________________
rammrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr.........
आधिकमास निर्णय. लिखाहै, उसका जवाब सुनिये मिथ्यात्वके सार्थवाह कौनहै
और कदाग्रही लेख किसकेहे ? इसकी तलाश फिर किजिये, तपगछके उपाध्याय श्री धमसागरजी सम्यक्तके सचे सार्थ वाहथे, उनाने आपके माने हुवे छहकल्याणिककी बात गल तफरमाइथी, यह बात सायत! आपको नापसंद हुइ होगी, इसलिये आप उनको एसा कहते होगे. मगर एसी वातोसे उनका कुछ नुकशान नहीं होसकता, तीर्थकर देवोकोंभी कइलोग इंद्रजालीक कहतेथें सौचो ! इससे उनका क्या नुकशान था? अगर आपकी मरजी हो तो ऊनके लेखोको लिखकर निचे उसका जवाब बजरीये छापेके जाहिर किजिये! बाचनेवाले खुद सचका इम्तिहान करलेयगे, और इसीतरह तपगछके उपाध्याय श्रीविनयविजयजीके लेख लिखकर नीचे टीका किजिये ! में उसपर माकुल जवाब दूंगा, और यहवात आप कभी अपने खयालशरीफमें न लाइयेकि-शांतिविजयजी जवाब न देयगें, शांतिविजयजी हरवख्त जवाव देतेहै,
और देयगें, चाहे कभी देरी हो जाय तो क्या हुवा ? मगर जवाब जरुर देयगें.
१५-फिर खरतर गछके मुनि श्रीमाणसागरजी अपने विज्ञापन नंबर दुसरेमें लिखतेहै, नये नये बखेडे क्यों खडे करते हो? कपटकी ठगाइ छोडौं, और न्यायसे सामने आओ.
( जवाव ) न्यायसे सामने आनेकों दोनोंतर्फसे प्रतिज्ञापत्र छपगये है. सभा करके शास्त्रार्थ करलो, कौन मना करतेहै ? नये नये बखेडे कौन खडे करतेहै ? खरतर गछके मुनि श्रीयुत माणसागरजीने लिखकर बतलाया क्यों नहीं, ? और कफटकी ठगाइ कौनसीथी? बतलाना चाहियेथा. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com