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શ્રી યશોવિજયજી
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દાદાસાહેબ, ભાવનગર.
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हस्ब फरमायश-जनाब-फेजमाव जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा-विद्यासागर
-न्यायरत्न महाराज
शांतिविजयंजी
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[इसकों] शेठ-शिवदानजी-प्रेमाजी-गोटीवाले,
साकीन पुना-मुल्क दखनने छपवाया. ESSESEEDEro-DEEDSSSH
मुद्रक-केशव रावजी गोंधळेकर, 'जगद्धितेच्छु'प्रेस,
४३२, शनवार पेठ, पुणे.
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संवत १९७४ ]
[सन १९१७
मुफ्त
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[दिवाचा.] किताब अधिकमासनिर्णय तयार करनेका सबब है यह है कि इन दिनोमें इसबातकी चर्चा जैतश्वेतांबरसं। घमें जोरसे चलरही है. इस किताबमें जो जो दलिले लि
खीगइहै, बाचनेवाले अगर खयालसे पढेगे. खुद अधिकमहिनेके बारेमे जवाब देनेके काबिल होजायगे. आध१ कमास कौनसा जानना. पहला या दुसरा? इसका निनर्णयभी इसमें दियाहै. जहां सात सवालोके जवाब दियेहै, .
उसजगह देखलो! और आपने दिलकी तसल्ली करलो.
अधिकमाहना चातुर्मासिक वार्षिक और कल्याणिक १ वगेरा पर्वकृत्यमें गिनतीमें नहीं लेना, प्रमाणकेसाथ सिद्ध ! करदियाहै. खरतरगछ अंचलगछ और लोंकागछवालेभी ई जब दो आषाड आतेहै, पहला आषाड चातुर्मासिकपर्व कृत्यमें गिनते नहीं, और जब दो पौष आतेहै, तब एक पौषको कल्याणिक पर्वकृत्यमें गिनतीमें नहीं लेते, इस। किताबको अवलसे अखीरतक पढलिजिये सबहाल बखूबी मालुम हो जायगा. चर्चाके ग्रंथ या लेख पढनेसे एक
तरहकी चतराइ हासिल होती है. इस किताबका लिखान है तयार करनेमें तपगछके यतिजी श्रीयुत चारित्रविजयहै जीने मुजे अछी मदद दिई, और शेठ शिवदानजी प्रेमा
जीगाटीवालोने अपने खर्चसे छपवाकर जाहिर किइ. है में उमेद करताहुं इस किताबके पढनेसे आम जैनश्चे-ई
तांबर संघकों अधिकमासके निर्णयमें बहुत कुछ माहिती १ मीलेगी,
(ग्रंथकर्ता,) Aror EOINOMMOTorrore -00-or-o-MONOMITOMORROMOTORS
HOMEOHINDIWOOro-NOIDAFONOMETRIOTIOMORPORNOONO-DISORDIO-OPORNORFORMONOrror
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अधिक मास निर्णय.।
(जैन श्वेतांबर धर्मोपदेष्टा विद्यासागर-न्यायरत्न
महाराज शांतिविजयजी तर्फसे.)
दोहा.] सुरतसे कीरत बडी । विना पंख उडजाय,
सुरत तो जाती रहे । कीरत कबु न जाय, आम जैन श्वेतांबर समाजको मालुम हो. इनदिनोमें अधिक महिनेके बारेमें जो जो चर्चा चलरही है. उसका निर्णय इस किताबमे किया जायगा. आपलोग देखिये! और सचका इम्तिहानकिजिये! दरअसल!! इससाल अन्यमजहबके पंचांगकी रुहसे जो दो भादवे महिने आयेथे बंबइसे इसके बारेमे अवल चर्चा उठी. बजयरीये छापेके सवाल जवाब शुरु हुवे. कई हेडबील और किताबे मेरेपास पहुंची. मेरा चौमासा इससाल शहर पुनेमे हुवाथा. कइ जैन मुनिजनोके और श्रावकोके खत मेरेपास आये-कि आप इसका जवाब देवे. जैन शास्त्रोका फरमानहेकि अधिक माहिना कालपुरुषकी चूला यानी चोटीसमान है. आदमीके शरीरके मापमें चोटीका माप नहीं गिनाShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णय.
जाता इसीतरह अधिक महिना अछे काममें गिनतीमें नही लिया जाता. अधिक महिनेमे विवाह सादी वगेरा काम नही किये जाते. दीक्षा प्रतिष्टा वगेरा धार्मिक कामभी अधिक महिनेमें नही करते. फिर पर्युषणपर्व जैसे उमदा पर्व अधिक महिनेमें कैसे किये जाय. इसपर गौर किजिये, बस ! इसी बातपर यह किताब बनाइ गइहै.
२-वंवइसे खरतर गछके मुनि श्रीयुत माणसागरजीकी बनाइ हुइ किताव लघुपयूषणानिर्णय और अंचल गछके यतिजी श्रीयुत न्यायसागरजी महिमासागरजीकी सहीसे छपे हवे हेंडवील जब गये भाद्रपद महिनेमें बजरीये डाकके मेरेपास पहुंचेथे मेने उनलेखोपर एक किताब पर्युषणपर्वनिर्णय बनाइथी, और गतपर्युषणके दिनोमें छपवाकर जाहिर किइथी आपलोगोने पढीहोगी. जितनी छपीथी हिंदके शहर व शहरोमें जहां जहां जैनश्वेतांबर श्रावकोंकी आबादी है भेजी गइथी, उस वख्त खरतर गछके मुनिजनोंकी अंचलगछ लोकागछके यतिजनोकी और श्रावकोकी और तपगछके श्रावकोकी कइचीठियां मुल्क गुजरात, मारवाड, सिंध, पंजाब, राजपुताना, बंगाल, मध्यप्रदेश, बराड, खानदेस, मालवा, और दखनसे व जरीये डाकके मेरेपास आइथी, और उनमे अभिप्राय दियाथा कि किताव पर्युषणपर्व निर्णय उमदा बनीहै दलिले मजबूत और कंठस्थ रखनेकाबिल है. कइ महाशयोने लिखाथा पुस्तक पर्युषणपर्व निर्णय आपकी बनाइ हुइ मिली. अवलसे अखीरतक देखकर अजहद खुशी हासिल हुइ. क्यों न हो. जवावहो तो एसाहो कइ महाशयोने ते
हरीर कियाथा, आपके लेख हमेशां निर्पक्ष होतेहै. पर्युषणपर्वके ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
योने लिखाति और कंठस्थ पर्युषणपर्व निधी, और उन
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आधिकमास निर्णय.
बारेमें आपका लेख जैनपत्रमेंभी पढाथा, बेशक! आदमीकी उचाइके. मापमें चोटीका माप नहीगिना जाता, वगेरा अभिप्राय आयेथे.
३-अधिकमहिना जिसवर्समे आवे उसवर्सका नाम अभिवर्द्धितसंवत्सर कहतेहै, और वो तेरहमहिनोंका होताहै, यह एक जगजाहिर वातहै, खरतरगछ अंचलगछ लोंकागछवालेभी जब कभी दो आषाड माहिने आतेहै, पहले आषाडको चातुमासिक व्रत नियमकी अपेक्षा गिनतीमें नहीलेते, जब कभी दो पौषमहिने आतेहै पौषवढी दसमीका तीर्थकर पार्श्वनाथमहाराजका जन्मकल्याणिक एक पौषमें करतेहै, एक पर्युषणके बारेमें कल्पसूत्रके आधारसे (५०) दिनका पक्ष लेकर अधिक महिना गिनतीमे लेनेकी बात अगाडी लातेहै, मगर समवायांगसूत्रके आधारसे जो संवत्सरीके बाद (७०) दिन रखनेका पाठहै उसको खयालमें नहीलाते, और लाजवाब होतेहै, बस ! वात समजनेकी इतनीहीथी मगर अधिक महिना वार्षिकपर्वमे गिनतीमे लेनेवालोने रजका गज बनादिया. और बातको बढादिइ.
४-खतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपनी लघुपर्यषणानिर्णय कितावमे जिनजिन शास्त्रोंके नाम लिखकर अधिक महिना गिनतीमे लेनेका कहतेहै, उनमे सिर्फ ! इतनाही लिखाहैकि अभिवर्द्धित संवत्सर तेरह महिनोका होताहै, जैनशास्त्रके फरमानसे चौमासके चारमहिनोंमे अधिक महिना कभी आता नहीं. इससाल मुताविक जैनशास्त्रके दो भाद्रपदमाहिने आये नहींथे पाठवतलातेहै, जैनशास्त्रोका और बरताव करतेहै,
अन्यमतके पंचांगपर इसका क्या सवबहै ! कोइ जवाब देवे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णय.
में बडाताज्जुब करताहु कि-वात कुछभी नहीथी मगर बढाकर कितनी लंबी करदिइ ? इस किताबके पढनसे अकल मंदलोग खुद समज लेयगेकि अधिक महिना बेशक ! कालपुरुषकी चोटी समानहै, इसकों चातुर्मासिक वार्षिक और कल्याणिक पर्वके व्रत नियममे गिनना नहीं, यह बात बहुत ठिकहै.
