Book Title: Aagam 44 NANDISOOTRA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 417
________________ आगम (४४) “नन्दी'- चूलिकासूत्र-१ (मूलं+वृत्तिः ) ................ मूलं [४४]/गाथा ||८१...|| ...... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[४४], चूलिका सूत्र-[१] "नन्दीसूत्र" मूलं एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति: उत्कालि प्रत काधिक सूत्रांक [४४] निबद्धत्तणो पलियासणसंभमुभंतलोयणे पउत्तावही वियाणियटे पहढे चलचबलकुंडलधरे दिवाए जुईए दिवाए। विभूईए दिवाए गईए जेणामेव से भयवं समणे णिग्गंथे अज्झयणं परियट्टेमाणे अच्छइ तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्वा | भत्तिभरोणयवयणे विमुक्यरकुसुमगंधवासे ओवयइ, ओवइत्ता ताहे से समणस्स पुरओ ठिचा अंतट्ठिए(रिकुखटिए)। कयंजली उपउत्ते संवेगविसुज्झमाणज्झवसाणे तं अज्झयणं सुणमाणे चिट्ठइ, संमत्ते अज्झयणे भणइ-भव ! सुसज्झाइयं २ वरं वरेहित्ति, ताहे से इहलोयनिप्पिवासे समतिणमुत्ताहललेडुकंचणे सिद्धिवररमणिपडिबद्धनिब्भराणुरागे समणे पडिभणइ-न मे णं भो ! वरेणं अट्ठोत्ति, ततो से अरुणे देवे अहिगयरजायसंवेगे पयाहिणं करता बंदइ नमसइ [वंदित्ता नमसित्ता पडिगच्छइ" एवं गरुडोपपातादिष्यपि भावना कार्या, तथा 'उत्थानश्रुत'मिति उत्थानम्-उदसनं तद्धेतुः श्रुतमुत्थानश्रुतं, तच्च शृङ्गनादिते कायें उपयुज्यते, अत्र चूर्णिणकारकृता भावना-"सजेगस्स कुलस्स वा गामस्स वा नगरस्स वा रायहाणीए वा समणे कयसंकप्पे आसरुत्ते चंडकिए अप्पसने अप्पसनलेसे विस-| मासुहासणत्थे उबउत्ते समाणे उट्ठाणसुयज्झयणं परियट्टेइ, तं च एकं दो वा तिणि वा वारे, ताहे से कुले वा गामे वा जाव रायहाणी या ओहयमणसंकप्पे बिलबते दुयं २ पहायते उद्रेह-उचसतित्ति भणियं होई"ति, तथा 'समुत्थानश्रुत'मिति समुपस्थान-भूयस्तत्रैव वासनं तद्धेतुः श्रुतं समुपस्थानश्रुतं, वकारलोपाच सूत्रे समुठ्ठाणसुयंति पाठः, तस्य चेयं भावना-"तओ समत्ते कजे तस्सेव कुलस्स वा जाब रायहाणीए वा से चेव समणे कयसंकप्पे तुट्टे पसन्ने दीप अनुक्रम [१३७] 93 ~ 416~

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