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अधिकमास निर्णय.
( जवाब.) तपगछके उपाध्याय श्री विनयविजयजीने न तीर्थकर गणधिरोकी न पूर्वाचार्योंकी आशातना किइहै. उनोने आपके माने हुवे छह कल्याणिकके पक्षको ठीक नही कहां, यह वात चाहे आपकों नागवार गुजरी होगी, इसी लिये सायत आप कहते होगें कि उनका कहना शास्त्र विरुद्ध है. मगर आप यह खूब यादरखिये! उनका कहना मुताबिक जैन शास्त्रके सच है. पंचाशकसूत्रके मूलपाठ और टीकाका पाठभी देखलिजिये, और अपने दिलकी खातिर जमा करलिजिये. मेने पर्युषणपर्व निर्णय किताबमें मजकुर पाठ छपवा दियाहै, और वो किताब बंबइसे आपने बजरीये चीठीके मंगवाइथी, और मेने पुनसे आपको भेजीथी. आपको मिली होगी, अगर आपको अपने खरतर गछके आचार्य श्रीमान् अभयदेवमूरिजर्जाका लेख मंजुर न होतो बजरीये छापेके जाहिर किजियेकि-मुजेवो लेख मंजुर नही. जबतक यहबात आपकी तर्फसे जाहिर नहीं होगी, तबतक तपगछके उपाध्यायश्री विनयविजयजीकृत कल्पसूत्रकी टीकापर आक्षेप करना गलतहै उनकी कौनसी बातें शास्त्रविरुद्धथी और जिनाज्ञा बाहिरथी लिखाक्यौं नही? कोरी बाते बनाना फिजहुलहै.
१२-आगे खरतर गछके मुनि श्रीयुत माणसागरजी अपने विज्ञापन नंवर पहलेमे तेहरीरकरतेहै, दृष्टिरागी पक्षपाती गडरीह प्रवाही जन श्रद्धापूर्वक बरताव करे तो संसारवृद्धि और दुर्लभ बोधीकी प्राप्तिका कारण होना संभव है,
(जवाव. ) जव आपके खरतर गड़के आचार्य श्रीमान् अभय देवमरिजी तीर्थकर महावीर स्वामीके पांचकल्याणक फरमातेहै, फिर आप किसप्रमाणसे छह कल्याणिक फरमातेहै Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com