५-खरतरगछके मुनि श्रीमणिसागरजी अपनी बनाइहुइ किताब लघुपर्युषण निर्णयमे लिखतेहै. चंद्रप्रज्ञप्ति सूर्यमज्ञप्ति जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति भगवती अनुयोगद्वारनिशीथचूर्णि वृहत्कल्पचूर्णि प्रवचन सारोद्वार ज्योतिष्करंडकवगेरा जैनशास्त्रोम गिनतीमे लियाहै ( जवाब) अभिवर्द्धित संवत्सर तेरहमहिनोका होताहै. इतनाहि इनमें बयानहै. और यहबात जगजाहिरहै. मगर चातुमासिक वार्षिक और कल्याणिक वगेरा पर्वके व्रत नियमकी अपेक्षा गिनतीमे लेना एसा बयान नहीं है. अगर एसा बयानहो तो कोइ पाठ बतलावे, बात चलतीहै दो भादवेकी और चलेजातेहै अभिवर्द्धित संवत्सरमें, जैनज्योतिषके फरमानसे चौमासेमे अधिक महिना आतानही, इससालजैनज्योतिषकी रुहसे दो भादवे माहिने नहीथे, बात करना जैनशास्त्रकी और चलना अन्यमतके ज्योतिषपर यह कौन इन्साफहुवा ? और फिर इसबातकाभी जवाब देना चाहियेकि-जब दो आषाढ आतहै, आपलोग पहले आषाढमें चौमासा क्यौंनही बेठाते ? अगर कहाजाय पहेला आषाढ गृष्मरुतुमे चलागया तो जवाबमें मालुमहो, उधर पांचमहिनेका चौमासा होगया. और चौमासा होना चाहिये चारमहिनेका इसका क्याजवाब देतेहो? गिनतीमे पांच महिना मानना, और मुंहसे कहना चौमासा
यह क्या बात हुइ ? बात यह हुइकि एक आषाढको चातुShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णय. मासिककृत्यमें गिनते नही लेते और पक्ष पकडतेहै, अगर इसीवातको इन्साफसे समज लिइजाय तो सब शक रफा होजाय.
६-अगर अधिक महिना गिनतीमे लेनेका पक्षकरते होतो बतलाइये! जबकभी अन्यमतके पंचांगकी रुहसे दो चैतमहिने आवे तव क्या! खरतर गछवाले अंचलगछवाले और लोंकागछवाले नवपदजीका तप दोदफे करेगें, कभी नही, अन्यमतके पंचांगकी रुहसे जबकभी दो कातिक महिने आयगे, तब क्या! दिवाली पर्व आपलोग दोदफेकरेगें ? असलमे चाहेजिसको पुछलो! या धर्मशास्त्र देखलो! कोईपर्व दोदफे नही किया जाता. एकहीदफे कियाजाताहै, चाहे पहलेमे करो या दुसरेमे मगर एकमहिना तो वार्षिक वगेरापर्वकी अपेक्षा छोडनाही पडेगा, इसमे कोइ शकनही. फिर तपगछ्वाले और क्या कहतेहै, यही कहतेहै, वार्षिक पर्वके व्रतनियमकी अपेक्षा अधिक महिना गिनतीमें मतलो, खरतर गछवाले अंचलगछ और लोंकागछवालेभी चातुर्मासिक और कल्याणिक पर्वके व्रतनियमकी अपेक्षा पहले आषाडको गिनतीमें नहीलेते, इस बातमें तपगछवालोके मंतव्यपर अमल करतेहै. वार्षिक कृत्यमे (५०) दिनकी गिनतीपर अमल करतेहै, मगर बाद संवत्सरीके (७०) दिनरखना एसाजो समवायांग सूत्रका पाठहै, उसपर अमल नही कर सकते.
७-इससाल पर्युषण और अधिक महिनेके बारेमे जैनश्वेतांबरोकी तर्फसे जितनेलेख छपे उनमें किसीमेभी मेरेनामपर आक्षेप नहीथा. मगर तपगछ उपर आक्षेप आताथा, इस, लिये जवावदेना मुनासिबहुवा, में एक तपगछका जैनShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णय.
मुनिहुं. ताकात होते हुवेभी जवाब नहीं देना, एकतरहकी कमजोरी अपनेसीर आतीहै, इसलियेभी जवाबदेना बहेतर समजाया, अगरकोइ जैन मुनि एसाखयालकरेकि जवाब देनेसे आपसमें अनबनाव होगा, तो यह खयाल महेज गलतहै, इन्साफसे अछेशब्दोमे जबाब देना किसीपर अंगतटीका नही करना, इससे कभी अनबनाव नही होसकता, अपनेपर कोइ आक्षेपकरे और उसका जवाब नहीं देना बडी भूल है. अपने गछके श्रावकोको इसबातका शकपैदा होगाकि सायत! अपना मानना गलत होगा, इसलिये जैनशास्त्रके पढेहुवे जैनमुनिकों लाजिमहै. जवाबदेना, दुसरे गछवाले बजरीये लेखके तपगछके मंतव्यपर आक्षेपकरे और उसका माकुल जवाव न दियाजाय यह मुनासिब नही.
८-आजकल अधिक महिनेकी चालुचर्चा में जैनसमाजमेसे जो जो महाशय लेख लिखतेहै; उनमें बहुत करके एक दुसरोपर अंगतटीका होतीहै, ऐसे लेख बाचनेवालेभी पसंद नहीं करते, इसलिये जिसबातपर चर्चा चलीहो उसीपर कायम रहकर अछेशब्दोंमें लेख लिखना चाहिये. मेने जो पहले पर्युषण निर्णय किताब बनाइथी, उसको जिनोने पढीहोगी, उनको मालुम होगाकि उसमे भाषा कैसी रखीगइहै ?
और इस अधिक मास निर्णय किताबमेंभी देखलो! इबारत कैसी लिखीहै, में अपशब्द लिखना पसंद नहीं करता. प्रतिपक्षीके लेखका माकुलजवाब देना पसंद करताहुँ..
९-मेरी बनाइ हुइ किताब पर्युषणपर्व-निर्णय जबगत भाद्रपद महिनेमे छापकर जाहिर हुइथी. खरतर गछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजीकोंभी भेजी गइथी, उसपर उनोने कुछ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास-निर्णय.
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जवाब नहीं लिखा, सिर्फ! विज्ञापन नंबर पहलेमें इतना लिखाकि वतमानपयुपणकी चचा संबंधी सुरतसे अमरेलीसे कपडवंजसे जो जो लेख छपकर आयेहै, तथा पुनेसे न्यायरत्नी शांतिविजयजी तफसे जैनपत्र तारिख (२६) अगष्टकालेख वा पऍषणपर्वनिर्णय नामक पुस्तक दुसरे भाद्रपदमें पयूषणपर्व करनेका ठहरानेकेलिये छपाहै, वे सब शास्त्रकारोके अभिप्रायसे विरुद्ध और जिनाज्ञा बहारहै.
(जवाब ) जैसे मेने पूर्वपक्ष लिखकर उत्तरपक्षमे जवाब दियाथा खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजीने मेरेलेखपर इसतरह जवाब क्यों नहीं दिया ? मेरेलेखमें कौनसीबात शास्त्रविरुद्ध और जिनाजाबाहिरथी दाखले दलिलोसें बतलाया क्यौंनही,? जैनशास्त्रोके पाठसे माकुलजवावदेनाथा. विनाजवावदिये शास्त्रविरुद्ध कहना मुनासिब नही.
१०-आगे खरतरगछके मुनिश्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर पहलेमें लिखतेहै, वर्तमानिक विवाद कुसंपका मुख्य कारण विनय विजयजीकृत सुबोधिका वृत्तिके खंडनमंडनकों प्रतिवर्स प्रायः सवजगह पर्युषणके व्याख्यानमें तफ गछके मुनि बाचतेहै, उसीको समजना चाहिये.
( जवाब.) क्या! खरतरगछके मुनि प्रतिवर्स पर्युषणके दिनोमें तिर्थकर महावीर स्वामीके छह कल्याणिक नही बाचतेहै ? अगर वांचतेहै तो क्या! यहबात वर्तमान विवादका कारण नही समजना? खरतरगछके आचार्य श्रीयुत लक्ष्मीवल्लभजीकृत कल्पद्रुमकलिका टीका और उपाध्याय श्रीयुत समयसुंदरजीकृत कल्पलता टीका देखो, उनमे छह कल्याणि
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आधिकमास निर्णय. ककी बातहै या नहीं? और इस अधिकारको खरतरगछके मुनि बाचतेहै या नही? अगर बाचतेहै, तो इसबातको वर्तमान विवादका कारण समजना या नहीं? खरतर गछके मुनिश्रीयुत मणिसागरजी इस बातको सौचे, नवांगसूत्रकी टीका बनानेवाले श्रीमान् अभयदेव सूरिजीको खरतर गछवाले अपने गछमें हुवे बतलातेहै. उनकी बनाइहुइ पंचाशक सूत्रकी टीका देखो. उसमे उनोने तीर्थकर महावीरस्वामीके पांचकल्याणिक लिखेहै, छह नही लिखे. अगर कहा जाय कल्पसूत्रके पाठमें छह कल्याणिक लिखेहै, तो जवाबमें मालुमहो, कल्पसूत्रकी पुरानी टीका जो खरतर गछके निकलनेसे पहिलेकी बनीहुईहो, उसमें गर्भापहारको कल्याणिक लिखाहोतो कोइमहाशय पाठ बतलावे. मूलपाठका अर्थ जो प्राचीन टीका कारने लिखाहो, वो मंजुर करना चाहिये, अगर कल्पसूत्रके मूलपाठमें तीर्थंकर महावीरस्वामीके गर्भापहारको छठा कल्याणिक लिखाहोता तो नवांगमूत्रकी टीका बनानेवाले श्रीमान् अभयदेवसूरीजी पंचाशकसूत्रकी टीकामे पांचकल्याणिक क्यौं बयान करते? सबुतहोताहै, जब उनोने पांचही कल्याणिक बयानकिये तो जमाने उनके पांच कल्याणिकंकी मान्यता मंजुरथी छह कल्याणिककी बात उनके बाद शुरुहुइहै.
