________________
अधिकमास निर्णय.
सवालकाने सात सवाल पुछेथे. उसका जवाब देताहुं. सुनिये! सवालकर्ता जोकुछ सवाल पुछे उसका माकुल जवाब देना उत्तरदाताका फर्ज है. अपनेपर या अपनी समुदायपर कोइदुसराशख्श सवाल पुछे और उसका जवाब न देना एकतरहकी कमजोरीहै. खरतरगछ या अंचलगछके कोइ महाशय तपगछके मंतव्यपर सवाल पुछे. और तपगछके जैनाचार्य जैनउपाध्याय गणी वगेरा पदवीधर जवाब न देवे बडेताज्जुबकीबातहै. अगर कहाजाय जवाब देनेका ज्ञान न हो तो क्या करना ? जवाबमें मालुम हो फिर पदवीधर क्यौं बनना? अगर पदवीधर बनना तो जवाब देना फर्जहै. जैनाचार्य किसको कहना और जैनाचार्यपदवी किसके हाथसे लेना. यहभी एक शास्त्रीय सवाल है. असलमें जैनाचार्य पदवी अपने गुरुके हाथसे लेना चाहिये मुताबिक जैन शाखके पंचमहाव्रतपालन करना और आचार्य पदके छत्तीसगुण हासिल करना जब जैनाचार्य होसकतेहै. ऐसे पढेगुने जैनाचार्य जैन धर्मकों तरक्की देसकतेहै.
२२-अकेला तपकरके योगवहन करलिया औरज्ञानपढे नही तो क्याहुवा ? श्रावकको जिस जिस सामायिक प्रतिक्रमणके विभागका उपधान वहनकरायाजाय उसका अर्थ और मूलपाठ .कंठाग्र कराना चाहिये. जबतक मूलपाठ और अर्थ कंठाग्र न हो तबतक तपभी चालु रखना, कोरे उपवास एकाशने करलिये और उपधान पूर्ण होयगे एसा समजना ठीक नही. जैन धर्मके गुरुओमे अग्रेश्वरी होकर धर्मकेबारेमे सवाल कर्ताके सवालोके जवाबनही दिये तो फिर किस बातके अगे
श्वरी हुवे? ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com