Book Title: Aagam 44 Nandisutra Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 26
________________ आगम (४४) "नन्दी- चूलिकासूत्र-१ (चूर्णि:) ...............मूलं [१९-२३] / गाथा ||५९-६०|| ............. मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र- [४४], चूलिकासूत्र- [१] "नन्दीसूत्रस्य चूर्णि: प्रत सूत्रांक नन्दीचूी ॥२१॥ [१९-२३] गाथा ||५९ ६०|| गाणदंसणेहि जाणति पासइ य, इत्य केवलणाणदसणोवयोगहि वहुया समयसभा आयवृद्धीए पकापिता इमं भतिकेई भणंति जुगर्व जाणइ पासइय केवली णियमा । अण्णे एंगतरिय इकछति सुतोवदेसणं ॥ १ ॥ अण्ण ण चेव वीमुं देसणमिच्छति दर्शनोपजिणवारदस्स | चिय केवलणाणं तं चिय से दसणं वेति ॥ २॥ तत्थ जे ते भगति जगवं जाणइ पासइ य ते इमं उववाति उवदिसति सोमवा उवदिसति-योग वादः 'ज केवलाइ सादी अपज्जवसिताई दोवि भणिताई। ता बेंति केइ जुगवं जाणइ पासइ म सव्वष्णू ।।३।। इधराऽऽईणिहणचा मिच्छावरणक्खओति व जिणस्स । इयरेतरावरणता अथवा जिकारणावरण ॥ ४ ॥ तध व असम्वण्णुत्तं असव्वदरिमत्तणप्पसंगो य । एगंतरोवयोगे ४ जिणस्स दोसा गहुविधीता ॥ ५ ॥ एवं बहुधा भणित आगमवादी सत्तरं इमं आइ-भण्णति भिण्णमुहत्तोवयोगकालेवि तो तिणाणि-द स्स | मिच्छा छावडीसागरोवमाई खयोवसमा ॥६॥ अधा छउमत्थस्म मतिसुतावधिणाणेसु अंसमुहुत्तो कालोवयोगसंभवो उवये गाणु-101 वयोगेण य ( छा ) बट्ठी सागरा से ठितिकालो दिट्ठो तथा जति जिणस्स णाणदसणासादिअपज्जवसाणा उबयोगाणु-18 चयोगेण भवति तो को दोसो १, जति एयं ते णाणुमयं तो इमं ते कथं अणुमतं भविस्सति ?, 'अथ णवि एवं तो सुण जहेव स्वीणतराइओ अरहा । संतेऽवि अंतरायक्वयंमि पंचप्पगारम्मि ||७॥ सततं ण देइ लभइ व मुंजइ उपमुंजई व सब्वण्णू । कमि देइ लभइ व मुंजविका व तथेच इहयपि ॥८॥ तस्स लमंतस्स व उव जतस्स व जिणस एस गुणो । खीणतराइययत्ते जं से विग्यं ण संभवति ॥ ९ ॥ उबउत्तरसेमेव य णामि व सणंमि व जिणस्स । वीणावरणगुणोऽयं जं कासणं मुणइ पासइ वा ।। १०॥ पुणो पर आइ-पासंतोऽपि ण है जाणति जाणव न पासती जति जिणियो । एवं न कयाइवि सो सम्वष्णू सम्बदरिसी य॥ ११ ॥ अत्रोत्सरं आचार्य आद'जुगवमजाणतोबिहु ।। चतुहिवि णाणेहिं जह व चतुणाणी । मण्णइ तथैव अरहा सम्बण्णू सव्वदरिसी य ॥ १२ ॥ पर एवाह-'तुल उभयावरणक्लयमि पुष्वयर दीप अनुक्रम [८५-९२] अत्र केवलज्ञानदर्शनोपयोग वाद: वर्णयते ~26

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