११-फिर खरतर गछके मुनि श्रीयुत माणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर पहिलेमे बयान करतेहै, विनयविजयजीने सुबोधिकामे शास्त्रकारमहाराजाके अभिप्राय विरुद्ध होकर बहुतबातें जिनाजाबाहिर लिखीहै, और कुयुक्तियोंकों आगेकरके तीर्थकर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाचार्योंकी आशातना किइहै. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णय.
( जवाब.) तपगछके उपाध्याय श्री विनयविजयजीने न तीर्थकर गणधिरोकी न पूर्वाचार्योंकी आशातना किइहै. उनोने आपके माने हुवे छह कल्याणिकके पक्षको ठीक नही कहां, यह वात चाहे आपकों नागवार गुजरी होगी, इसी लिये सायत आप कहते होगें कि उनका कहना शास्त्र विरुद्ध है. मगर आप यह खूब यादरखिये! उनका कहना मुताबिक जैन शास्त्रके सच है. पंचाशकसूत्रके मूलपाठ और टीकाका पाठभी देखलिजिये, और अपने दिलकी खातिर जमा करलिजिये. मेने पर्युषणपर्व निर्णय किताबमें मजकुर पाठ छपवा दियाहै, और वो किताब बंबइसे आपने बजरीये चीठीके मंगवाइथी, और मेने पुनसे आपको भेजीथी. आपको मिली होगी, अगर आपको अपने खरतर गछके आचार्य श्रीमान् अभयदेवमूरिजर्जाका लेख मंजुर न होतो बजरीये छापेके जाहिर किजियेकि-मुजेवो लेख मंजुर नही. जबतक यहबात आपकी तर्फसे जाहिर नहीं होगी, तबतक तपगछके उपाध्यायश्री विनयविजयजीकृत कल्पसूत्रकी टीकापर आक्षेप करना गलतहै उनकी कौनसी बातें शास्त्रविरुद्धथी और जिनाज्ञा बाहिरथी लिखाक्यौं नही? कोरी बाते बनाना फिजहुलहै.
१२-आगे खरतर गछके मुनि श्रीयुत माणसागरजी अपने विज्ञापन नंवर पहलेमे तेहरीरकरतेहै, दृष्टिरागी पक्षपाती गडरीह प्रवाही जन श्रद्धापूर्वक बरताव करे तो संसारवृद्धि और दुर्लभ बोधीकी प्राप्तिका कारण होना संभव है,
(जवाव. ) जव आपके खरतर गड़के आचार्य श्रीमान् अभय देवमरिजी तीर्थकर महावीर स्वामीके पांचकल्याणक फरमातेहै, फिर आप किसप्रमाणसे छह कल्याणिक फरमातेहै Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णय.
अब पक्षपाती कौन हुवे. दृष्टिरागी और गडरीहप्रवाहीजन किसको कहना ? इसकी फिरतलाशकिजिये ! सचवातपर अगर कोइ शख्श श्रद्धापूर्वक बरताव करे तो उनको संसारवृद्धि कभी नही होती, न उनको दुर्लभवोधीपना होसकता.
१३-फिर खरतरगछके मुनि श्रीयुत माणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर पहलेमें इसमजमुनको पेंशकरते है, विनयविजयजीकृत सुबोधिकाकी उत्सूत्रप्ररुपणाकी वातोको व्याख्यानमे बाचना बंद कर देना.
( जवाब. ) खरतरगछके आचार्य उपाध्यायकी बनाइहुइ कल्पसूत्रकी टीकामें छह कल्याणिककी बातें आवे वो व्याख्यानमें वाचना बंद कर देना चाहिये. क्योंकि आपके खरतरगछके आचार्य श्रीमान् अभयदेवसूरिजी पंचाशकसूत्रकी टीकामें तीर्थकर महावीर स्वामीके पांचकल्याणक फरमातेहै.
१४-आगे खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर पहलेमें लिखतेहै, मिथ्यात्वक सार्थवाही धर्मसागरके कदागृही लेखोकी तरह इनकेभी अनुचित लेख जरशरण करदेना चाहिये.
( जवाव ) जलशरण वे लेखकिये जातेहै जो धर्मशास्त्रसे विरुद्ध हो. तपगछके उपाध्याय श्रीविनयविजयजीके लेख जैन शास्त्रसे विरुद्ध और अनुचित कोइ सावीत करे, विना सावीत किये आप उनके लेख जलशरण करदेना कैसे कहसकतेहो ?
और आपके कहनेसे क्या होसकता है. आप चाहे जितना कहते रहे. दुनियामें कहलावत है कि साचको आंचनही. अय
आपने जो तपगछके उपाध्याय श्रीयुत धर्म सागरजीके बारेमे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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rammrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr.........
आधिकमास निर्णय. लिखाहै, उसका जवाब सुनिये मिथ्यात्वके सार्थवाह कौनहै
और कदाग्रही लेख किसकेहे ? इसकी तलाश फिर किजिये, तपगछके उपाध्याय श्री धमसागरजी सम्यक्तके सचे सार्थ वाहथे, उनाने आपके माने हुवे छहकल्याणिककी बात गल तफरमाइथी, यह बात सायत! आपको नापसंद हुइ होगी, इसलिये आप उनको एसा कहते होगे. मगर एसी वातोसे उनका कुछ नुकशान नहीं होसकता, तीर्थकर देवोकोंभी कइलोग इंद्रजालीक कहतेथें सौचो ! इससे उनका क्या नुकशान था? अगर आपकी मरजी हो तो ऊनके लेखोको लिखकर निचे उसका जवाब बजरीये छापेके जाहिर किजिये! बाचनेवाले खुद सचका इम्तिहान करलेयगे, और इसीतरह तपगछके उपाध्याय श्रीविनयविजयजीके लेख लिखकर नीचे टीका किजिये ! में उसपर माकुल जवाब दूंगा, और यहवात आप कभी अपने खयालशरीफमें न लाइयेकि-शांतिविजयजी जवाब न देयगें, शांतिविजयजी हरवख्त जवाव देतेहै,
और देयगें, चाहे कभी देरी हो जाय तो क्या हुवा ? मगर जवाब जरुर देयगें.
१५-फिर खरतर गछके मुनि श्रीमाणसागरजी अपने विज्ञापन नंबर दुसरेमें लिखतेहै, नये नये बखेडे क्यों खडे करते हो? कपटकी ठगाइ छोडौं, और न्यायसे सामने आओ.
( जवाव ) न्यायसे सामने आनेकों दोनोंतर्फसे प्रतिज्ञापत्र छपगये है. सभा करके शास्त्रार्थ करलो, कौन मना करतेहै ? नये नये बखेडे कौन खडे करतेहै ? खरतर गछके मुनि श्रीयुत माणसागरजीने लिखकर बतलाया क्यों नहीं, ? और कफटकी ठगाइ कौनसीथी? बतलाना चाहियेथा. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णय.
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१६-आगे खरतरगछके मुनि श्रीयुत माणसागरजी अपने विज्ञापन नंबर दुसरेमे बयान करतेहै. हम शास्त्रप्रमाण मुजव
आषाड चौमासीसे (५०) मे दिन अर्थात् सरलदिन गणनासे प्रथम भाद्रपदमें पर्युषण करना बतलाते है.
( जवाब ) में बाद संवत्सरीके (७०) दिन वाकीरखना समवायांगसूत्रके पाठसे बतलाताहुँ. इसको रद करनेका कोइ पाठ आपके पास मौजूदहो तो पेंशकरे, और इसवातका साफतौरसे जवाब देवकि समवायांगसूत्रके पाठको सचा माननाया-गलत? आपने इससाल अन्य मतके ज्योतिषपर चलकर दो भादवमाहिने माने और प्रथम भाद्रपद माहिनेमें संवत्सरी किइ. और पीछे (१००) दिन बाकी रखे, यह बात समवायांगसूत्रके पाठसे विरुद्धहै. आपलोग (५०) दिनकी गिनतीके वख्त जैनशास्त्रपर जातेहो, और अधिकमासकी गिनतीके वख्त अन्य मतके ज्योतिषपर जातेहो. इसका क्या सबबहै. अगर जैनशाखपर जाना मंजूरहै तो वर्षारुतुमें अधिकमाहिना आता नही. अधिकमाहिने जबजब आतेहै, तब मुताविक जैनज्योतिषके पौष और आषाड आतेहै. चौमासी कृत्यमें आपलोगभी अधिकमाहना गिनतीमें नहीं लेते, तीर्थकर पार्श्वनाथमहाराजका जन्म कल्याणक पौषवदी दशमीका एक पौषमें करते हो. उसवख्त आपकी सरल दिन गणना कहां चली जातीहै. अधिकमहिना गिनतीमें लेनेका पक्ष करतेहो. और चौमासी कृत्यमें आषाड और कल्याणिक कृत्यमें एक पौष छोडते जातेहो. यह क्या बात हुइ ? परउपदेशमें दुशल बनना, इससे उसपर
अमल करना अछाहै. ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णय.
