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आधिकमास निर्णय.
दोनों आषाड मान्यभी कहना और चातुर्मासिक पर्वकृत्यमें पहला आषाड छोडतेभी जाना इसका क्या सबबहै ? दो पौष आवे तव तीर्थकर पार्श्वनाथ भगवानका जन्मकल्याणिक एक पौष में करना और एक पौषको छोडना. इसकाभी क्या सबब? . __ अभिवर्द्धित संवत्सर तेरह महिनोका हौताहै. इस बातको सब लोग जानतेहै, इसलिये जगजाहिर बात है. मगर चातुमासिक वार्षिक कल्याणिक वगेरा पर्वकृत्यमें गिनतीमे नही लेना यह जो मुद्देकी बात है. इसको खयालमें क्यों नही लाते? अगर इसी बातकों अछीतरह समजलिइजाय तो कोइ शक पैदा होनेका सबब न रहे.
३९-सवाल सातमा. सब विवादकों छोडकर अभी जैनपंचांग शुरु करनेमें क्या बाधा आतीहै ?
( जवाब. ) मुजे तो कुछभी बाधा नहीं आती, आपलोग आपना सौच लिजिये. में जिनेंद्रोके फरमानपर चलनेके लिये अपने दिलसे मंजुरहुं. मगर तमाम जैनश्वेतांबरसंघ मंजुर करेन करे-इस बातका कंट्राक्ट में नही लेसकता, सब मनुष्योका स्वभाव एकसमान नही होता. धर्म और प्रीत जोराजोरी नही होसकती, उपदेश देना अपना फर्ज है, मानना न मानना उनके दिलकी बात है, तीर्थकरदेवभी धर्मका उपदेश देतेथे, मगर माननेवाले मानतेथे, नही माननेवाले नही मानतेथे. में जैननजुम और धर्मकी तरक्की होनेमें सहमतहुं. मेने जैन शास्त्राके सबुतसे कइवर्स होगये, जैन संस्कारविधि किताब बनाइथी और छपकर जाहिर हुइथी. जन्मसंस्कार, विवाहसंस्कार वगेरा
सोलह संस्कार किसविधिसे करना जैन शास्त्रोके आधारसे ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com