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१८-मनविनाभी कइलोग देखादेखी धर्मक्रियाकरते है,
मगर जैसीक्रियासे आत्माको कोइफायदा नही, विनापु-१ न्यानुबंधिपुन्यके मनकेइरादे कभीसुधरतेनही,
९-हरेकजैनगृहस्थकों जन्मादिसोलह संस्कार जैनविधिसे करनाचाहिये,
१०-जिनेंद्रोके वचनकों खललपहुचाकर लौकिक ! व्यवहारकों मददकरे वो शख्स धर्मसेदुरहै,
११-हरेकजैनगृहस्थकों मुनासिबहै, अपने घरमें देव-.. द्रव्य वगेरा धर्मद्रव्य न रखे किसीजैनमंदिर या जैनतीर्थके देवद्रव्यकाहिसाब अपनेहस्तगतहो छपवाकरजाहिर है करे, व्याजसेभी अपनेपास न रखे, व्याजके लोभसे ।
असली रकमभीआना मुश्किलहोजातीहै, । १२-बडेबडे जैनतीर्थोंमें या मंहिर जहां देवद्रव्य १ ज्यादहहो, वो दुसरे जैनतीर्थमें या मंदिरमेंजहां मरम्मतहोनादरकारहो, लगादेनाचाहिये,
१३-स्नात्रपूजाकासामान अपनेघरमें हरहमेश नयालेजानाचाहिये, चढाइहुइचीजे नारियल बादाभवगेरापै-3 सेदैकरलेगा, औरदोवारा चढाना ठीकनही.
१४-विनमश्रद्धा और ज्ञानके इस जीवकीमुक्ति नही । होती, विना चारित्रके मुक्ति होसकती है, आवश्यकसू
में लिखाह, देखलो! और उत्तराध्ययनसूत्रमें लिखाहै, श्रद्धा परमदुभ है
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