१३
१७-फिर खरतर गडके मुनि श्रीयुत माणसागरजी अपने विज्ञापन नंवर दुसरेमे तेहरीर करतेहै. दुसरे भाद्रपदमें (८०) दिन होनेसे शास्त्रविरुद्धहै. ___ (जवाव,) पहले भाद्रपदमे पर्युषण करनेसे बादसंवत्सरीके (१००) दिन रह जायगें यह शास्त्रविरुद्धहै, क्योंकि समवायांगसूत्रके मूलपाठमे बादसंवत्सरीके (७०) दिन बाकी रखना कहां. इसकेलिये आपकेपास क्या जवाब है ? दरअसल! वार्षिक कृत्यमें अधिक महिना गिनतीमें नहीं लेनेसे दोनोतर्फ शास्त्र विरुद्ध नही होता. तपगछवालोने वार्षिकपत्र कृत्यमें पहले अधिक महिना गिनतीमें नही लिया. आपलोगोनें संवत्सरीकेबाद एक महिना गिनतीमें नही लिया, यही बात समजनेकी है, इतनेपरभी आपको अधिक महिना गिनतीमें लेनेका पक्षहै तो बतलाइये! आपने अपनाचौमासा एक महिने पहले क्यों नहीं खतम किया? क्योकि (७०) दिनकी सरलगणना तो एक महिने पहले हो जातीथी. देखिये! इसबात तर्फ आपने खयाल नहीं किया. दुसरी बात यहथीकि नवपदजीका तपभी एक माहने पहले करलेना था. कहिये! इसका आपक्या जवाब देतेहै ?
१८-आगे खरतरगछके मुनि श्रीयुत माणसागरजी अपने विज्ञापन नंबर दुसरेमे इसदलिलकों पेंश करतेहै, हमारी तर्फसे लघुपर्युषण निर्णय प्रगटहो चुकाहै. उसमे दो आषाड होवे तब दोनों मान्य, मगर चौमासी दुसरे आषाडमें करना.
( जवाव )-चौमासी दुसरे आघाडमे करना कहतेहो तो दोनों आपाड मान्य कहां हुवे? अगर दोनों मान्य होते तो
चौमासा पहले आषाडमें बेठाते, इधरउदरसे तपगछवालोकी ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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१४
आधिकमास निर्णय.
मानीहुइवातपर आना. और फिर मुखसे कहनादोंनों आषाड मान्य है. यह क्या बात हुइ. इसीको अगर अछीतरहसमजलिइजाय तो फिर शकही किसवातका रहे. अपने पक्षकों जहां पुष्टि मिले वहां उसवातको मानना. और जहां पुष्टि न माले वहां नही मानना यह कौन इन्साफ हुवा? बल्कि! सचपुछोतो एकतरहका पक्ष हुवा, जब सभा होगी उसमे विद्वान्लोग वेठेगें यह पक्ष कैसे ठहरसकेगा? जैसे खरतरछके मुनि श्रीयुत माणिसागरजीकी तर्फसे लघुपर्युषण निर्णय जाहिर हो चुका है, वैसे मेरी तर्फसे पर्युषणपर्व निर्णय जाहिर हो चुकाहै, दोनोंकों मीलाकरदेखलिजिये! और सचका इम्तिहान करलिजिये. सत्तहुवा आपभी चातुमासिकवत नियमकी अपेक्षा अधिक महिना गिनतीमें नही लेते, तपगछवाले फिर और क्या कहतेहै ? अगर कहाजाय पहला आषाड धूपकालके चौमासेमें चलागया तो जवाबमें मालुम हो उधर पांच माहिने होगये, फिर बात क्या हुइ ? बात यही हुइकि-दोनो आपाडमेसे एक आषाड चौमासिक व्रतनियमकी अपेक्षा आपनेभी गिनातमें नही लिया.
१९-दुसरी दालिल तिथिके बारेमेभी देताई. सुनिये! हरेक पखवाडा पनराहरौजका मानाजाताहै, मगर कइदफे तिथिकी कमीबेसी होनेसे कभी चौदहदिनका या कभी सोलहदिनका पखवाडाभी होताहै लौकिकपंचांगकी अपेक्षा कभी तेरहदिनकामी होताहै. बतलाइयें आप पाक्षिक प्रतिक्रमण पनरांहमे रौजकरेंगे सोलहमे रौज करेंगे चौदहमे या तेरहमें रोज करेंगे? इसका जवाब दिजिये! आपकी सरलदिन गणना उसवख्त कहां चली जायगी? यातो कमी बेसी दिनकी मान्य
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आधिकमास निर्णय.
ताको छोडिये, या पुरेपनरांहमरौज पाक्षिक प्रतिक्रमण किजिये इसअपेक्षा जैसे कमीवेसी तिथिको गिनतीमेसे छोडदेतेहो, वैसे अधिक महिनाभी चातुर्मासिक वार्षिक और कल्याणिकपर्वके व्रतनियममें छोडदेना चाहिये. यह एक सिधी सडकहै.
२०-कल्पमूत्रमें जो पचासमे रौज संवत्सरी करना कहा. और समवायांगसूत्रमें जो सीतेरदिन चौमासेकी पूर्णाहूतिमें बाकी रखना कहा. यहबात वार्षिक पर्वके व्रतनियमकी अपेक्षा अधिकमहिनागिनतीमें न लेवेतो दोनोंतर्फसे कायम रहसकतीहें, और इसीवातपर तपगछवाले कायमहै. आपलोग संवत्सरीके पेस्तर पचास रौजकी वातपर कायम रहतेहो, मगर बाद संवत्सरीके सीतेररोज रखनेकी वातपर कायम नहीं रहते, देखलो! इसी चौमासेमें आपकी संवत्सरीकेबाद (१००) रौज बाकी रहगयेथे, अगर कहा जाय निशीथचूर्णि दशवकालिकनियुक्तिकी वृहद्वृत्तिके पाठमें अधिक महिना गिनतीमें लियाहै तो जवाबमें मालुमहो फिर आपलोग दो आषाड आवे जब पहले आषाडको चौमासिककृत्यमे गिनतीमें क्यों नहीं लेते? दरअसल ! अभिवर्द्धित संवत्सर तेरहमहिनोंका होताहै इसअपेक्षा आपलोग कहतेहो गिनतीमें लिया. मगर चातुर्मासिक वार्षिक और कल्याणिकपर्वके व्रतनियमकी अपेक्षा गिनतीमें लेना एसा कहां लिखाहै ? इसका जवाब दिजिये ! बस! इतनीही वातसमजनेकीहै. अगर इसी बातको अछीतरह समज लिइजाय तो कोइशकका काम न रहेगा.
२१ इनदिनोमें एक हेडवील छपाहुवा यहां पुनेमें मुजकों मीला. जोकि वंवइसे वजरीये डाकके मेरे नाम आयाथा. इसमे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णय.
सवालकाने सात सवाल पुछेथे. उसका जवाब देताहुं. सुनिये! सवालकर्ता जोकुछ सवाल पुछे उसका माकुल जवाब देना उत्तरदाताका फर्ज है. अपनेपर या अपनी समुदायपर कोइदुसराशख्श सवाल पुछे और उसका जवाब न देना एकतरहकी कमजोरीहै. खरतरगछ या अंचलगछके कोइ महाशय तपगछके मंतव्यपर सवाल पुछे. और तपगछके जैनाचार्य जैनउपाध्याय गणी वगेरा पदवीधर जवाब न देवे बडेताज्जुबकीबातहै. अगर कहाजाय जवाब देनेका ज्ञान न हो तो क्या करना ? जवाबमें मालुम हो फिर पदवीधर क्यौं बनना? अगर पदवीधर बनना तो जवाब देना फर्जहै. जैनाचार्य किसको कहना और जैनाचार्यपदवी किसके हाथसे लेना. यहभी एक शास्त्रीय सवाल है. असलमें जैनाचार्य पदवी अपने गुरुके हाथसे लेना चाहिये मुताबिक जैन शाखके पंचमहाव्रतपालन करना और आचार्य पदके छत्तीसगुण हासिल करना जब जैनाचार्य होसकतेहै. ऐसे पढेगुने जैनाचार्य जैन धर्मकों तरक्की देसकतेहै.
