Book Title: Aagam 44 Nandisutra Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 11
________________ आगम (४४) “नन्दी- चूलिकासूत्र-१ (चूर्णि:) .................मूलं 1 / गाथा ||१८-२५|| ............. मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र- [४४], चूलिकासूत्र- [१] "नन्दीसूत्रस्य चूर्णि: प्रत सूत्राक श्री गाथा ॥१८ २५|| हासंघसिहरं पावयणिप्पुरिसा पहब्वा, तत्य व विविधकुलुप्पण्णसाहवो कप्परुक्खखारासवादिलविफलेहि य फळभरा द्धिहेतुढ़िया | तायकर पूणाला साधवो कुसुमिता गुणा बत्ति बहुल्या, मविमुतादिणाणा बरेति-पहाणा तच्चेव णाणावेकलियाविरवणादिव कंता, कंता इति कतिजुत्ता. कंतादि-11 जालिगणधरा णामावली जुत्तत्तणया चेव सविसरण जीवादिपयस्थसरूवावलंभतो दिप्पंति, णाणस मलो णाणावरणं सम्विगमतो य विगतमलं चुलामणिरिव सिंहराबारा " चूला, सोय णाणातिसयऽत्थसरूवावलंभगुणोहजुया जगप्पहाणपुरिसा चूला इति, एवं संघपव्ययस्स पेढादिचूलपण्जवसाणकापियस्स वदामि । लाविणयप्पणवोत्ति छण्हविगाहाणं, एत्थ य पढ़ति-एवं चरमतित्वगरस्स संघस्स तप्पणामे कते इमा अवसरापण्णा आवली भण्णात, का सा तिविधा-तित्थगर० गणधर० थविरावली, तत्य तित्थगर० सणत्वं इमं भषणति४ 'वंदे उसमें' 'विमल' गाथाय (१८.१९।४७) कंठ्यं, घरमनित्थगरस्स इमा गणधरावली, 'पढमेत्थ इंदभूती, बीए पुण होति अग्गि-| & भूतित्ति । ततिते य वाउभूती, ततो वितचे सुधम्में य (२०-४८) मंडिय मोरियपुत्चे अकंपिते चैव अयलभाता य । मेतज्जे य पहासे गणहरा होति वीरस्स (०२१-४८) एत्थं गणधरावलीतो सुधम्माता वेरावली पठबत्ता, जतो भण्णति 'मुधम्म अग्गिवेसाणं| सिलोगो (२३-४८) समणस्स पं. महावीरस्स कामवगोत्तस्ल सुधम्मे अंतेवासी अग्गिवेसायणसगोले, सुधम्मश्स अवासी जंबुनामे कासवगोत्तेण, जंबूणामस्स अंतेवासी पभवे करुचायणसगोत्ते, पभवस्व अंतेवासी सज्जभवे वच्छ सगोचे, जसमई गाथा (२४-४९) सेग्ज भवस्स अंतवासी जमभरे तुंगियायणवग्यावच्चसगोते, जसभइस्स अंतेवासी इमे दो थेरा-भदयाहू वाईणतिसगोत्ते संभूइविजए य माढरस-४ लगात, संभूतिविजयस्स अंतवासी थूलभदो गोतमसगोते 'एलावच्च' गाथा (२५-४९) थूलमहस्स अंतवासी इमे दो थेरा-महागिरी Pएलावरचसगोते सुहन्थी य बासिहगोत्ते, सुहस्थिरस सुट्टितमुप्पडिबद्धादयो आवलीले जहा दसासुते तदा माणियध्या, इह तेहि अहिगारो णत्थि ।। SEE दीप अनुक्रम [१८-२५] 964 २%25 तिर्थकराणां एवं गणधराणां नामोच्चारणं, सुधर्मास्वामी आदि स्थविरावलि-वर्णनं ~11

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