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अधिकमास निर्णय.
२७-जैन मुनिको या जैन साधवीको अगर विद्या पढना तो मुनासिवहै गीतार्थ जैन मुनिके पासजाकर विनय भक्तिसे विद्या पहे,मुल्क गुजरात काठियावाडमें जहां जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आवादी ज्यादहहै. वहां जैन मुनिको या जैनसाधवीको विहार करना मुश्किलकी बात नही. अहमदाबादसे पालितानेतक विहार करना, सुरत बडोदेतक विचरना, या महीकांठेमे विहार करना मुश्किलकी वात नही. मगर तमाम हिंदुस्तानमे जहांकि जैनश्वेतांवर श्रावकोकी आबादी दुरदुर परहै. मुल्क मारवाड, मेवाड, सिंध, पंजाब, राजपुताना, बंगाल, मध्यप्रदेश, बराड, खानदेश, महाराष्ट्र, कोकन, कर्नाटक, मद्रास
और दखन हैदराबाद वगेरा तर्फ विना सहायतालिये विहार करना और जैनधर्मको तरकी देना, फायदेमंदहै.
२८-हरेक शख्शकों अपने वरतावपर खयालकरना चाहिये. जमाने हाल में जैसा द्रव्यक्षेत्रकालभाव मौजूदहै. वैसा धर्मसाधन होसकताहै. दुसरोका वाद लेना ठीक नही. तीर्थकर गणधरोंका फरमाना क्याहै ? उसपर खयालकरना चाहिये. अगर कहानाय द्रव्यक्षेत्रकालभाव देखकर सहायता लेनी पडती है. तो फिर व्यक्षेत्रकालभावपर चलिये. इस लेखका मतलब यह हौक-उत्सर्गमार्गपर चलना आजकल बनसकता नही, आजकल अपवादमार्गका सहारा-सबकोलेना पडताहै.
२९-अगर कोई जैनश्वेतांबर श्रावक एसा कहोक-आज कलके जैनमुनि क्रिया शिथिल होगये है. तो जवाबमें मालुम
हो. कहनेवाले खुद दीक्षा इख्तियारकरके क्रियामें उत्सर्ग___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com