२२-अकेला तपकरके योगवहन करलिया औरज्ञानपढे नही तो क्याहुवा ? श्रावकको जिस जिस सामायिक प्रतिक्रमणके विभागका उपधान वहनकरायाजाय उसका अर्थ और मूलपाठ .कंठाग्र कराना चाहिये. जबतक मूलपाठ और अर्थ कंठाग्र न हो तबतक तपभी चालु रखना, कोरे उपवास एकाशने करलिये और उपधान पूर्ण होयगे एसा समजना ठीक नही. जैन धर्मके गुरुओमे अग्रेश्वरी होकर धर्मकेबारेमे सवाल कर्ताके सवालोके जवाबनही दिये तो फिर किस बातके अगे
श्वरी हुवे? ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णयः २३-आजकल जो अधिक महिनेकी चर्चा चलरहीहै उसीपर कायम रहकर लेख लिखना और किसीपर अंगतटीका नहीं करना यह इन्साफकी बातहै. अगर कोइ एसा लिखेकि अमुक जैनमुनि ठीक नही, अमुक जैनमुनि आचार पालनेमे शिथिल है. इन्साफ कहताहै चर्चाके काममे एसी अंगतटीका क्यौलाना? सवालकाने जो जो सवाल पुछेहो उनका माकुल जवाब देना इन्साफकी बात है. अगर कहाजाय सभा होगी उसवस्त जवाब देयगे तो यह एक तरहकी कमजोरीहै. जवाब देनेमें देरी क्यों करना? तुर्त जवाबदेकर फिर दुसरी बात करना. जिससे सवालका एसा न कहसके मेरे सवालका जवाब नहीं मिला, और बाचनेवालोकोभी फायदा पहुचे.
२४-अगरकोइ जैनमुनि दुसरे जैनमुनिकों एसा कहेकि आपलोग क्रियामें शिथिल आचारवालेहै तो जवाबमें मालुमहो. उत्सर्ग मार्गपर चलनेवालोको अपवाद मार्गका ( यानी) शिथिल मार्गका सहारा क्यों लेना चाहिये, जैन शाखोमें उत्सर्गमार्गको कठिन मार्ग कहा. और अपवादमार्गको शिथिलमार्ग कहा. उत्सर्गमार्गमें जैनमुनिको विहार वगेरा कार्यमे सहायता नहीं लेना चाहिये. अगर कोइ जैनमुनि या जैन साधवीके विहारकेवख्त श्रावक श्राविका नोकर चाकर साथ चले उन नोकरचाकरोके लिये बेलगाडीसाथ रहे. जैन मुनि या जैन साधवी जानतेहोवे कि ये लोग हमारे विहारके सबव साथ चलेहै. और एसीसहायता लेवेतो इस बातको उत्सर्गमार्गमे समजना या किसमे? अगर कहाजाय द्रव्यक्षेत्र कालभाव देखकर ऐसी सहायता लेनी पडतीहै तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णय.
फिर सोचिये! विहारमें सहायता लेना पड़ा या नहीं?
२५-जैन शाखोमें जैन मुनिको और जैन साधवीको नवकल्पी विहार करना कहा. ( यानी) एक गांवमें एक महिनेसे ज्यादा ठहरना नही कहा. चौमासेके दिनोमें चार महिना बेशक ! ठहरना कहा, अगर कोई जैन मुनि या जैन साधवी विद्या पढनेके लिये किसी गांव नगरमे या किसी जैन पाठशालामे दो दो चारचार वर्सतक ठहरे तो यहबात मुताबिक जैन शावके उत्सर्ग मार्गमें समजना या किसमे ? तीर्थकर गणधरोका साफ फरमानहै कि विद्याभी पढते रहना और विहारभी करते रहना, विद्या पढनेके लिये चारित्रमे शिथिलता क्यों करना, जैनागम उत्तराध्ययनसूत्रमें बयान है कि हरेक जैन मुनिको या जैन साधवीकों दिवसके तिसरे प्रहरमें भिक्षाको जाना, अगर कोइ जैन मुनि या जैनसाधवी सवेरे सात बजे चाह दुध वगेरा खानपानके लिये भिक्षाको जावे तो यह बात उत्सर्ग मार्गमें समजना या किसमें ? जैनमुनिको दिनमें एक दफे आहार करना कहा है.. - २६-जैनशास्त्र उत्तराध्ययनमें लिखाहै, जैनमुनिकों या जैनसाधवीको धूप ठंड वगेरापारसह सहन करना. अगर कोई जैनमुनि-या जैनसाधवी विहारकेवख्त रास्तेमेकंतानके मोजे पहनेतो यहबात उत्सर्ग मार्गमें समजना या किसमे? चाहेकोई जैन मुनि जैनसाधवी श्रावक या श्राविका कोइहो उपवास व्रत करे तो पहले रोज एकासना करे, और पारनेकेरौजभी एकासना करे. अगर कोई एसा बरताव न करे तो इस बातको उत्सर्ग मार्गमे समजना या किसमे ? जैनमुनिको
दिनमें नींद लेना नही कहा. ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णय.
२७-जैन मुनिको या जैन साधवीको अगर विद्या पढना तो मुनासिवहै गीतार्थ जैन मुनिके पासजाकर विनय भक्तिसे विद्या पहे,मुल्क गुजरात काठियावाडमें जहां जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आवादी ज्यादहहै. वहां जैन मुनिको या जैनसाधवीको विहार करना मुश्किलकी बात नही. अहमदाबादसे पालितानेतक विहार करना, सुरत बडोदेतक विचरना, या महीकांठेमे विहार करना मुश्किलकी वात नही. मगर तमाम हिंदुस्तानमे जहांकि जैनश्वेतांवर श्रावकोकी आबादी दुरदुर परहै. मुल्क मारवाड, मेवाड, सिंध, पंजाब, राजपुताना, बंगाल, मध्यप्रदेश, बराड, खानदेश, महाराष्ट्र, कोकन, कर्नाटक, मद्रास
और दखन हैदराबाद वगेरा तर्फ विना सहायतालिये विहार करना और जैनधर्मको तरकी देना, फायदेमंदहै.
२८-हरेक शख्शकों अपने वरतावपर खयालकरना चाहिये. जमाने हाल में जैसा द्रव्यक्षेत्रकालभाव मौजूदहै. वैसा धर्मसाधन होसकताहै. दुसरोका वाद लेना ठीक नही. तीर्थकर गणधरोंका फरमाना क्याहै ? उसपर खयालकरना चाहिये. अगर कहानाय द्रव्यक्षेत्रकालभाव देखकर सहायता लेनी पडती है. तो फिर व्यक्षेत्रकालभावपर चलिये. इस लेखका मतलब यह हौक-उत्सर्गमार्गपर चलना आजकल बनसकता नही, आजकल अपवादमार्गका सहारा-सबकोलेना पडताहै.
२९-अगर कोई जैनश्वेतांबर श्रावक एसा कहोक-आज कलके जैनमुनि क्रिया शिथिल होगये है. तो जवाबमें मालुम
हो. कहनेवाले खुद दीक्षा इख्तियारकरके क्रियामें उत्सर्ग___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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२०
अधिकमास निर्णय. मार्गपर चले, और कठिन आचार पालकर बतलावे. तीर्थकर-और चक्रवर्तीयोने संसार छोडकर दीक्षा लिइहै. श्रद्धारहित-केशरका तिलक करनेसे श्रावक होगये एसा समजना गलतहै. जैनशास्त्र फरमातेहै. श्रावकधर्मके (२१) गुण और (१२) व्रत इख्तियार करना चाहिये.
[ दोहा.] चौदह चुके बारह भुले-छकायाके न जाने नाम, नगर दंढोरा फेरिया-श्रावक महारा नाम, १ माला फेरत हाथमें-जिभहिलत मुखमाहि,
मनुवा फिरत बजारमें-एभी समरन नाहि, २ श्रावकको रात्री भोजन नहीं करना चाहिये. व्यापारमेभी असत्य बोलना नही सदाचारसे चलना, जीकंद नही खाना, धर्मखातेकि बोली हुइ रकम तुर्त धर्मकाममे खर्च देना, अपने चोपडेमे जमा कररखना ठीक नही. धर्मका गुनाहहै. व्याजके लोभसे असली रकमभी रहजातीहै. हरसाल ऐक जैन तीर्थकी जियारत करना, ताबेउमर नवलाख नमस्कारमंत्र पढना, चौदहनियम हमेशा धारण करना. बडे बडे पापारंभ छोडना जिस जैन मंदिर या जैनतीर्थके देवद्रव्यका हिसाब अपने हस्तगतहो. वो देवद्रव्य जिन मंदिरके खजानेमे रखना, और मुनिम गुमास्ते रखकर कामचलाना, मगर अपने घरमे देवद्रव्य नही रखना. हरसाल देवद्रव्यका हिसाब छपवाकर जाहिर करना और उसपर चतुर्विध जैनसंघकी सलाहसे पांच श्रावक कार्यकर्त्तातरीके मुकरर करना. चाहे गुजराती, मार
काडी, पंजाबी, दक्षिणी, काठियावाडी या फछी कोइश्रावकहो ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अंधिकमास निर्णय. mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm देवद्रव्यपर सबका समान हकहै. कोइ श्रावक किसी दुसरे श्रावकको एसा नही कहसकताकि आपका इसमे हक नही. इतना लिखनेका मतलब यह हुवा कि हरेक जैन मुनि जैन साधवी श्रावक या श्राविकाको मुताबिक जैनशाखके फरमानपर अमल करना चाहिये. अछा! अब सवालकर्ताने जो सात सवाल पुछे है उनका माकुल जवाब देताहुँ सुनिये.
