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुहुतूणाई, तिरिक्खजोणियपजत्तए णं भंते ! तिरिक्खजोणियपज्जत्तएत्ति कालतो केवचिर होइ?, गो०! जहनेणं अंतोमुहुतं उक्को तिन्नि पलिओवमाई अंतोमुहुत्तूणाई. एवं ति. रिक्खजोणिणीपजत्तियावि, एवं मणुस्सेवि मणुस्सीवि, एवं चेव देवपजत्तए जहा नेरइयपज्जत्तए, देवीपजत्तिया णं भंते! देवीपज्जत्तियत्ति कालतो केवचिरं होइ?, गो! जहरू दस वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई उको० पणपन्नं पलिओवमाई अंतोमुहुत्तूणाई। दारं २।२३३। सइंदिए णं भंते! सईदिएत्तिकालतो केवचिरं होइ ?, गो०! सईदिए दुविहे पं० त० अणाइए वा अपजवसिए अणाइए वा सपज्जवसिए, एगिदिए णं भंते ! एगिदिएत्ति कालतो केवचिरै होइ ?, गो! जह• अंतोमुहुत्तं उक्को० अणतं कालं वणस्सइकालो, बेइंदिए णं भंते ! बेइंदिएत्ति कालतो केवचिरं होइ ?, गो! जह• अंतो० उक्को० संखेनं कालं, एवं तेइंदियचउरिदिएवि, पंचिंदिए णं भंते ! पंचिंदिएत्ति कालतो केवचिरं होइ ?, गो० जह• अंतो० उक्को सागरोवमसहस्सं साइरेग, अणिदिएणं पुच्छा, गो! साइए अपजवसिए, सईदियअपज्जत्तए णं भंते ! पुच्छा, गो०! जह० उक्को अंतो०,एवं जाव पंचिंदियअपजत्तए, सई . दियपजत्तए णं भंते! सइंदियपजत्तएत्ति कालतो केवचिरं होड?,गो जह० अंतो० उक्को० सागरोवमसतपहत्तं सातिरेगं, एगिदियपज्जत्तएणं में उक्को संखेज्जाई वाससहस्साई, पेइंदियपजत्तए ण पुच्छा, गो०! जह• अंतो० उक्को० संखेजवासाई, तेईदियपजत्तए पुच्छा, गो०! जह• अंतो० उक्को० संखेजाई राईदि. ७४५ प्रज्ञापना, पद-१८
मुनि दीपरत्नसागर
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