Book Title: Aagam 44 Nandisutra Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 8
________________ आगम (४४) "नन्दी”- चूलिकासूत्र-१ (चूर्णि:) ...................मूलं / गाथा ||२-७|| ...... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र- [४४], चूलिकासूत्र- [१] "नन्दीसूत्रस्य चूर्णि: प्रत सूत्रांक गाथा ||२-७|| ताण' (१२-१५) गाहा, रागयोसाविमरी जिणतो जितेंसु वा जिब्वइन्ति, सन्वसुताणति सुतणाणत्थाणं भगवंततो पभवोत्ति पसती,#I श्री नन्दीचूणौं अणिद्वषयणपरिहारातो पश्चिमोवि अपच्छिमो भवति, अहवा पच्छाणुपुष्धीए अपरिममे वीरो उसभो पच्छिमा. अविसिहसम्णिजीवळोगम्मा सषस्तुतिः वा, अहवा सम्मारिद्विमादिसंजुत्तो संजतलोगस्स गुरू, महं आया जस्स सो महप्पा, सो य अकम्मवीरियसामत्यतो महात्मा, केवलाविविसि-] ठुलद्धिसामस्थतो पा महात्मा, किंच 'भई सन्च' गाथा (३-२३) भावतो भाविता भद्रं तं भगवतो भवउत्ति, लोगो-अद्वविधोबि लोग-| |णिक्खेवो भणितव्यो, सेसं कंठ्यं । इमं संघस्स रथरूवग 'भई सील' गाथा (६-४३) रहो सामन्नतो पंचमहब्वयमइतो ओसितेति तस्सद्वारससीलंगसहस्सुसिता जत-II पहाता वारसविणे तवो इंदियणोइंदियो य णियमो, पते अस्सा, सज्झायसहो मंदिघोसो, सेस कंठ्यं । संघस्सव इम-चकवर्ग 'संजम' | गाहा (१५-४३ ) विसुधभाषचकस्स सत्तरसविधो संजमो तुंर्ग, तस्स बारसविधो तयो मवा अरगा, पारियल्लंति-जो बाहिरपुट्ठस्स बाहिर भूमी सा सो संमत्तं कतं, जम्हा अण्णाई चरगाइएहिं जेतु ण सकति तम्हा एयं जयति अप्पडिचकं च एयं, णमो एरिसस्स चकस्सेति । इम | संघस्सव णगररूवगं 'गुणभवणगहण' गाथा (*४-४२) वंमि पुरिससंघणयरे इमे गुणा पिंडविसुद्धिसमितिगुत्तिदव्यादिअभिग्गहमा | सादिपढिमा गोयरे य एमादि उत्तरगुणा, दमि संघणगरे भवणा कया, भवणत्ति घरा, तेहिं गहणत्ति णिरंतरं संठिया घणा, तं च संघपुरिसXणगरं अंगाणगादिविचित्तमयरयणभरियं सयोवसमियादिसम्मत्तमझ्यरत्थाबायो मिच्छत्तादिकतवरवजियत्तणओ विसुद्धाओ, मूलगुण-IN चरितं च से पागारो, सोय अखंडोत्ति अधिराधितो णिचार इत्यर्थः, सेस कंठ | इमंपि संघस्सेव पलमरूवर्ग 'कम्मरय गाथा (*७४४) ट्र कम्म एव रयो कम्मरयो अथवा जे पुव्वं बधं तं कर्म बन्नमाणं रयो तं सध्यपि जलोहमिव कल्प्यतेऽथवा पुस्वयम्ध कम्मं मद्धं वज्झमाणं च RESCHESTRACRORSCORRCAR दीप अनुक्रम [२-७]] भगवत् वर्धमानस्वामीन: स्तुतिः, भगवत् महावीरस्य अतिशय आश्रिता स्तुति, विविध रूपेण संघस्तुति:, ~8

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