३०-सवालकर्ता अपने सवालोकी शुरुआतमे लिखतेहै. न्यायरत्नजी और पं० आनंदसागरजीको सूचना.
( जवाब. ) कहिये ! आपकी क्या ! सूचना है? न्यायरत्नके पास माकुल जवाबोंकी कमी नहीं है. ___आगे सवालकर्ता इस मजमूनको पेंशकरतेहै. वर्तमानमें लौकिक टिप्पनके आधारसे पहले भादवेमें पयूषण करना.या दुसरेमें? यह चर्चा चलरही है.. (जवाब.) चलरही है तो चलने दो. मगर यह बतलाइये! जैन पंचांगकी रुहसे इसवसमें दो भाद्रपद महिने नहीथे. लौकिक पंचांगकी रुहसे दो भादवे थे. बातकरना जैनशास्त्र कल्पसूत्रकी और चलना लौकिक पंचांगपर इसकी क्या! वजहहै ? खरतरगछ, अंचलगछ और लोंकागछवाले जैनशाख कल्पसूत्रके (५०) दिनकी बातको आगे लातेहै तो फिर लौकिक पंचांगपर क्यों चलतेहै ?
फिर सवालकर्ता तेहरीर करतेहै. अधिकमासके विषयमेही कायम रहना युक्तियुक्त है.
( जवाब.) में इसी बातपर कायमहुं, और इसी लिये यह ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णयः अधिकमास निर्णय किताब छपवाकर जाहिर किइगइहै, आपलोग ब-गौर दखिये! और सत्यका इम्तिहान किजिये !
३१-सवाल पहला, दो भादवे होनेपर आषाड चौमासीसे पचास दिन कब पुरे होतेहै. और वार्षिक पर्व (५०) में दिन या (४९) में दिन करना चाहिये, मगर ( ५१ ) में दिनकरनेवालोंको क्या! प्रायःछित आवे?
(जवाब ) जैनागम समवायांगसूत्रके प्रमाणसे (७०), दिन संवत्सरीके बाद बाकी रखना कहा, मगर (१००) दिन बाकी रखनेवालोंको क्या! प्रायःछित आवे? इस बातको
आपलोग सौचलिजिये. अब आपके पचास दिन उनंचास दिनका जवाब सुनिये! आषाड चौमासेकी चतुर्दशीसे भाद्रपद सुदी चतुर्थीतक अगर कोइ तीर्थ बढजातीहै तो जैसे वो गिनतीमें नहीं लेते. इसीतरह अधिक माहिनाभी वार्षिक पर्वकी अपेक्षा गिनतीमें नहीं लिया जाता. यह एक सिद्धि सडक है, जब दो आषाड आतेहै तब खरतरगछवालेभी पहले आषाडको चौमासानही बेठाते, दुसरे आषाडमें बेठातेहै. और पहले आषाडको चौमासी कर्तव्यमें छोड देतेहै. फिर दोनों मान्य कहांरहे?
३२-सवाल दुसरा, आप या आपके अनुयायी अधिकमाससंबंधी जैनशास्त्र मुजिब चलतेहै, या अन्य ? और जहां जहां जैनशास्त्रोमें आधिकमासका वर्णन आयाहै, वह स्वमतानुयायीहै. या अन्य? इसका खुलासा किजिये..
(जवाब.) इसीका खुलासा करताहुँ, सुनिये! जैनशास्त्रोमें जहां जहां अधिक माहिनेका वर्नन आताहै. वहां इत___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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आधिकमास निर्णय.
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नाही वर्नन लिखाहै कि अभिवर्द्धित संवत्सर तेरहमहिनोका होताहै. इसके शिवाय दुसरी बात नही आती. खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अधिकमहिना चातुर्मासिक वार्षिक
और कल्याणिक पर्वके व्रत नियममें गिनतीमें लियाहै, एसा पाठ आजतक क्यों नही बतलासके? और जब दो आषाड आतेहै. जब खरतरगछ अंचलगछवाले पहले आषाडको चातुमासिक पर्व कृत्यमें क्यौं छोडदेतेहै ? दो पौष आतेहै तब तीर्थकर पार्श्वनाथका जन्मकल्याणिक एक पौषमे करतेहै, और एक पौषको कल्याणिक पर्वके व्रतनियमकी अपेक्षा क्यों छोडदेतेहै ? इसका जवाब क्यों नहीं देते. लौकिक पंचांगकी अपेक्षा जब दो आसोज आवे तब सिद्ध चक्रका तप दो दफे क्यों नहीं करते? इससाल दो भादवे लौकिकपंचांगकी रुहसे माने और संवत्सरीकेबाद (७०) दिन हुवे बाद चौमासा खतम करके विहार क्यों नही किया? पर्युषणपर्व निर्णय किताबमें मेने पुछाथाकि अगर अधिकमहिना गिनतीमें लेनेका कहतेहो तो पहले आषाडको चौमासी पर्वकी अपेक्षा गिनतीमें क्यों नही लेते ? इसका जवाब आजतक नही दिया, इसकी क्या वजहहै ? . - हम और हमारे अनुयायी तपगछवाले अधिक महिनेके बारेमें मुताबिक जैन शास्त्रके फरमानपरही चलतेहै. और अधिक महिनेके वर्तनकों स्वमतानुयायी मानतेहै. मगर खरतरगछके मुनि श्रीयुत माणिसागरजीकीतरह एसा नहीं मानते, आधेक महिना गिनतीमें लिया है एसा कहतेभी जाना. और चातुर्मासिक पर्व वगेराके व्रतनियमकी अपेक्षा पहले आषा
डको गिनतीमेसे छोडतेभी जाना, जैनशास्त्र फरमातेहै कि___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णय.
अधिक माहिना कालचूला यानी कालपुरुषकी चोटीसमान है, आदमीके शरीरका माप कियाजाताहै. तब चोटीका माप नहीं किया जाता, इसीतरह अधिक महिना पर्वकृत्यमें नही गिना जाता. शिवाय इसके ज्यादा खुलासा और कोइ क्या देगा ?
३३-सवाल तीसरा. आपलोग अधिकमासकों कालचूला कहतेहो परंच उसको वार्षिक कृत्योमें नहीं लेना एसा मूलपाठ दिखला सकतेहो ?
( जवाब. ) हां दिखला सकताहुं, मगर शर्तयहहै कि पूर्वपक्षमें पाठ जाहिर हुवाहो तो उत्तर पक्षमें पाठ जाहिर करना सवालकर्ता पहले अपने सवालकी पुख्तगीका पाठ जाहिर करे, फिर मुजसेभी पाठ लेवे. एसा होनेसे बाचनेवालोकोंभी ज्ञान हासिल होगा, खरतरगछ अंचलगछवाले पहले आषाडको चातुर्मासिक पर्वकी अपेक्षा गिनतीमें नही लेते, कल्याणिक पर्वकी अपेक्षा एक पौषको गिनतीमें नही लेते यह किस जैनशास्त्र के मूलपाठमें लिखाहै ? जाहिर किजिये फिर मेरी तर्फसेभी मूलपाठ जाहिर होगा.
३४-आगे सवालकर्ता. वयान करतेहै. जैनशास्त्रमुजब पौष आषाडको कालचूला कही है. या लौकिक श्रावण भादवादिकको?
(जवाब.) इससाल खरतरमछ अंचलगछवालोंने दो भाद्रपद माहिने माने. यह लौकिकपंचांगकी अपेक्षा माने. यहभी एक सवाल है. मुताबिक जैनशास्त्रके पौष आषाडको कालचूला मानना चाहिये. गअली सालमें दो आषाड जैनपंचांमकी रुहसे आनेवाले है, देखलेना. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णय.
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, हां! बतलाता है कि जो आप ज्योति
खरतरगछ और अंचलगछवाले उसवख्त पहले आषाडको चातुर्मासिक कृत्यकी अपेक्षा छोडदेते है. या गिनतीमें लेतेहै ? गिनतीमें लेनेकी बाततो जभी साबीत होगी अगर पहले आषाडमें चौमासा बेठावे, मगर बेठाते है, दुसरे आषाडमे और करतेहै दोनो आषाड मान्यहै. क्या खूब बात है ? ___३५-फिर सवालकर्ता. इसी सवालमें तहरीर करतेहै. चूला तो अंतभागमें शिखररूप होतीहै. इस हिसाबसे दुसरे महिनेको कालचूला कहां जावे, मगर आप पहले माहिनेको चूला किसशास्त्र प्रमाणसे कहते हो. इसकाभी खुलासा पाठ बतला सकते हो?
