Book Title: Aagam 44 NANDISOOTRA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 510
________________ आगम (४४) “नन्दी'- चूलिकासूत्र-१ (मूलं+वृत्तिः ) ................ [अनुज्ञा-नन्दी ] मूलं [१] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[४४], चूलिका सूत्र-[१] "नन्दीसूत्र" मूलं एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत (परिशिष्ठ) सूत्रांक [१] दीप (परिशिष्ठ) अनुक्रम [१] श्रीमलय- दावा अंतगडदसाओ वा अणुत्तरोवाइयदसाओ वा पण्हावागरणं वा विवागसुयं वा दिहिवायं वा सबदवगुणपज्जवोह || | अनुज्ञा गिरीया सवाणुओगं अणुजाणिजा, से तं लोगुत्तरिआ भावाणुण्णा, से तं भावाणुण्णा ६ । 'किमणुण्णा कस्सऽणुण्णा के-14 नन्दीवृत्तिःद वइकालं पवत्तिआणुण्णा । आइगर पुरिमताले पवत्तिया उसहसेणस्स ॥१॥ अणुण्णा १ उषणमणी २|| ॥२५॥ नमणी ३ नामणी ४ ठवणा ५ पभावो ६ पभावणं ७ पयारो दातदुभयहिय ९ मज्जाया १० नाओ ११ मग्गो| य १२ कप्पो अ १३ ॥२॥ संगह १४ संवर १५ निजर १६ ठिइकारण चेव १७ जीवबुद्धिपयं १८॥ पय १९ पवरं व २० तहा वीसमणुण्णाइ नामाई ॥३॥। अणुण्णा नंदी समत्ता । [अथ योगक्रियायां बृहन्नन्दी]| नाणं पंचविहं पण्णत्तं, तंजहा-आभिणियोहियनाणं १ सुयनाणं २ ओहिनाणं ३ मणपजवनाणं ४ केवलनाणं ५, तत्थ णं चत्तारि नाणाई ठप्पाई ठवणिजाई नो उद्दिस्सिर्जति नो समुद्दिस्सिर्जति नो अणुण्णविजंति, सुयनाणस्स पुण उद्देसो १ समुद्देसो २ अणुण्णा ३ अणुओगो य पयत्तइ ४, जइ सुयनाणस्स उद्देसो १ समुद्देसो २ अणुण्णा ३ अणुओगो ४ पवत्तइ किं अंगपविठुस्स उद्देसो १ समुद्देसो २ अणुण्णा ३ अणुओगो ४ पवत्तइ ? किं अंगवाहिरस्स | उद्देसो १ समुद्देसो २ अणुण्णा ३ अणुओगो ४ पयत्तइ ?, गो! अंगपविट्ठस्सवि उद्देसो १ समुद्देसो २ अणुण्णा ३ अणुओगो ४ पवत्तइ अंगबाहिरस्सवि उद्देसो १ समुद्देसो २ अणुण्णा ३ अणुणोगो ४ पवत्तइ, इमं पुण पढवणं पडुच अंगवाहिरस्स उद्देसो० ४, जब अंगवाहिरस्स उद्देसो जाय अणुओगो पवत्तइ किं कालियस्स उद्देसो०४, किं| 4%AESAR ॥२५३॥ REaratimIAnd ...अत्र अनुज्ञा-नन्दी परिसमाप्ता, ...अथ योग-नन्दी आरब्धा: ... ~509~

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