( जवाब.) हां! बतलाता सकताहुं. सुनिये! कालचूला पहले माहिनेको इसलिये मानी गइहै कि-जो अधिकमहिना है वो गतमासकेसाथ संबंध रखताहै. इस बातको आप ज्योतिषशास्त्रसे या अछेअछे ज्योतिषी पंडितसे तलाश किजिये ! जब दो भादवे माहिने आवे तब पहला भादवा-श्रावणमासकी कालचूला बने. इसी लिये अन्यमजहबवाले पहले भाद्रपदमें श्राद्ध नही करते. जव दो आषाड आवे तब पहला आषाड ज्येष्ट माहिनेकी कालचूला बने. इसी लिये उसमें चातुर्मासिकपर्व नही माना जाता. अन्यमतके पंचांगके आधारसे जिसमासमें संक्रांतिका उदय न हो उसको अधिकमास कहतेहै. और वो संक्रांतिका उदय गतमासमें होताहै. इस लिये पहले आधिकमासको कालचूला कही गइ, अगर दुसरे अधिकमासको कालचूला माने तो सवाल पैदा होगा कि
जब दो श्रावण आयगे तब आपके ख्यालसे दुसरा श्रावण ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णय.
कालचूला बनेगा. चौमासीसे पचासरोजकी गिनतीमें दुसरे श्रावणमें पर्युषणपर्व आयगे, इस लिये पहला अधिकमहिना कालचूला मानना प्रमाणसिद्ध है.
३६-सवाल चोथा, मेरुके कितने हिस्सेको जैनशास्त्रोमें क्षेत्रचूला कहीहै ? वैसेही उद्धलोकमेंभी चूला मानी गई है. उनसब जगह मनुष्यचोटीका दृष्टांत घटा सकते हो ?
( जवाब.) हां! घटा सकताहूं. मेरुपर्वत लाख योजनका कहा, उसपर जो (४०) योजनकी क्षेत्रचूला कही है. वो लाख योजनमें नही गिनीजाती. इसीतरह मनुष्यचोटीभी मनुष्यके मापमें नही गिनीजाती, और वैसे अधिकमहिनाभी नही गिनाजाता, देखिये! मनुष्यचोटीका दृष्टांत घटगया-या नही ? उद्धलोकमें जो क्षेत्रचूला मानी गइहै-वोभी उनउनजगहकी गिनतीसे बहारहै, एसा जानना.
३७-सवाल पांचमा, जैन ज्योतिषमुजब अधिकमासका कितना प्रमाण? और अभिवर्द्धित माहिनेका क्या स्वरूप ?
और कितना प्रमाण? बतला सकतेहो ? यहां जवानी जमाखर्च नहीं चलेगा, गणित दिखलाना होगा.
( जवाब.) गणितकरके दिखलाता. सुनिये! मेरे यहां जबानी जमाखर्च नहींहै. मुताबिक जैन ज्योतिषके अधिक मासका प्रमाण इसतरहहै, खयाल किजिये ! एक चांद्रमास और ओगणत्रीस दिनपर बासठीये बत्तीस भांग इतना अधिकमासका प्रमाणहै. अब अभिवर्धित महिनेका स्वरूप सुनिये ! एकतीस दिनके उपर एकसोचोवीस भागात्मक एक
सोएकीस भागका अभिवर्द्धित माहिना होताहै. इस अपेक्षा ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णय.
२७
बारांही महिनोमें एकदिन और एकसोएकीस भाग मिलाते जाओ. इसतरह बारां महिनेमें जो कुछ भाग बढता रहे, उस सबको मिलानेसे एक अभिवर्द्धित संवत्सर होगा, तीनसोत्र्यासी दिन और एकसो चोविसये चौमालीस भागका एक अभिवर्द्धित संवत्सर हुवा. देखिये! गाणत करके दिखला दियाहै. जादा खुलासा इसका ज्योतिषकरंडक और लोकप्रकाश ग्रंथमें मौजूदहै. लोकप्रकाश ग्रंथका सबुतदेताहूं. गौर किजिये.
एकोनत्रिंशदित्येवं दिनान्यंशारदर्मिताः
मासोधिकोयंस्यात्रिंशत् सूर्यमासव्यतिक्रमे. माइना.) तीसमूर्यमास बतीत होनेसे एक चांद्रमास बढताहै. सूर्यमास और चांद्रमासके अंतरसे एक अधिकमास होताहै. और जिसवर्समें वो आवे उसवर्सको आभवर्द्धित संवत्सर कहा जाता है.
३८-सवाल छठा, जैनागमोमे जीवाजीवादिनवतत्व षडद्रव्य (१४) राजलोक वगेराका स्वरुपकी तरह (१३) महिनोका अभिवर्द्धित संवत्सरकाभी स्वरुप बतलाया है. उसको नहीं माननेवालोको क्या कहना चाहिये?
(जवाब.) खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर दुसरेमे लिखतेहै, दो आषाड होवे तब दोनों मान्य मगर चौमासी दुसरे आषाडमें करना. इसपर सवाल पैदा होताहैकि जब चौमासा दुसरे आषाडमे बेठाना मंजुर हुवा तो चातुर्मासिक पर्वकृत्यमें पहला आषाड क्यौं छोडा? और फिर दोनों आषाड मान्य कहां हुवे ? मान्य तो
जब होते अगर पहले आषाडमें चौमासा बेठाना मंजुर होता, ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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आधिकमास निर्णय.
दोनों आषाड मान्यभी कहना और चातुर्मासिक पर्वकृत्यमें पहला आषाड छोडतेभी जाना इसका क्या सबबहै ? दो पौष आवे तव तीर्थकर पार्श्वनाथ भगवानका जन्मकल्याणिक एक पौष में करना और एक पौषको छोडना. इसकाभी क्या सबब? . __ अभिवर्द्धित संवत्सर तेरह महिनोका हौताहै. इस बातको सब लोग जानतेहै, इसलिये जगजाहिर बात है. मगर चातुमासिक वार्षिक कल्याणिक वगेरा पर्वकृत्यमें गिनतीमे नही लेना यह जो मुद्देकी बात है. इसको खयालमें क्यों नही लाते? अगर इसी बातकों अछीतरह समजलिइजाय तो कोइ शक पैदा होनेका सबब न रहे.
३९-सवाल सातमा. सब विवादकों छोडकर अभी जैनपंचांग शुरु करनेमें क्या बाधा आतीहै ?
( जवाब. ) मुजे तो कुछभी बाधा नहीं आती, आपलोग आपना सौच लिजिये. में जिनेंद्रोके फरमानपर चलनेके लिये अपने दिलसे मंजुरहुं. मगर तमाम जैनश्वेतांबरसंघ मंजुर करेन करे-इस बातका कंट्राक्ट में नही लेसकता, सब मनुष्योका स्वभाव एकसमान नही होता. धर्म और प्रीत जोराजोरी नही होसकती, उपदेश देना अपना फर्ज है, मानना न मानना उनके दिलकी बात है, तीर्थकरदेवभी धर्मका उपदेश देतेथे, मगर माननेवाले मानतेथे, नही माननेवाले नही मानतेथे. में जैननजुम और धर्मकी तरक्की होनेमें सहमतहुं. मेने जैन शास्त्राके सबुतसे कइवर्स होगये, जैन संस्कारविधि किताब बनाइथी और छपकर जाहिर हुइथी. जन्मसंस्कार, विवाहसंस्कार वगेरा
सोलह संस्कार किसविधिसे करना जैन शास्त्रोके आधारसे ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अधिकमास निर्णयः
बतलायेथे, जो जो जैनश्वेतांबर श्रावक जैनधर्ममें ज्यादा पावंदथे उनोने मंजुर किया. कइ श्रावकोने नहीभी मंजुर किया, इसका कोइ क्या करे.
४० में यह आधिकमासनिर्णय किताब आम जैनश्वेतांबरसंघके सामने रखताहुं. इसको पढिये. अपने दोस्तोकों पढनेकी हिदायत किजिये, जो चर्चा अधिक माहिनेके बारेमे आजकल चलरहीहै इस किताबमे तमाम दलिले दर्ज है, अवलसे अखीरतक देखिये! इस किताबको पढनेसे आप लोग खुद माकुल जवाब देसकेगे, और अपने दिलमे तसल्ली होजायगी कि अधिक महिना चातुर्मासिक, वार्षिक और कल्याणिक वगेरा पर्वकृत्यमें गिनना नही.
४१-अधिकमासकी चर्चाके लिये दोंनों तर्फसे प्रतिज्ञापत्र छपकर जाहिर होचुके है. शास्त्रार्थ करके निर्णय करलो, शास्त्रार्थमें जो जो दलिले पैदा होगी वे बहुतकरके इस किताबमें आचुकीहै, चर्चाके लिये पुस्तकों के बारेमे कोइ एसा कहेकि हमको पुस्तक नही मिलसकते तो जवाबमें मालुमहो. इसमें कोइ क्या करे, अपने मंतव्यकी पुख्तगीकेलिये जो जो पुस्तक चाहिये अपनी तर्फसे चाहेवहांसे मंगवाकर तयार रखना मुनासिबहै. और चर्चामें जो कुछ निर्णय आवे उसको मंजुर रखना लाजिम है, दुनियामे सारवस्तु धर्म है.
४२ में. वादविवादके सवालोका जवाब बजरीये चीठीके देना पसंद नहीं करता, जिसको जो कुछ पुछनाहो. बजरीये छापेके पुछे, याते बाचनेवालोकोभी फायदा पहुंचे. इतना जरुर यादरहे! गछोके जो भेद पडगये है. यह एक न होगे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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आधिकमास निर्णय.
जमाने तीर्थकरोकेभी धर्मके बारेमे ऐक्यता नही होसकीथी तो आज कैसे होगी? बेशक ! धर्मशास्त्रोके फरमानमर कामील एतकात रखना अछाहै. आजकल रुढीका प्रचार ज्यादा दिखाइ देरहाहै. मगर हरेक शख्शको धर्मश्रद्धामें पावंद बनेरहना फर्ज है.
४३-शास्त्रार्थ करना और सत्यको मंजुर रखना बेशक ! अछाहै. इन्साफके सामने जिसतत्वने शकिस्त नहीं खाइ वो तत्व सचाहै, एसा जानना. इन्साककी बुद्धि पाना बडे पुन्यके ताल्लुकहै इन्साफसे बोलना या लिखना और सभाके नियमा नुसार शास्त्रार्थ करना कोई हर्जकी बात नही, सच बोलना निस्पृह रहना और पूर्वसंचितकमपरभरुसा रखना. यह बात हमेशा केलिये अछीहै.
४४ मेने इसचालुचर्चाके संबंधमें बहुतकुछ लिखाण कररखाहै, उसको छपवाकर पुस्तकाकार जाहिर करना फायदेमंद होगा शास्त्रार्थ करनेसे फायदा नहीं एसा कहना गलतहै. सत्यका बयान करना हमेशां अछाहै. कोई शख्श अपने मंतव्यपर आक्षेप करे और उसके जवाब देनेमे चूप रहना ठीक नही. सचकी हमेशां फतेहहै.
) ब कल्म-जैनश्वेतांतर धर्मोपदेष्टामुकाम-पुना,
विद्यासागर-न्यायरत्न-महाराज मुल्क दखन.
--शांतिविजयजी
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जाहिरखबर.
जाहिरखबर.
[खरतरगछसमीक्षाग्रंथ.] मजकुर ग्रंथ मेरी तर्फसे बनरहाहै, इसमे छह कल्याणिकके लिये माकुल जवाब दर्जहै, जैनशास्त्रोमें हरेक तीर्थंकरोंके पांच कल्याणिक होते है, नवांगसूत्रवृत्तिकार श्रीमान् अभयदेवसूरिजीने पंचाशकसूत्रकी टीकामें तीर्थकर महावीरस्वामीके पांचकल्याणिक फरमाये है. जिससाल अधिकमहिना आवे तो उसको चातुर्मासिक, वार्षिक और कल्याणिकपर्वकी अपेक्षा गिनतीमें नही लेना. यह बात जैनशास्त्रके पाठसे साबीत करदिइहै. सामायिक लेतेवख्त इापथिका पाठ पहिले और , करेमिभंतेका पाठ पीछे बोलना, मुताबिक जैनशास्त्रोंकें फरमानसे सिद्ध करदियाहै, जैनमुनिकों व्याख्यानके वख्त या . तमामदिन मुखपर मुखवस्त्रिका बांधना किसी जैनशास्त्र में नहीं लिखा. इस बातकोभी इसमें तेहरीर किइहै. दादाजीकेसामने नैवेद्य चढाया हूवा, गुरुद्रव्य होगया. और गुरुद्रव्य नहीं खाना चाहिये, इसकाभी खुलासा इसमें दियाहै.
खरतरगछके श्रीजिनप्रभसूरिजीने अपने बनायेहुवे ग्रंथमे तपगछके बारेमे जो कुछ लिखाहै, उसका जवाब इसमें दर्ज कियाहै, किताव रत्नसागर मोहनगुणमालामें खरतरगछके उपाध्याय श्रीमोहनलालजीने जो तपगछ खरतरगछके बारेमें लिखाण कियाहै उसका जवाबभी इसमें सामीलहै, किताब स्याद्वादनुभवरत्नाकरमे खरतगछके मुनि श्रीयुत चिदानंदजीने गछादिव्यवस्था निर्णयमें जो कुछ लिखाहै, उसका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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जाहिरखबर.
जवाबभी इसमे रोशनहै, किताब महाजन वंशमुक्तावलीमें ग्रंथकर्ताने जो कुछ मजमून गछके संबंधों पेंशकियाहै, उसका जवावभी इसमे तेहरीरहै, किताब प्रश्नोत्तर मंजरीमें और प्रश्नोत्तर विचारमें खरतरगछके पंन्यास श्रीकेशरमुनिजीगणीने तपगछखरतरगछके बारेमें जो कुछ लेख लिखा है उसका जवाबभी इसमें मौजूदहै. जिसको पढकर जिज्ञासु लोग खुश होंगे, इतना लेख हाल तयारहै, खरतरगछके मुनि श्रीयुतमणिसागरजीका बनायाहुवा, बृहत्पयूषणनिर्णयग्रंथ जब मुजकों मीलेगा, उसको देखकर उसका जवाबभी इसमें जोड दियाजायगा, इस किताबमें कोइ अपशब्द नही लिखाहै. जैनशास्त्रोके पाठ और दाखले दलिलोसे जवाव लिखागयाहै. जो • कोइ जैन श्वेतांबरश्रावक इसग्रंथको अपनेखर्चसे छपवाना
चाहेतो उनका नाम प्रकाशक तरीके लिखा जायगा अगर 'कोइकहे ग्रंथका मेटर हमको भेजो देखकर लिखेगे. तो जवाबमें मालुम हो मेटर किसीको भेजा नही जायगा. जिसकी मरजी हो रुबरु आनकर देखजावे. और खर्चा पेंशकरे. उनका नाम प्रकाशकतरीके लिखा जायगा.
बकल्म-जैनश्वेतांवर धर्मोपदेष्टा विद्यासागर न्यायरत्न मुनिशांतिविजयजी
( मुकाम पुना. मुल्क दखन.)
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[तालीम धर्मशास्त्र]
१-जगत् और इश्वरअनादि है, अगर इश्वरने जगत्बनाया मानेतो इश्वरको किसनेबनाया, यहभी सवाल- १ पैदा होगा,
२-कर्मअकेले फलदेते है, उद्यमअकेला फलनही १ देता, उद्यम वृथाजाताहै, कर्मवृथा नहीजाते, इसलिये 1 कर्मबलवानहै, ई ३–पूर्वकृत भलेबुरेकोका फलजीव यहां भोगताहै। है और यहांकरेगा बैसाआगेकों पायगा,
४-मिथ्यात्वके उदयसे चौदहपूर्वके पाठी और यथाख्यातचारित्रके पालनेवालेभी संसासमुद्रमें डुबजातेहै, सबुतहुवा श्रद्धा बडीचीजहै.
५-जिसशख्शको जातविरादरीके गुनाहसे जातबप्रहार कियाहो, वो जिनमंदिरमें और व्याख्यान धर्मशा-१
स्त्रकी सभामें आसकताहै, जिसने देवगुरुधर्मका गुनाह । कियाहो, और उसको जैनसंघके बहारकरदियाहो, को।
नही आसकता, ए. ६-चांद सूर्यवगेरा ग्रहकिसीका भला बुरानही । १ करते, शुभाशुभके सूचकहै, कारकनही,
७-अपनी सालियाना आमदनीमेसे आध १ आठमा या सोलहमाहिस्सा धर्मकाममें खर्च कर
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१८-मनविनाभी कइलोग देखादेखी धर्मक्रियाकरते है,
मगर जैसीक्रियासे आत्माको कोइफायदा नही, विनापु-१ न्यानुबंधिपुन्यके मनकेइरादे कभीसुधरतेनही,
९-हरेकजैनगृहस्थकों जन्मादिसोलह संस्कार जैनविधिसे करनाचाहिये,
१०-जिनेंद्रोके वचनकों खललपहुचाकर लौकिक ! व्यवहारकों मददकरे वो शख्स धर्मसेदुरहै,
११-हरेकजैनगृहस्थकों मुनासिबहै, अपने घरमें देव-.. द्रव्य वगेरा धर्मद्रव्य न रखे किसीजैनमंदिर या जैनतीर्थके देवद्रव्यकाहिसाब अपनेहस्तगतहो छपवाकरजाहिर है करे, व्याजसेभी अपनेपास न रखे, व्याजके लोभसे ।
असली रकमभीआना मुश्किलहोजातीहै, । १२-बडेबडे जैनतीर्थोंमें या मंहिर जहां देवद्रव्य १ ज्यादहहो, वो दुसरे जैनतीर्थमें या मंदिरमेंजहां मरम्मतहोनादरकारहो, लगादेनाचाहिये,
१३-स्नात्रपूजाकासामान अपनेघरमें हरहमेश नयालेजानाचाहिये, चढाइहुइचीजे नारियल बादाभवगेरापै-3 सेदैकरलेगा, औरदोवारा चढाना ठीकनही.
१४-विनमश्रद्धा और ज्ञानके इस जीवकीमुक्ति नही । होती, विना चारित्रके मुक्ति होसकती है, आवश्यकसू
में लिखाह, देखलो! और उत्तराध्ययनसूत्रमें लिखाहै, श्रद्धा परमदुभ है
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________________ વિજય abble llen! 哈e Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com